राकेश सिंह/२८ जून २०११
उपरी तौर पर तो देखने में यही लगता है और बात भी कुछ हद तक मायने रखती है कि यदि कोई स्मार्ट और अपने से ज्यादा सफल महिला किसी साधारण पुरुष के करीब आती है तो वह पुरुष अपने को खुशनसीब समझने लगता है. अधिकाँश मामलों में ये बात लागू हो सकती है क्योंकि यहाँ अहंकारी पुरुष के अहं को ये सोचकर तुष्टि मिलती है कि चलो मुझमे कोई ऐसी बात तो जरूर है जो ये मुझसे आकर्षित हो रही है.
पर क्या होता है जब इसी तरह की बात पत्नी के मामले में होती है.अफ़सोस कि पत्नी की सफलता दिल से अधिकाँश पति को रास नही आती है.और परिवार वाले भी जहाँ बेटे की सफलता को चीख-चीख कर मुहल्लेवालों को बताने में गर्व महसूस करते है, बहू की सफलता सशंकित भाव से लोगों के सामने बयां कर पाते हैं.
दरअसल अधिकांश पति पत्नी के मामले में कन्फ्यूज्ड होते हैं.ऐसे पतियों को जॉब करती पत्नी तो पसंद
है पर पत्नी के जॉब का प्रोफाइल उससे कम होना चाहिए और पत्नी यदि पति की इच्छा को देखते हुए हर हमेशा अपना जॉब, अपनी सोच व अपनी रूटीन बदलने के लिए तैयार रहें, तब तो ठीक है वर्ना दाम्पत्य जीवन के दरकने का खतरा हमेशा बना रहता है.
दरअसल अधिकांश पति पत्नी के मामले में कन्फ्यूज्ड होते हैं.ऐसे पतियों को जॉब करती पत्नी तो पसंद
है पर पत्नी के जॉब का प्रोफाइल उससे कम होना चाहिए और पत्नी यदि पति की इच्छा को देखते हुए हर हमेशा अपना जॉब, अपनी सोच व अपनी रूटीन बदलने के लिए तैयार रहें, तब तो ठीक है वर्ना दाम्पत्य जीवन के दरकने का खतरा हमेशा बना रहता है.
दूसरी ओर बदलते समय में एक पिता अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उसे अच्छी शिक्षा देने के साथ-साथ कॉन्फिडेंट भी बनाने का प्रयास करता है.ऐसा करने के पीछे मन में निश्चित तौर पर एक ये भावना भी रहती है कि उसे एक अच्छा पति मिले जो इसकी गुणों की कद्र कर सके.पर हकीकत यही है कि ऐसी लड़कियों को ब्याह कर घर लाने में अधिकाँश लड़के और उसके परिवार वाले घबराते हैं.
इसके पीछे के कारणों पर यदि ध्यान दें तो हम सबसे पहले पाते
हैं कि पुरुष प्रधान समाज में अधिकांश पुरुष अभी भी यही चाहते हैं कि पत्नी यदि ज्यादा सफल हो जाती है तो उसके अहं की तुष्टि नही हो पायेगी.ज्यादा सफल लड़कियों की अपनी पहचान हो जायेगी और वे पति के नाम से नही जानी जायेगी.ये बात अधिकांश पतियों को नागवार लगती है.पुरुष कुछ परिस्तिथियों की तुलना अपनी माँ की स्थिति से भी करता है जहाँ वह देखता आया है कि उसकी माँ अक्सर उसके पिता के सामने झुकती थी.पत्नियों की सफलता भले ही पुरुषों को कुछ हद तक अच्छी लगती हो,पर उनसे ज्यादा सफल पत्नियों के सामने पुरुष हीं भावना का शिकार होने लगते हैं.पर बदलते दौर में एक बात तय है कि अपने लगन और मिहनत से लड़कियों को सफल होने से कोई नही रोक सकता है. ऐसे में आवश्यकता है कि पुरुष अपने सोच में परिवर्तन लाएं और अपने अंदर के अहं को दूर करें ताकि पति और पत्नी दो पहियों की तरह जिंदगी की गाड़ी को सही रास्ते पर ले जा सकें.
हैं कि पुरुष प्रधान समाज में अधिकांश पुरुष अभी भी यही चाहते हैं कि पत्नी यदि ज्यादा सफल हो जाती है तो उसके अहं की तुष्टि नही हो पायेगी.ज्यादा सफल लड़कियों की अपनी पहचान हो जायेगी और वे पति के नाम से नही जानी जायेगी.ये बात अधिकांश पतियों को नागवार लगती है.पुरुष कुछ परिस्तिथियों की तुलना अपनी माँ की स्थिति से भी करता है जहाँ वह देखता आया है कि उसकी माँ अक्सर उसके पिता के सामने झुकती थी.पत्नियों की सफलता भले ही पुरुषों को कुछ हद तक अच्छी लगती हो,पर उनसे ज्यादा सफल पत्नियों के सामने पुरुष हीं भावना का शिकार होने लगते हैं.पर बदलते दौर में एक बात तय है कि अपने लगन और मिहनत से लड़कियों को सफल होने से कोई नही रोक सकता है. ऐसे में आवश्यकता है कि पुरुष अपने सोच में परिवर्तन लाएं और अपने अंदर के अहं को दूर करें ताकि पति और पत्नी दो पहियों की तरह जिंदगी की गाड़ी को सही रास्ते पर ले जा सकें.
क्या पुरुष वाकई सफल महिलाओं को पसंद करते हैं?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 28, 2011
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