कोसीनामा-3

कोसी की पानी में ही नहीं बल्कि बिहार में आने के बाद गंगा के पानी में भी काफी ताकत आ जाती है। गंगा और  कोसी का मैदानी इलाका जितना उपजाऊ है, उतनी ही उर्वरा शक्ति यहां की मिट्टी में भी है।
कोसीनामा के पहले भाग में जिक्र किया गया था कि कोसी की दृष्टि सभी के लिए समान है। हर किसी को कोसी एक ही नजर से देखती है लेकिन जब पूरे इलाकाई भाषा की ओर गौर करें तो आप बिना गंभीर हुए नहीं रह सकते।
दिल्ली में अक्सर लोगों के मुंह से सुन सकते हैं, हरियाणवी को 'रोड' 'रोड़' नजर आता है और बिहारी को 'बिहाड़ी" कहना पसंद है। बिहार में भी सुन सकते हैं कि 'हवा बहती है, न बहता है, हवा बहह है।' ऐसे में दिल्ली में बिहार के लोगों को यह हमेशा सुनना पड़ता है कि उनमें लिंग दोष काफी अधिक होता है। उन्हें पता नहीं होता कि 'स','श' और 'ष' का उच्चारण कहां से होता है? उन्हें पता नहीं होता कि 'र' और 'ड़' का उच्चारण कहां होता है? ऐसा में 'रश्मि' का उच्चारण 'ड़स्मि' तो कभी कुछ और कर देते हैं। 'घोड़ा' को 'घोरा' भी कह देते हैं और हंसी के पात्र बनते हैं। जब दिल्ली में दिल्ली और यूपी के लोग उन्हें बतौर 'इंटरटेनमेंट आब्जेक्ट' के तौर पर लेते हैं तो बिहार के लोग परेशान हो जाते हैं। 'फ्रस्टेशन' के शिकार हो जाते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं सूझता कि आखिर वे लिखते तो बढ़िया हैं लेकिन उच्चारण दोष क्यो हो जाता है। उन्हें क्यों नहीं पता है कि स्त्रीलिंग क्या है और पुलिंग क्या?
क्या आपको मालूम है कि बिहार की दो भाषाएं मसलन मैथिली और भोजपुरी, दोनों में पुलिंग और स्त्रीलिंग का अलग-अलग प्रयोग नहीं होता। यही नहीं, इन दोनों भाषाओं की जितनी 'सिस्टर लैंग्वेज' यानी अंगिका, मगही, वज्जिका आदि भाषाओं में भी चाहे पुरुष हो या स्त्री, सभी के लिए एक ही तरह का संबोधन है। कोसी और गंगा की पानी सभी के लिए समान है। हिन्दी में जब हम बात करते हैं तो पुरुष को कहते हैं, 'तुम जा रहे हो', वहीं महिला को कहेंगे, 'तुम जा रही हो' लेकिन जब हम मैथिली में बोलेंगे तो कहेंगे, 'अहां जा रहल छी।' मैथिली में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला पुरुष है या स्त्री। मैथिली या कोसी में पुरुष और स्त्री के भेद न होने के कारण जो छात्र वहां पढ़ाई करते हैं वे हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में इनके अंतर को समझते हैं लेकिन घर आते-आते भूल जाते हैं कि  पुरुष से कैसे और स्त्री से कैसे बात करनी है।
दिल्ली के स्कूलों और कॉलेजों में 'बड़ी ई', 'छोटी इ', 'बड़ा ऊ', 'छोटा उ' जैसे शब्द खूब सुनने को मिलेंगे। शुरू में जब बिहार के छात्र यहां पढ़ाई करने आते हैं तो उन्हें समझ ही नहीं आता कि यह बड़ा और छोटा क्या होता है। ऐसे में यह बात जान लेनी जरूरी है कि बिहार, बंगाल का इलाके में जो पढ़ाई होती है, उसका जुड़ाव कहीं न कहीं संस्कृत से होता है जबकि पश्चिम यूपी और दिल्ली में अरबी, फारसी का प्रभाव कहीं अधिक है। जहां हम बिहार में दीर्घ और ह्रस्व का प्रयोग करते हैं वही दिल्ली आकर बड़ी और छोटी में तब्दील हो जाती है।
कोसी और गंगा के इलाकों में जहां स, श और ष के लिए हम कहते हैं 'दंत स', 'तालव्य श' और 'मूर्धन्य ष', वहीं दिल्ली आकर ये सड़क वाला 'स', शक्कर वाला 'श' और षटकोण वाले 'ष' में बदल जाता है। यानी जहां कोसी/गंगा इलाके में छात्रों को बताया जाता है कि किस 'स' का उच्चारण मुंह के किस भाग से से होता है लेकिन उच्चारण करने पर जोर नहीं दिया जाता वहीं दिल्ली/यूपी आने पर छात्रों और शिक्षकों को यह पता नहीं होता कि इन तीन शब्दों का उच्चारण कहां से होता है लेकिन वे उच्चारण सही करते हैं। बहरहाल, 'कोस-कोस पर बदले पानी, दस कोस पर बानी' को याद करते हुए इसका इकोनोमिक्स और सोशल साइंस समझना आवश्यक है कि आखिर कुछ उच्चारणों के कारण दिल्ली में बिहारी गाली क्यों बन जाती है। कोसी और गंगा के पानी में पैदा हुए लोग जिस तरह के इंटेलीजेंट, लेबोरियस के साथ कर्मठ होते हैं तो जाहिर सी बात है कि दिल्ली आने पर बाकी लोग उनकी क्षमता से घबराते हैं और अपनी कुंठा को 'बिहारी' कहकर प्रकट करने के लिए विवश होते हैं।

--विनीत उत्पल,नई दिल्ली
कोसीनामा-3 कोसीनामा-3 Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 11, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. Rightly said Vinit. People of Bihar & rest of India should understand that Hindi is not mother tongue of Biharis .Hindi is the official language of Bihar. If next time some one make fun of your spoken Hindi tell them that you have your own language(Bhojpuri,Maithili etc.) and you can also speak and write in HIndi.

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