राकेश सिंह/03 अगस्त 2012
सरकार के स्वास्थ्य संबंधी दावों की धज्जी उड़ा रहे हैं मधेपुरा सदर अस्पताल के चिकित्सक.आये दिन यहाँ के डॉक्टरों और कर्मचारियों की लापरवाही से लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं, जिसके कारण ये मौत का अस्पताल भी बन रहा है.पीड़ित परिजन कभी-कभार अपना आक्रोश इन चिकित्सकों और यहाँ के कर्मचारियों पर भी निकाल लेते हैं.चिकित्सक अपनी सुरक्षा के मांग पर तो उतरते हैं पर अपने कृत्य में सुधार लाने का कोई प्रयास नहीं करते.
सदर अस्पताल मधेपुरा इन दिनों रेफर अस्पताल भी बन कर रह गया है.मरीज यदि थोड़ा भी गंभीर हो तो ये तुरंत ही उसे दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह दे देते हैं, जो इस बात को साबित करता है कि यहाँ न तो बेहतर व्यवस्था है और न ही योग्य चिकित्सक.सबसे बुरी बात तो ये है कि रेफर अस्पताल कर्मियों और नर्सों के द्वारा मरीज के अस्पताल घुसते ही कर दिया जाता है, बहुत से मामलों में चिकित्सक तो मरीज को दर्शन भी नहीं देते हैं.
लौआलगान चौसा की फरजाना डिलीवरी की मरीज थी.पीएचसी चौसा ने देखा और तुरंत ही सदर अस्पताल मधेपुरा रेफर कर दिया.चौसा की जननी एम्बुलेंस सेवा से फरजाना को सदर अस्पताल मधेपुरा लाया गया.पर यहाँ तो कोई डॉक्टर उसे देखने तक नहीं पहुंचा.ड्यूटी पर मौजूद नर्स ने तो फरजाना के परिजनों को डांटना ही शुरू कर दिया कि यहाँ क्यों आई हो, जाओ यहाँ से बाहर.कर्मचारियों और नर्सों ने उन्हें ‘मौखिक रेफर’ कर भगा दिया.शुक्र था कि सहरसा में केजरीवाल के यहाँ फरजाना दाखिल हुई और नॉर्मल डिलीवरी से वह माँ बन सकी.
हैरत की बात तो यह है कि सदर अस्पताल मधेपुरा से रोगियों को बिना देखे ही सदर अस्पताल सहरसा भेज दिया जाता है जहाँ की सुविधाएँ यहाँ से भी कमजोर दिखती है.सहरसा अस्पताल की स्थिति इतनी बुरी है कि वहाँ स्वीपर और तांत्रिक भी अस्पताल में इलाज करते हैं.ऐसे में मधेपुरा के रोगियों की जान सरकारी अस्पतालों के भरोसे हमेशा खतरे में है.
कभी भगवान का रूप माने जाने वाले चिकित्सकों की कार्यशैली इन दिनों खूसट बनिया की तरह हो गयी है जिन्हें दवा से लेकर जांच तक में ‘हैवी कमीशन’ चाहिए.ऐसे में बीमार अब डॉक्टर नहीं भगवान भरोसे होकर रह गए हैं.
सदर अस्पताल बन कर रह गया रेफर अस्पताल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 03, 2012
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