बरसाती मेढकों की तरह टर्र-टर्र करते ये नेता

|वि० सं०|12 अक्टूबर 2013|
जनाब हाइबरनेशन से फिर बाहर है. समाज सेवा की बातें टर्र-टर्र कर रहे है. दूसरे माध्यम से कमाए गए रूपयों में से लाखों खर्च करने के तैयार है. जी हाँ, ये चुनाव का मौसम है और इसमें वायदों की बारिश होती है, और इस बारिश में ये नेता बरसाती मेढकों की तरह बाहर आ जाते हैं.

      सिर्फ मैं ही बदल सकता हूँ क्षेत्र को,बाक़ी सब तो सत्तू खाकर पॉलिटिक्स कर रहे हैं. एमपी बनने की दौड़ में ये भी दावेदार हैं, भले ही इन्हें क्षेत्र की समस्याओं से साढ़े चार साल कोई वास्ता नहीं रहता है, पर इस सीजन में ये खुद को अवतार की तरह पेश करते हैं. अखबार में अपना बयान भी मर्यादापुरुषोत्तम की तरह छपवाने की कोशिश में रहते हैं. लोग जानते हैं इनके पास पैसा छोड़कर कुछ नहीं है. इस बार तो आपका ही चांस सबसे ज्यादा बनता है, कहकर झींट रहे हैं इनसे पैसे. ये खुश हैं और ये मुगालते पाले हुए हैं कि चलो पिछली बार जनता ने नासमझी में इन्हें वोट नहीं दिया, अबकी बार जनता को समझ आ चुकी होगी, कहीं जीत जाएँ तो बात बन जाएँ.
      पर नेता जी को ये बात पता नहीं है कि लोग इनपर हंस रहे हैं और इनका मजाक उड़ाते हैं क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है. पर वैसे वोटर जिन्हें खाने के लाले पड़े हैं वो तो पांच सौ हजार लेकर इन्हें वोट दे ही सकते हैं क्योंकि वे गरीब जरूर हैं, पर उनकी जमीर नहीं मरी है, ऐसे नेताओं की तरह.
बरसाती मेढकों की तरह टर्र-टर्र करते ये नेता बरसाती मेढकों की तरह टर्र-टर्र करते ये नेता Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 12, 2013 Rating: 5

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