रविवार विशेष- व्यंग -आम और आदमी

आम और आदमी 
कालू काका समाज में प्रबुद्ध साहित्य प्रेमी के रूप में चर्चित हैं.खासकर बच्चों के बीच वे कुछ विशेष लोकप्रिय हैं.आजकल वे विविध विषयों की जानकारी बच्चों के बीच परोसते रहते हैं.एक शाम उन्होंने आम और आदमी का प्रसंग छेड़कर बच्चों का बड़ा उपकार किया.उन्होंने अपनी छाती फुलाकर बताया,"वैसे तो आम का उल्टा 'खास' और आदमी का उल्टा 'औरत' है,लेकिन आम और आदमी के बीच से 'और' गायब होने पर 'आम आदमी' रह  जाता है जिसका सरलार्थ सामान्य लोग से है.फिर आदमी के पूर्व 'खास' जुड़ जाने से 'विशिष्ट व्यक्ति' का बोध होता है.शब्दों के घालमेल से कुछ नए अर्थों का जन्म होता है जिस प्रकार 'हाइड्रोजन' और 'ऑक्सीजन' के मेल-मिलाप से जल पैदा हो जाता है.यह बात दीगर है कि 'खास आदमी' की औकात का पता 'आम आदमी' के सिवा अन्य को नही हो सकता." वे एक लंबी सांस लेकर पुन:रहस्योद्घाटन में जुट गए.पगडंडी छोड़कर मुख्य मार्ग को अपनाया.'आम और आदमी'के सहज स्वभाव और स्वरुप का भंडाफोड़ किया,"आम जबतक 'टिकोरे' के रूप में पेड़ पर झूलता है और आदमी 'टुच्चा' नेता के रूप में गली-गली में नारे लगाता  है,मजलूमों के हक-हकूक की बातें करता है,आम आदमी की नजरों में रहता है.फिर समय के फेर से उनमे अजीब निखार आने पर आम आदमी से दरकिनार होने लगते हैं.पेड़ से अलग होने पर 'आम' टोकड़ी में घुसने को बेताब हो जाता है तो चुनाव जीतने के बाद 'नेता' कुर्सी हथियाने की होड में हाँफते नजर आते हैं.अपनों को  अंगूठा दिखाकर दोनों अपनी-अपनी मंजिल की ओर कूच कर जाते हैं.एक ललचाकर तो दूसरा लालच दिखाकर.आम आदमी हाथ मलता रह जाता है.यद्यपि आम के दर्शन हमें हरसाल हो ही जाते हैं मगर नेता का थोबड़ा  अमूमन पांच वर्षों के बाद ही हमें दर्शन लाभ करता है." अपनी ज्ञान की पिटारी बंद कर काका ने अपनी विजयी मुस्कान की बत्ती जलाई.साहित्य और विज्ञान का सामान्य ज्ञान पाकर बच्चे निहाल हो गए.उन्होंने समवेत स्वर में नारा लगाया,"काका प्यारे,सबसे न्यारे."
                                                                                      पी० बिहारी 'बेधड़क'
                                                                   अधिवक्ता,सिविल कोर्ट,मधेपुरा.
रविवार विशेष- व्यंग -आम और आदमी रविवार विशेष- व्यंग -आम और आदमी Reviewed by Rakesh Singh on October 03, 2010 Rating: 5

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