मुखिया जी की पहिचान बोलेरो/ दोनाली हो गई.
‘पंचपरमेश्वर’ मुर्गा-अंगूरी/ पैसे वालों के,
‘सरपंच’ के साथ साढू/ साला-साली हो गई.
गाँव-टोले उजड़े/ वन-उपवन सूखे-लुटे-पिटे,
अमराई-महुआनी निर्जन/ 
सुरसरि गंदी नाली हो गई.
पंचायत-चौपाल ईर्ष्या/ राजनीति के अड्डे,
सब्जबाग सिमटे/ ताल-तलैया भर गये,
नयना तरसे/ वर्षों देखे हरियाली हो गई.
कृत्रिमता की क्रीत भाग-दौड़ में दिन-दिन
अमृत विष/ और शुष्क-रिक्त खुशहाली हो गई.
(शीघ्र प्रकाश्य प्रबंध काव्य ‘हनुमान आ गये हैं’ से साभार)
* डॉ० रामलखन सिंह यादव
प्रथम अपर जिला जज,
मधेपुरा (बिहार)
M- 9431612360
सज्जनता अब गाली हो गई//डॉ० रामलखन सिंह यादव
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