पता नहीं, ये दिल चाहता क्या है,
हर पल खुद से उलझता क्यूँ है !
कहने को हूँ मैं तन्हा पर अकेला नहीं,
मंजिल है पर रास्ते नहीं.
इस आवारगी में कहाँ चला, किधर पंहुचा,
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
शाम होते ही सवेरे की तलाश रहती है,
सवेरे होते ही अँधेरे की याद आती है,
क्यूँ मुकव्वल हुई न मेरी जिन्दगी,
यही सवाल हमेशा खुद से रहता है,
अब तक क्या खोया क्या पाया,
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
साहिल पे खड़ा हूँ, टूटी कस्ती को साथ लिये,![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwwkD5K7UGcVEUnoMW8sFUXSVyYFAaYtpM6McBH0RYa2Eumuyl2LZQPUKV5_vfcqpQ5DAG3hs9AvDG7LlCef6BLKdc4gulbwh4tgWEifUjQLScjTwaxwVLEEa4Di0bAfzaMgmSTI447hcG/s1600/kavita.gif)
इस चाहत में कि कोई मांझी ढूंढ़ लूँगा,
और खुद को उस दूर किनारे पे कर लूँगा,
जहाँ खुशियों की बस्ती है, हर चेहरे पे प्यार है,
क्या मिल पायेगा मुझे वो जहां
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7N0Xb_assSUC3zA-SAxoymD2SktO-ppURZBPGKTRYaDL7LcB3ChXN3r6BAuYlWsoW6_wJwgLL7EzEtGAG4ICIqO531QG5IIdd-ePTecCsypDoqdrQShH6Oen_EfCuC5SJcIHHlVMvw_lW/s1600/ajay.jpg)
हर पल खुद से उलझता क्यूँ है !
कहने को हूँ मैं तन्हा पर अकेला नहीं,
मंजिल है पर रास्ते नहीं.
इस आवारगी में कहाँ चला, किधर पंहुचा,
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
शाम होते ही सवेरे की तलाश रहती है,
सवेरे होते ही अँधेरे की याद आती है,
क्यूँ मुकव्वल हुई न मेरी जिन्दगी,
यही सवाल हमेशा खुद से रहता है,
अब तक क्या खोया क्या पाया,
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
साहिल पे खड़ा हूँ, टूटी कस्ती को साथ लिये,
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwwkD5K7UGcVEUnoMW8sFUXSVyYFAaYtpM6McBH0RYa2Eumuyl2LZQPUKV5_vfcqpQ5DAG3hs9AvDG7LlCef6BLKdc4gulbwh4tgWEifUjQLScjTwaxwVLEEa4Di0bAfzaMgmSTI447hcG/s1600/kavita.gif)
इस चाहत में कि कोई मांझी ढूंढ़ लूँगा,
और खुद को उस दूर किनारे पे कर लूँगा,
जहाँ खुशियों की बस्ती है, हर चेहरे पे प्यार है,
क्या मिल पायेगा मुझे वो जहां
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7N0Xb_assSUC3zA-SAxoymD2SktO-ppURZBPGKTRYaDL7LcB3ChXN3r6BAuYlWsoW6_wJwgLL7EzEtGAG4ICIqO531QG5IIdd-ePTecCsypDoqdrQShH6Oen_EfCuC5SJcIHHlVMvw_lW/s1600/ajay.jpg)
--अजय ठाकुर,नई दिल्ली
दिल चाहता क्या है
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 20, 2011
Rating:
![दिल चाहता क्या है](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMkixPXLXoMgLu3aUKKrMq8NWAC4hfPXjn54k-UJQ-EVNZBM8Fk3OvHfPENRdCwk91kxTHIv8kttbo55DMo_h1lhOai_gcQAXCPNmEAYcK5T9bT0SQSaif5P3Esc8_xvfji0Kymwicl_fv/s72-c/couple.jpg)
अजय तुम तो बहुत छुपा रुस्तम निकला हमारे कविता पर वाह वाह करते करते खुद कवि बन गया वाह मेरे जह्पनाह वाह क्या लिखा है...
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