गाँव वालों की मौज,रोज हो रहे भोज

राकेश सिंह/०९ मई २०११
पंचायत चुनाव चल रहे हैं.प्रत्याशियों ने जीतने के लिए पूरा दम-ख़म लगा दिया है.जैसे भी हो,जीतना है.गाँवों में मतदाताओं को लुभाने में दिन तो दिन रात भी मिहनत करते गुजर रही है.अधिकाँश प्रत्याशी खर्च भी अनाप-शनाप कर रहे है. उम्मीद पर ही जिंदगी चलती है.आज लगाओ,कल पाओ.जीत जायेंगे,तो फिर पैसों की तो बरसात होगी ही मानो पंचायती राज न आया लूट लो ऑफर हो.मुखिया पद इस बार सबसे लुभावना है.कहीं-कहीं तो एम एल ए से भी भाग्य आजमाए हुए प्रत्याशी अब मुखिया की दौड़ में है.इनकी चिंता तब तक रहेगी जब तक चुनाव परिणाम सामने न आयेंगे.
    कारण है,मतदाताओं को परखना अब पहले जैसा नही रहा. प्रत्याशी जानते है कि बहुत से मतदाता मुंह बाए खड़े हैं.मुंह नही भरोगे तो ये किसी भी दिशा में पलट सकते है.मतदाता भी इस बात को जानते हैं कि इनसे बाद में लेना टेढी खीर है,कमीशन दिए बिना कोई काम नही होने को
है.अभी भी तो कम से कम कुछ ले लो.मतदाताओं के मन को भांप कर प्रत्याशी भी इन्हें नकद नारायण के अलावे इनके खातिर में भी दिन रात एक किये हुए हैं.अब तो बिहार के विकास में एक और अध्याय जुड ही गया है-वो है हरेक पंचायत में दारू की दूकान.प्रत्याशी और मतदाता भी सरकार की योजना को आगे बढाने में लगे हुए हैं.पंचायतों में चुनाव के समय दारू की बिक्री भी बेहिसाब बढ़ गयी है.जिंदगी भर ठर्रा (देशी दारू) पीने वाले भी अभी 'इंगलिश' से नीचे नही उतर रहे हैं.मतदाता सभी प्रमुख प्रत्याशियों से ये कहकर लाभ ले रहे हैं कि किसी को इनकार कर दुश्मनी करने से क्या फायदा, अरे, वोट तो हम आपको ही देने जा रहे हैं.चूल्हे पर मांस बन रहे हैं, मतदाताओं की लपलपाती जीभ को देखकर प्रत्याशी खुश हो रहे हैं कि चलो ये वोट तो अपना हुआ.
    बगल के शहर में रह रहे गाँव के वोटर की और भी चांदी है.चुनाव के दिन आने के लिए गाड़ी-रिजर्व का भाड़ा तो मिल ही रहा है और जब तक चुनाव संपन्न नही हो रहे हैं,खातिर भी प्रत्याशी खूब कर रहे हैं.उनके जेहन में ये बात बैठी हुई है कि ऐसा समय दुबारा फिर अगले चुनाव में ही आने वाला है.
     जहाँ चुनाव हो चुके हैं,वहां प्रत्याशी इस समीक्षा में आग-बबूला हो रहे हैं कि अमुक व्यक्ति ने पैसा मुझसे लिया और वोट दूसरे को दिया.मतदान भले ही गुप्त हो,पर बात खुल ही जा रही है.प्रत्याशियों के दलाल पता कर कैलकुलेशन में लगे हैं कि किसने किसको वोट दिया है.
     कुल मिलाकर, मतदाताओं की स्थिति अभी 'नए दामाद' की तरह है जिसने ससुराल में जो भी फरमाइशें कीं, उसे तुरंत ही पूरा करने में लोग जुट जाते हैं.
गाँव वालों की मौज,रोज हो रहे भोज गाँव वालों की मौज,रोज हो रहे भोज Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 11, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. kya baat hai....lakin bhoj khane wale ye nahi sooch rahe hai ki bhoj ka sara kharch mukhiya jee unse hi wasool karenge...hahahhahaha...pyare bhole bhale janta....

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