‘सचमुच संगीत में देवता का वास होता है’: निर्मल के तबले की थाप पर होश खो बैठते हैं श्रोता

भगवान् अपने प्रिय पात्र को धरती पर जब भेजते हैं तो उन्हें इस बात का गम होता है कि वे उसके बिना कैसे रह पाएंगे. ऐसे में वे उसमें अपना रूप यानि संगीत भर देते हैं ताकि इस रूप में वे साथ रह सकें.
शायद इसलिए भी जब हम संगीत की किसी अद्भुत प्रतिभा को सुनकर होश खोने लगते हैं तो कहते हैं कि इसकी प्रतिभा ‘गॉड-गिफ्टेड’ यानि ईश्वरीय-प्रदत्त है.
    गौरवशाली बिहार के कोसी की समृद्ध धरती से ऐसे ही दर्शन को मानने वाले हम जिस हीरे को आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं उसने होश सँभालने के बाद कब संगीत को अपने जीवन में उतार लिया, इस 25 वर्षीय अद्भुत प्रतिभा को पता भी न चला.  सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 5
किलोमीटर दक्षिण दिवारी गाँव को अधिकांश लोग अब निर्मल यदुवंशी के गाँव के नाम से जानने लगे हैं. हो भी क्यों न, इस गाँव ने निर्मल यदुवंशी के रूप में एक हीरा जो पाया है.
    होली की पूर्व संध्या पर हमारे आमंत्रण को स्वीकारते मधेपुरा टाइम्स स्टूडियो की शोभा बढ़ाने जब निर्मल यदुवंशी ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया तो सबों का सुधबुध खो बैठना स्वाभाविक था. तबले पर सधी थाप सम्मोहित करने और यह बताने के लिए काफी थी कि वैशाली के राज्य स्तरीय युवा महोत्सव में सूबे के सभी प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए कोसी की मिट्टी में पले-बढे निर्मल ने ही पहला स्थान क्यों प्राप्त किया. 14 जुलाई 1992 गुरु पूर्णिमा को दिवारी, सहरसा में पिता श्री नारायण यादव और माता श्री मती अहिल्या देवी के घर जन्म लिए निर्मल बताते हैं कि वैसे तो पूरा परिवार ही संगीत से जुड़ा था, पर संगीत से लगाव दादा स्व० भुटाय प्रसाद यादव की वजह से हुआ. दादा उन्हें जान से भी ज्यादा मानते थे और उस समय में जब पास के एक गाँव में निर्मल ने पहली बार तबला देखा था तो दादा जी से तबले के लिए कहा तो दादा ने बनारस से तबला मंगा कर निर्मल को दिया था.
    गाँव से भले प्रारंभिक शिक्षा और सहरसा से इंटर तक की पढ़ाई निर्मल ने की हो पर संगीत का नशा चढ़ा तो सामान्य पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था. फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संगीत और तबला में स्नातक तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने के बाद निर्मल वर्तमान में बीएचयू से ही ‘उतर भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बिहार के संगीतज्ञ एवं रसिकों का योगदान’ विषय पर शोध कर रहे हैं. जाहिर सी बात है संगीत में जीवन समर्पित कर देने वाले इस शख्स की झोली में उपलब्धियां भी दिल खोलकर आने लगी.
    प्रयाग संगीत समिति द्वारा आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मलेन में रजत पदक, बिहार राज्य स्तरीय युवा महोत्सव, वैशाली (2016) में तबला वादन में सूबे में पहला स्थान लाने वाले निर्मल यदुवंशी इलाहाबाद, वाराणसी, पटियाला, रायपुर, इंदौर, भोपाल आदि जगहों पर भी सम्मानित हो चुके हैं.
    सहरसा के जाने माने अपने पहले गुरु गौतम सिंह और इलाहबाद के वर्तमान गुरु विपिन किशोर श्रीवास्तव को निर्मल श्री देना नहीं भूलते हैं जिनकी बदौलत ही इतनी उपलब्धियां और सफलताएं मिल रही हैं. तबला में उपलब्धियां हासिल करने के दौर में निर्मल अपने कुछ उन पुराने दिन को नहीं भूलते जब मनोहर हाई स्कूल में पहली बार बिना प्रैक्टिश के ही उन्हें मंच पर उतार दिया गया था और उन्होंने बाल मुकुंद सर का तबला फोड़ दिया था. हालांकि अब उस घटना को निर्मल और उनके सर भी मीठी यादों की तरह ही मानते हैं.  हालाँकि इसी तबला ने निर्मल को एनसीसी की तरफ से राजपथ पर तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के सामने भी प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया है.
    सादगी और संस्कार को पसंद करने वाले मृदुभाषी निर्मल यदुवंशी को सोच भी हर विषय पर कुछ अलग तरह की है. जीवन का लक्ष्य पूछने पर निर्मल मधेपुरा टाइम्स को बताते हैं कि जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य बेहतर इंसान बनने की कोशिश करते रहना होगा.

निर्मल यदुवंशी के तबले का जादू यहाँ सुने. -वीडियो-1
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(रिपोर्ट: आर. के. सिंह)
‘सचमुच संगीत में देवता का वास होता है’: निर्मल के तबले की थाप पर होश खो बैठते हैं श्रोता ‘सचमुच संगीत में देवता का वास होता है’: निर्मल के तबले की थाप पर होश खो बैठते हैं श्रोता Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 12, 2017 Rating: 5
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