रविवार विशेष- कविता- ठंढा का फंडा

                                     ठंढा का फंडा
था कभी बोतल में,कीट का अंदेशा;
मिल गया अब कीट नाशक का संदेशा .
गला फाड़ क्यों चीख रहा है अखबार?
इतनी नासमझ तो  नही है अपनी सरकार!
            क्या बोतल का माल यूँही सड़ने दे?
            स्वास्थ्य की चिंता कंपनी को न करने दें?
            'ठंडा का फंडा'भोली जनता क्या जाने,
            नही जानती वह बेचारी पेस्टीसाईड के माने.
उसकी 'अमृत पेयजल योजना' भी हुई बेकार,
नेताओं को है बस उसके वोट की दरकार.
पाइराईट और आर्सेनिक युक्त जहरीला जल,
पी लेती बेचारी जनता,मानकर उसे गंगाजल.
         चर्मरोग और आंत्रशोथ ने मचाया हाहाकार,
        लेकिन काटती चक्कर बोतल की  हमारी सरकार.

                                        --पी० बिहारी 'बेधड़क'
                              अधिवक्ता,सिविल कोर्ट मधेपुरा
रविवार विशेष- कविता- ठंढा का फंडा रविवार विशेष- कविता- ठंढा का फंडा Reviewed by Rakesh Singh on October 03, 2010 Rating: 5

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