माधव प्रसाद यादव: क्लार्नेट और बांसुरी वादन में दैवीय गुण प्राप्त यह शख्स है गाँवों में बसती कला-संस्कृति की अद्भुत पहचान

मधेपुरा का यह सख्स चकाचौंध की दुनियां में लगभग गुमनाम है और इनकी गुमनामी कला-संस्कृति के ठेकेदारों के लिए शर्मनाक बात है. 78 साल के इस वृद्ध व्यक्ति के थरथराते होठ जब बांसुरी और क्लार्नेट जैसे कठिन वाद्ययंत्र को छूते हैं तो लगता है मानो सरस्वती साक्षात धरा पर उतर आई हो.
    मधेपुरा के शंकरपुर प्रखंड के लालपुर गढ़ी टोला के माधव के मन में संगीत तब जगा जब हमारा देश आजाद भी नहीं हुआ था. वर्ष 1937 में जन्मे इस शख्स ने भले ही सैंकड़ों जगह अपनी क्षमता दिखाने के प्रयास किये हों, पर ये बात यहाँ लागू होती दीखती कि आधुनिक समय में कला और संस्कृति को भी अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष के अलावे पैरवी और पहुँच की जरूरत होती है. पर ऐसा भी नहीं है कि बांसुरी और क्लार्नेट वादक और शास्त्रीय संगीत पर अद्भुत पकड़ रखने वाले कला के इस पुजारी को कोई भी सम्मान नहीं मिले हों. वर्ष 2006 में सिंहेश्वर मंदिर न्यास समिति के द्वारा आयोजित भजन संध्या में जहाँ माधव प्रसाद यादव की अद्भुत प्रस्तुति ने श्रोताओं का मन मोह लिया और प्रशासन ने इन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया वहीँ वर्ष 2011 में बिहार दिवस पर जिला प्रशासन की ओर से भी माधव प्रसाद यादव सम्मानित हुए.
    पर संगीत जैसी कठिन विधा में पारंगत यह अद्भुत सख्स उनसे भी कही ऊँचे सम्मान के हकदार थे. मधेपुरा टाइम्स टीम जब जानकारी मिलने पर लालपुर गढ़ी टोला पहुंची तो उस समय भी ये वाद्ययंत्र में लीन थे. गढ़ी टोला मानो ठहरा हुआ था और अपने आप में एक कलाकार की दुर्दशा की कहानी कह रहा था. हमारे सामने उन्होंने न सिर्फ क्लार्नेट पर ‘ए मेरे वतन के लोगों’ और ‘जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती है बसेरा’ जैसे गाने हूबहू गाकर सबों की आँखें नम कर दीं बल्कि बांसुरी पर ‘बेटी की विदाई’ के गीत प्रस्तुत कर मोहित कर दिया. यही नहीं माधव प्रसाद यादव के चौथेपन के थरथराते गले से हारमोनियम के साथ शास्त्रीय संगीत की रागेश्वरी राग में जब गीत फूटे तो यह साबित होने में देर न लगी कि कोसी के सुदूर देहातों में अब भी कला का वो रूप बसता है, जो शहरों में होने वाले प्रायोजित कार्यक्रमों में नहीं दीख पाता है.
    माधव प्रसाद यादव का बचपन गाँव में ही गुजरा और प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही बड़े-भाई की देखरेख में हुई. अपने बचपन को याद करते ये बताते हैं कि उनके गाँव में दरभंगा के संगीत प्रेमी लोकनाथ ठाकुर का कामत हुआ करता था, जिन्होंने बालक माधव को बांसुरी बजाते देखा तो उन्होंने इनमे विलक्षण प्रतिभा देखकर गुरु की भूमिका निभा दी. फिर क्या था, माधव को उनकी मदद से ही राजस्थान के मोहन सिंह और लखनऊ के नफीस मास्टर से हारमोनियम में भी महारथ हासिल करने का मौका मिल गया. फिर तो वर्ष 1962 में यूपी के चौरीचौरा समेत भारत के कई बड़े थियेटरों में इन्हें बांसुरी, हारमोनियम और क्लार्नेट बजाने का अवसर प्राप्त होने लगा और इनके बिना मानो कई बड़े थियेटरों में जान ही नहीं आ पाती थी.
    पर एक कहावत है, ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध’. माधव को बाहर तो थोडा-बहुत सम्मान मिला, पर मधेपुरा के कला-संस्कृति से जुड़े तथाकथित बड़े लोगों की उपेक्षा के ये शिकार हो गए. कभी किसी ने इनकी काबिलियत को परखा तो सामूहिक कार्यक्रम में प्रशस्ति पत्र देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली.
    हालांकि जिस माधव प्रसाद यादव के घर के हर कोने में संगीत बसता हो, वहां इसकी छाप तो छूटनी ही है. एक तरफ जहाँ गाँव की धूल में खेलते इनके घर के बच्चे भी संगीत कला में निपुणता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं वहीँ इनके एक पुत्र शैलेन्द्र कुमार दिल्ली सरकार के स्कूल में संगीत शिक्षक बनकर माधव प्रसाद यादव के संगीत की विरासत को एक नया आयाम दे रहे हैं.
    आइये हम आपको सुनाते हैं संगीत के इस जादूगर माधव प्रसाद यादव की अद्भुत क्षमता कुछ वीडियो में.
1.    क्लार्नेट पर ‘ए मेरे वतन के लोगों’ सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
2.    क्लार्नेट पर ‘जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ..” सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
3.    समदौन (बेटी विदाई) का गीत बांसुरी पर सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
4.    हारमोनियम पर रागेश्वरी राग में माधव को सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
(ब्यूरो रिपोर्ट)
माधव प्रसाद यादव: क्लार्नेट और बांसुरी वादन में दैवीय गुण प्राप्त यह शख्स है गाँवों में बसती कला-संस्कृति की अद्भुत पहचान माधव प्रसाद यादव: क्लार्नेट और बांसुरी वादन में दैवीय गुण प्राप्त यह शख्स है गाँवों में बसती कला-संस्कृति की अद्भुत पहचान  Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 29, 2015 Rating: 5
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