राज्य की उच्च शिक्षा में अपेक्षित सुधार होता नही दीख रहा है,जबकि राज्य सरकार इसके लिए जी-तोड़ प्रयास करने की बात कर रही है.बिहार के विश्वविद्यालयों में पढाई की स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं है. विश्वविद्यालयों में सिर्फ वेतन मद में सरकार के प्रतिवर्ष दो हजार तीन सौ करोड़ रूपये तो खर्च होते ही हैं,साथ ही एक हजार करोड़ रूपये सरकार ने प्रतिवर्ष विश्वविद्यालयों के विकास के मद में अलग से स्वीकृत किये हैं.राज्य की जनता तो ये कह ही रही है कि उच्च शिक्षा में बेहतर सुधार नहीं हो पा रहे है,सूबे के मुखिया भी कमोबेश यही मानते हैं.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कल पटना में ये बात कही कि राज्य के लोगों को यह जानना चाहिए कि इतने रूपये खर्च करने बाद भी विश्वविद्यालयों के हालात बेहतर नहीं हैं.उन्होंने यह भी कहा कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के अंदर वे बेहतर प्रयास कर रहे हैं.आईईटी की स्थापना, एनआईटी, बीआईटी मेसरा की शाखा, चाणक्य विधि विश्वविद्यालय तथा निफ्ट आदि की स्थापना कर वे इस क्षेत्र को उन्नत बनाने का प्रयास कर रहे हैं.
अगर देखा जाय तो बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति में वास्तव में अपेक्षित सुधार नहीं है और इसकी एक महत्वपूर्ण वजह पढाई की जगह इसमें चल रही राजनीतिक उठापटक भी है.छात्र भी विश्वविद्यालय प्रशासन पर समुचित दवाब नहीं डाल पा रहे हैं, ताकि नियमित वर्ग संचालन हो सके.आवश्यकता है इससे जुड़े सभी लोगों के जागरूक होने की जिससे शिक्षा का क्षेत्र और भी विकसित हो सके.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
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Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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August 09, 2011
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