रविवार विशेष- कविता- अनूठी शर्त

कन्या-पिता अभागे,वर-पिता के आगे,
रखकर पगड़ी अपनी बहुत गिडगिडाया |
वर-जनक सकपकाया,फिर असहमति में,
अपना गंजा सर आहिस्ते से हिलाया|
      यह देखकर कन्या-जनक रोने लगा,
      टेसू बहाकर अपनी कमीज,भिंगोने लगा|
      रहम-दिल वर-जननी उसमे उम्मीद जगाई,
      साथ ही उसने एक अनूठी शर्त फरमाई|
बरखुरदार! लेन-देन का मलाल नही,
फिर हम इतने हैं,कंगाल नही|
बस आपको एक गारंटी देनी होगी,
और हमारी प्रतिष्ठा बचानी होगी|
      हिम्मत बढ़ी कन्या-जनक की,
      अधीरता से पूछा  "क्या?"
      उत्तर मिला,"बहू असमय जल मरी तो,
      हमारा साथ आप देंगे क्या?"
                                          --पी० बिहारी 'बेधड़क'
रविवार विशेष- कविता- अनूठी शर्त रविवार विशेष- कविता- अनूठी शर्त Reviewed by Rakesh Singh on October 23, 2010 Rating: 5

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