नगर परिषद् में हुए गबन के मामले में सरकार उदासीन

रूद्र ना० यादव/१० मई २०११
राज्य में सरकार द्वारा जहाँ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात की जा रही है,वहीं अभी भी भ्रष्टाचार के कुछ पुराने मामलों में सरकार की ओर से कोई ठोस कार्यवाही होती नहीं देखी जा रही है.आलम यह है कि सरकार के कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग/सामान्य प्रशासनिक विभाग में वर्षों पूर्व भ्रष्टाचार में संलिप्त जिन अधिकारियों के विरूद्ध प्रपत्र गठित कर आवश्यक कार्यवाही हेतु सरकार से अनुसंशा की गयी है,वैसे अधिकारियों के विरूद्ध अबतक कार्यवाही की बात तो दूर, उलटे ऐसे अधिकारियों को प्रोन्नति का भी तोहफा भी सरकार द्वारा दिया जा रहा है.इस क्रम में उल्लेखनीय है कि नगर परिषद्, मधेपुरा के अंतर्गत भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले में तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी सुधीर कुमार के विरूद्ध दिनांक ०६/१०/२००७ को जिला पदाधिकारी, मधेपुरा राजेश कुमार ने प्रपत्र- गठित कर आवश्यक कार्यवाही हेतु सरकार से अनुसंशा की थी.परन्तु तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी सरकार द्वारा अब तक मामले में
कोई ठोस कार्यवाही होती नही दिख रही है.ज्ञातव्य है कि वित्तीय वर्ष २००३-०४ में शहर के सौन्दर्यीकरण के वास्ते नगर विकास विभाग, बिहार सरकार के उप सचिव ने अपने पत्रांक २४७ दिनांक २०-०१-२००४ के द्वारा वेपर लाईट, मर्करी, कूड़ादान, बल्व,कम्प्यूटर, प्रिंटर एवं चापाकल मद में मो० १४,९६,२७२.०० रू० की प्रशासनिक स्वीकृति इस शर्त पर दी थी कि मशीनों, उपकरणों के क्रय हेतु विधिवत क्रय समिति का गठन कर विहित प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हुए क्रय समिति का अनुमोदन प्राप्त कर ही सामग्री क्रय किया जाय.लेकिन तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी ने बिना क्रय समिति का गठन किये ही सामग्री खरीद लिया.उक्त सामग्री के क्रय हेतु सम्बंधित पदाधिकारी के द्वारा सहज रूप से एक सामान्य बैठा ०७-१०-२००३ को बुलाकर परिषद् के कुल १८ सदस्यों में से ०९ सदस्यों के हस्ताक्षर प्राप्त किये, जिनमे सदस्य रेखा देवी ने एक शपथ पत्र दायर कर इस बात की पुष्टि की कि धोखे से उनका हस्ताक्षर प्राप्त किया गया है.इसी सामान्य बैठक में बहुमत के सदस्यों के सहमति के बगैर ही सामग्री क्रय का निर्णय आनन-फानन में लिया गया.हैरत की बात तो यह है कि उक्त बैठक में उक्त सामग्री क्रय हेतु लिए गए निर्णय के आलोक में सामग्री क्रय भी उसी दिन स्थानीय स्तर पर दुकानों/प्रतिष्ठानों से किया गया, जैसा कि अधिकांश प्रतिष्ठानों से सामग्री क्रय से सम्बंधित अभिश्रव से ज्ञात होता है.ऐसी स्थिति में एक ही दिन सामग्री क्रय हेतु बैठक,उसी दिन सामग्री का क्रय संभव नही लगता है यानी उक्त तिथि को सामग्री का क्रय पूर्णतया संदेहास्पद है.दूसरी ओर उल्लेखनीय यह भी है कि अपर समाहर्ता स्तर पर गठित जांच दल के प्रतिवेदन में सामग्री क्रय से सम्बंधित अनेक दुकानों का अता-पता नही होना भी प्रतिवेदित किया गया है जैसा कि उन्होंने अपने पत्रांक १६५/गो० दिनांक १३.११.२००६ में प्रतिवेदित किया है.आरोपों के बावत पत्रांक-७२/-२ दिनांक २२-११-२००८ के द्वारा तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी, उदाकिशुनगंज के रूप में कार्यरत सुधीर कुमार का स्पष्टीकरण संतोषप्रद नही प्रतीत होता है.उनके स्पष्टीकरण से यह साफ़ तौर पर स्पष्ट है कि क्रय समिति का गठन किये बगैर अनियमित तरीके से सामग्री क्रय की कार्यवाही की गयी और आंख मूँद कर अवैध तरीके से क्रय से सम्बंधित अभिश्रवों को पारित किया गया और लाखों लाख सरकारी राशि का गबन करने में अपनी अहम भूमिका निभायी.
 उपरोक्त तथ्यों की जानकारी सूचना के अधिकार के अंतर्गत अंगद यादव को बिहार सरकार के सामान्य प्रशासनिक विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी ने अपने पत्र सं० २/सू० अ०-८०९/२०१०-४५०० के द्वारा उपलब्ध कराई गयी है.प्राप्त जानकारी के आलोक में श्री यादव ने कहा कि तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद्, मधेपुरा सुधीर कुमार के विरूद्ध उपलब्ध साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि सामग्री क्रय अनियमित तरीके से की गयी और क्रय हेतु स्वीकृत १४,९६,२७२.०० रू० के अधिकांश भाग का फर्जी अभिश्रवों एवं विपत्रों के जरिये राशि का विशुद्ध रूप से गबन किया गया.उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला पदाधिकारी से प्राथमिकी दर्ज करने हेतु कार्यवाही की मांग की है.
नगर परिषद् में हुए गबन के मामले में सरकार उदासीन नगर परिषद् में हुए गबन के मामले में सरकार उदासीन Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 10, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. गबन पे गबन और गबन के गबन,
    सरकार की मिलीभगत तो रहेगी ही उदासीन.
    मधेपुरा के नागरिकों के लिए बाढ़ राहत और उसमें दिए गए अनाज का गबन तो हुआ ही, संयुक्त राष्ट्र की इकाईओं के राहत सामग्री तथा गैर सरकारी संगठनों के नाम पर लूट में नगर परिषद् के कुछ सदस्यों का नाम आया. नगर परिषद् के चुनाव और बाद में तथाकथित अविश्वास प्रस्ताव भी गबन के अIधIर पर था. सरकार का उदासीन रहना लाज़िमी है.

    ReplyDelete

Powered by Blogger.