रविवार विशेष- लघुव्यंग कथा- आदर्श

आदर्श 
चुनावी सभा का मंच.पार्टी के कद्दावर नेताओं के आगमन में अभी देर थी.सभा को संबोधित करने के लिए स्थानीय नेताओं को मौका मिला.संचालक ने माइक संभाली.खुशामदी आलंकारिक स्वर उभरा,"अब हमारे प्रेरणास्रोत, वयोवृद्ध,आदर्श समाजसेवी एवं स्वतंत्रता सेनानी बाबू ज्ञानचंद टोपीवाला आपलोगों के बीच अपने मुखारबिंद से वचनामृत बांटकर मृत राष्ट्रप्रेम में नवजीवन का संचार करेंगे,धन्यवाद!" खादी धोती,कुर्ता और गांधी  टोपीधारी वृद्ध राष्ट्रभक्त ने झट से माइक लपक लिया.सधे स्वर में नाराजगी भरा सन्देश सुनाई दिया,"प्यारे राष्ट्रप्रेमियों!अपने वतन कि खातिर हमने सर से कफ़न बाँध कर
फिरंगियों से लोहा लिया.बोरिया -बिस्तर गोलकर सात-समंदर पार जाने पर हमने उसे आखिर विवश ही कर दिया.आज अपनों ने ही राष्ट्र की दुर्दशा करने में कोई कोर-कसर नही छोड़ी है.स्वस्थ परम्परा का परित्याग कर अपने राष्ट्र की अनुपम गौरव-गरिमा को तिलांजली दे दी है.स्वार्थ में जोर लगा कर शोर मचा रहे हैं.देश की जनता फटेहाली में जी रही है.हर महकमे में गबन-घोटाले और रिश्वतखोरी का बाजार गर्म है.यह सुशासन नही कुशासन है.ऐसी सरकार हमारे लिए मानो भार है......|और इस भार को उतार फेंकने के लिए हमें अब तैयार हो जाना चाहिए.हम वादा करते हैं-हमारी पार्टी ऐसी सरकार देगी जो आपके दुःख दर्द की दवा करने में पूरी निष्ठा के साथ चाक-चौबंद व्यवस्था करने में सक्षम होगी,जय जन जय भारत." बूढ़ी काया में अदभुत जोश देखकर सभा अभिभूत हो उठी.जोरदार तालियों की गडगडाहट सुन विकास की छाती चौड़ी हो गयी.
      आदर्श नाना के होनहार नवासे विकास अपने स्कूली साथियों के बीच हीरो बन गया.स्कूल में गर्मी की छुट्टी हुई.वह ननिहाल जा पहुंचा.बैठक में नानाजी से बातचीत कर ही रहा था कि थानेदार की रौबदार आवाज गूंजी,"अबे बुड्ढे ! तुम्हारा लम्पट छोंकरा नजर नही आ रहा है.स्साले हराम का माल आराम से हजम कर जाता है और हमारा हिस्सा हवा में गम हो जाता है." हडबडाकर समाजसेवी जी कांपते स्वर में व्यावसायिक पांसा फेंका,"हुजूर! अमानत म खयानत नही हो सकता.हुजूर की सेवा में मैं स्वयं हाजिर हूँ." थानेदार विकास पर उचटती नजर डाली और आगे बढ़ गए.यह देख-सुन कर विकास सन्न रह गया.उसके मुंह से बस बेदम स्वर फिसल पाया,"वाह रे आदर्श !."
पी० बिहारी 'बेधड़क'
अधिवक्ता,सिविल कोर्ट मधेपुरा.
रविवार विशेष- लघुव्यंग कथा- आदर्श रविवार विशेष- लघुव्यंग कथा- आदर्श Reviewed by Rakesh Singh on September 26, 2010 Rating: 5

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