पृथ्वी का अंत -विज्ञान कथा

 यह विज्ञान गल्प मै उन महान आत्माओं को समर्पित करता हूँ जिन्होंने मानव को सही दिशा प्रदान की है |
सारा विश्व स्तव्ध था की यह क्या होने जा रहा है ?इससे तो पूरी मानव जाति का सर्वनाश हो जानेवाला था | मानव अपने अभिमान और स्वार्थ के लिये महायुद्ध का बिगुल बजाने वाला था |कुछ भी नहीं बचने वाला था | यू.एन भरसक प्रयास रत था की दोनों मे समझौता हो जाये तो इस महा विनाश को रोका जा सकता है | लेकिन युद्ध टलने के आसार नहीं थे हालाकिं वे दोनों भी जानते थे की युद्ध हुआ
तो कोई नहीं बचेगा | यू .एन . का प्रयास विफल रहा और इसके साथ ही तीसरे विश्वयुद्ध के बिगुल बजने से रोकने वाला कोई नहीं था |
विश्व का विकाश रुक गया | सभी जगह अफरा तफरी मच गई थी| सभी अपने अपने बचाव की तैयारियां मे लगे थे |सर्वत्र अराजकता का बोल बाला हो गया था | कहीं भी कुछ भी घट सकता था , उसे देखने वाला कोई नहीं था | सभी अपने बचाव के लिये प्रयासरत थे | इस आणविक युद्ध मे कुछ बचनेवाला था ही नहीं | जो बचने वाला था वो था सन्नाटा, मानव का क्रूर रूप ,वहसी रूप | सभी अपनी इच्छा पूर्ति के लिये भाग दौर कर रहे थे क्यूंकि कुछ देर बाद कुछ बचने वाला नहीं था | बीमार मनुष्य को देखने वाला कोई भी नहीं है , वह बिलख बिलख कर अपना दम तोड़ रहे थे और भगवान से कह रहे थेहे भगवान अगले जनम मे तुम मुझे नाली का कीड़ा बनाना परन्तु इंसान नहीं बनाना |
महायुद्ध किसी भी पल आरम्भ हो सकता है | सूर्य अभी तक नहीं निकला था चारों तरफ अंधकार ही अंधकार है ,एक एक पल काटना मुश्किल सा लग रहा है | बेचैनियाँ इतनी है की लगता है आज का सूर्य देखना भी नसीब मे नहीं है | सभी आतंकित है और कह रहे है कि  सूर्य देवता भी मानव की तरह धोखेबाज निकले | चारों और सन्नाटा था ,तभी पक्षियों की चहचहाहट गूंजी तब लगा चलो आज का सूर्य तो देख लेगे |इधर बेचारे पशु-पक्षी अपने-अपने घरों से निकल चुके थे भोजन की तलाश मे |उन्हें यह ज्ञात भी नहीं था की यह अंत है | पक्षियों के कलरव और जानवर के करतव मे मानव भूल सा गया था की वो अंत के करीब है |
प्रकृति भी अपने पूरे यौवन पर थी | पक्षी अपनी मीठी मीठी आवाजो से प्रकृति को संगीतमयी बना रहा था | फूलों की भीनी भीनी खुशबुओं से बातावरण खुशगवार बनाये हुए था |तरहतरह के रंबिरंगे फूलों तथा प्रकृति की सुन्दरताओ मे मानव अपने अंत को भूल गया था | पेड़ पौधे झूम झूम कर अपनी सारी खुशियों को मानव पर बिखेर रही थी | लेकिन बेजुवानो को क्या पता की जिसे वो अपनी खुशियाँ दे रहे है ,कट कट कर न्योछावर हो रहे, वही विश्वासघात पर उतारू है | मानव कितना श्वार्थी है जिसने अपने जीवन को दावं पर लगा कर लोगो को जीवन प्रदान की वही आज सबों के सर्वनाश का कारण बन गया है |
इस अनहोनी से बेखवर जलचर जीब अपने मे मगन हो कर खेल रहे थे ,घूम रहे थे उन्हें कोई चिंता नहीं थी |कभी ऊपर आते कभी जलराशि की गहराईयों मे चले जाते थे |उनका जीवन चक्र नित्य की गति से गतिशील था |बड़ी से बड़ी तथा छोटे से छोटे जलचर को कुछ पता नहीं था की यह कुछ ही पालो का की बात है ,क्रूर मानव उसे मौत के नींद सुलाने जा रहा था ,आखिर इन बेचारो ने मानव का क्या बिगाड़ा था ?
सही कहा गया है विनाश काले बिपरीत बुद्धि जिसे मौत आती है उसकी मति भ्रष्ट हो जाति है ,और वही हुआ महायुद्ध आरम्भ हो गया |पशु पक्षी , जलचर जिव , तथा वेजुवान वृक्ष सभी अवाक् थे मानव की धोखेवाजी को देखकर |चारो तरफ जहरीली गैसों के घने बादल छा गये थे गर्मी इतनी प्रचंड हो गई थी की सरे जिव जंतु पैड पौधे सभी झुलसने लगे थे | पशु पक्षी सभी जहाँ तहां मरने लगे परन्तु मरने से पहले ये निरीह जिव मानव की तरफ नफरत से देखते और कहते –“ अरे विवेकशील मानव तुम्हारा विवेक कहाँ गया मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था तुम प्यार के काबिल नहीं ,नफरत के काबिल हो मै तुमसे नफरत करता हूँ | चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ था हर कोई मर रहा था कोई किसी को देखने वाला नहीं था बच्चें माँ माँ कर चीख रहे थे लेकिन सुनेगा कौन ? सभी झुलस रहे थे ,जहाँ तहां लाशों का अम्बार लगा हुआ था | धृवों का बर्फ तेजी ले पिघलने लगा जिसके करण समुद्रों की लहरें बस्ती मे पहुच कर पूरी पृथ्वी को जलमग्न करने पर उतारू थी |जहाँ तक नजर जाती थी लाशें ही लाशें नजर आती थी |गर्मी इतनी प्रचंड थी जिससे नदी नाले तथा समुद्र का पानी खौलने लगा था |पृथ्वी भी अब कहाँ बर्दास्त करने वाली थी वह भी मानव से बदला लेने के लिये कांप उठी | पृथ्वी जहाँ तहां फटने लगी सरे ज्वालामुखी जाग उठे समूची पृथ्वी जल उठी |परन्तु यह बदला किससे ? मानव तो खुद ही अपने आप को समाप्त कर चुका था. और इस प्रकार यह खूबसूरत पृथ्वी नष्ट हो गई |
बच्चे इस प्रकार पृथ्वी के सर्वनाश के दृश्य को देखकर खो गये थे की लगता था की उन्हें सचमुच पृथ्वी पर भेज दिया गया हो | उन बच्चों का विवेक यह मानने को कतई तैयार नहीं था कि पृथ्वी को समाप्त करने मे मानव का हाथ था ,लेकिन टीचर ने कहा तो यह बात झूठ नहीं हो सकती है |
बच्चोंबच्चे टीचर की आवाज़ सुनकर हरबरा गये ,उनके चेहरे पर अविश्वनियेता झलक रही थी | “ बच्चों तुमने देखा कि पृथ्वी सुलग रही है और क्यों सुलग रही है ? “
जी हाँसभी बच्चें एक साथ बोले |
बच्चों ,क्या तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं हुआ है ?” टीचर हरएक बच्चे के चेहरे को देखते हुए पूछा |
नहीं सर ये बात नहीं है लेकिन ?....?”
लेकिन क्या मेरे बच्चों ?”
लेकिन सर यह पृथ्वी कितने दिनों से सुलग रही है ?” बच्चे अपनी जिज्ञाषा को सामने रखा |
दिनों से ?.... दिनों से नहीं बच्चों यह तो लाखों बर्षो से सुलग रही है ?”
सर ..?”
हाँ हाँ बेटे तुम भी पूछो
सर मानव इतने बुद्धिमान और अच्छे थे तो भी पृथ्वी नष्ट हो गई ?”
हूँवो मानव ,बेटे वो मानव बहुत ही स्वार्थी था, जो सिर्फ अपने सुख के बारे मे सोचता था,और वो खुद भी मानव का दुश्मन था | ये सही है मानव हमसे ज्यादा बुद्धिमान था , परन्तु स्वार्थी था अभिमानी था ,वे एक दूसरे को देखना नहीं चाहता था |तुमलोगों ने देखा कि किस प्रकार दो राष्ट्र अड़े थे अपने स्वाभिमान के खातिर | कोई भी मध्यस्तता का प्रयास सफल नहीं हुआ ,लेकिन वो खुद भी जानते थे की कोई नहीं बचेगा लेकिन .....? इतना बोलकर टीचर चुप हो गये तभी एक बच्चे ने पूछा –“पृथ्वी की खोज किस प्रकार हुई ?”
तुमने बहुत ही अच्छा सवाल किया है , इस पृथ्वी की खोज का एक दिलचस्प घटना सामने आयाकुछ रुक कर – “जानते हो बच्चों ,सभी मानव एक जैसे नहीं थे ,उसमे भी शांतिप्रिय मानव थे ,वे दोस्ती भी करना जानते थे, वे चाहते थे कोई किसी से झगड़ा  नहीं करे, सभी एक हो और उसी मानव के दोस्ती के सन्देश के कारण हमारे क्रिंस ग्रह के बैज्ञानिक यह जान पाए की आकाश गंगा मे और भी दूसरे ग्रह आबाद है और वो हमसे दोस्ती करना चाहते है चुप हो कर एक लंबी सांस ली फिर बोलना शुरू किया –“बात बहुत पुरानी है जब हमरे दादाजी का जन्म हुआ था ,हमारे वैज्ञानिक आकाश गंगा की सैर कर रहे थे तभी उस यान मे अलर्ट टोन बजने लगाखतरा खतरा वह वैज्ञानिक चौंक गया उसकी नजर कम्प्यूटर स्क्रीन पर गई एक बिंदु आकार बराबर प्रकाशित हो रहा था ,उन लोगो को बड़ा आश्चर्य लगा क्योंकि इससे पूर्व वहाँ कुछ नहीं था | वे सभी उस बिंदु का अध्यन करने लगे |उनकी नजर बराबर उस बिंदु पर टिकी हुई थी | अनेक प्रयासों के बाबजूद उस बिंदु का रहस्य नहीं जान पा रहे थे |कुछ दिनों बाद ज्ञात हुआ की वो बिंदु चलायमन है और अपनी जगह बदल रही है | इस खबर को बैज्ञानिक कितने दिनों तक छुपा कर रख सकते थे ,यह खबर समूचे क्रिंस ग्रह पर आग की तरह फ़ैल गई | वैज्ञानिक परेशान थे आखिर ये क्या है ? कही ये क्रिंस ग्रह के लिये खतरा न बन जाये | या कोई धूमकेतु रास्ता भटक कर हमारी आकाशगंगा मे तो नहीं आ गया है |कुछ दिनों बाद स्पष्ट हुआ कि यह कोई धूमकेतु नहीं कोई अज्ञात यान है किसी सुदूर ग्रह का और क्रिंस ग्रह के लिये खतरे की घंटी है | वे सभी सुरक्षा के उपाय ढूँढने लगे |जैसे जैसे समय नजदीक आता जा रहा था उस अज्ञात चीजों का आकार पक्षी जैसा लगने लगा |समूचे क्रिंस ग्रह पर अज्ञात खतरे के कारण चिंता फैली थी और क्रिंस ग्रह के वासी खुली आँखों से देख पा रहे थे जो स्नेह स्नेह नजदीक आ रहा था जिससे इस ग्रह पर भय की लहर ब्याप्त थी और बैज्ञानिक इस रह्श्यमय चीजों के रह्श्य को तलास मे दिन रात एक किये हुए थे |कुछ दिनों बाद इस रह्श्य का रहस्योद्घाटन हुआ की यह क्रिंस के लिये ये खतरा नहीं है बल्कि किसी सुदूर ग्रह का कृत्रिम उपग्रह है जो भटक कर हमारे आकाशगंगा मे आ गया है | इस जानकारी से क्रिंस ग्रह वासी को राहत मिली |लेकिन इससे कई प्रश्न खड़े हो गये मसलन ये उपग्रह रास्ता क्यों भटका ,और ये आया कहाँ से और इसे किसने भेजा है ,क्या हमरे अलावा और किसी ग्रह पर जीवन है आदि आदि | लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं था | वह कृत्रिम उपग्रह क्रिंस के वायुमंडल मे प्रवेश कर चुका  था और वैज्ञानिक स्पस्ट देख रहे थे ,इस उपग्रह मे पक्षी के सामान दो चौड़े पंख थे ,मध्य भाग चौकोर था और उस चौकोर बॉक्स के ऊपर छतरी नीमा डिश लगा हुआ था |वैज्ञानिक इसे सफल्तापुर्बक ग्रह पर उतरने मे सफल हुए | इसके बाद तो एक के बाद एक राज खुलता चला गया |इस तथ्य को जान कर सारे क्रिंस वासी आश्चर्यचकित रह गये थे की हमारी आकाशगंगा के बाद भी कोई दूसरी आकाशगंगा है जहाँ हमारी तरह वहाँ भी जीवन है |” इतना बोल कर टीचर चुप हो गये | सारे बच्चे शांति से सुन रहे थे.
बच्चों क्या तुम मे से कोई ये बता सकता है की हमलोग क्यों मजबूर हुए की वो पृथ्वी है ?
नहीं ?”
तो सुनो वह जो कृत्रिम उपग्रह था वो इसी पृथ्वी से आया था और इसमें दोस्ती का सन्देश था |” तभी वेळ बज उठी सभी बच्चे इतने ध्यान मग्न थे की वेळ की आवाज़ उन्हें सुनाई नहीं दिया |

बच्चों अब तुम लोग घर जाओ वेळ लग चुकी है ,लेकिन मेरी इस बात को सदा ध्यान मे रखना कि पृथ्वीवासी की तरह ऊँचा उठना लेकिन उनकी तरह अहम नहीं पालना नहीं तो हमारी भी वही दशा होगी जैसे पृथ्वीवासी की हुई थी यही आज का मूल पाठ भी है इतना बोलकर टीचर दरवाजे की तरफ बढ़ गये |

समाप्त
 --दीपक कुमार मनीष,मधेपुरा
(संपर्क:९९३१३५९१७५)
 


पृथ्वी का अंत -विज्ञान कथा पृथ्वी का अंत -विज्ञान कथा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 17, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. कुछ लंबी पर सुन्दर पर भाव अस्पष्ट नहीं हो सका???

    ReplyDelete

Powered by Blogger.