रूद्र ना० यादव/११ मई २०११
स्वास्थ्य विभाग की ‘जननी बाल सुरक्षा योजना’ जिले में मखौल बन कर रह गया है.चिकित्सकों, ए एन एम, ‘आशा’ तथा ‘ममता’ कार्यकर्ताओं ने इसे ‘बंदरबांट योजना’ का रूप दे दिया है.
दरअसल इस योजना को शुरु करने के पीछे सरकार की मंशा कुछ और रही होगी.गरीब गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाकर ‘सुरक्षित प्रसव’ करा कर सरकार ने प्रसव के दौरान जच्चा और बच्चा की मृत्यु दर को कम करने को सोचा
था.पर अस्पताल से जुड़े कुछ लोगों ने इस मंशा की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर बाक़ी नही रखी है.सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जो बच्चे गाँव में घर पर भी पैदा हो रहे हैं, उन्हें भी ‘आशा’ तथा ‘ममता’ कार्यकर्ता राशि का लोभ
देकर अस्पताल ले आते हैं और उनका नाम अस्पताल में होने वाले प्रसव की सूची में दर्ज करवा दिया जाता है.फिर इनके नाम पर सरकार द्वारा जी जाने वाली अनुदान राशि निकाल कर ये बंदरबांट कर लेते हैं.कभी-कभी तो एक ही बच्चे की माँ का दूसरा फर्जी नाम या फिर पति का नाम भी बदल कर प्रसवों की संख्यां बढ़ा दी जा रही है. अगर सही तरीके से जांच हो तो इस
गोरखधंधे के पीछे एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है जो ए एन एम, ‘आशा’ तथा ‘ममता’ को गाँव में बच्चे पैदा होने की जानकारी देता है.फिर ये उस जच्चा-बच्चा को पीएचसी तक लाते हैं जहाँ ये खानापूर्ति की जाती है कि ये बच्चा अस्पताल में ही पैदा हुआ है.इससे जुड़े एक मामले का खुलासा अभी पुरैनी में भी हुआ जहाँ फर्जी तरीके से माता पंजीकरण के रूप में भुगतान किया गया.देखें तो जिले में स्वास्थ्य विभाग दलालों का अड्डा बनकर रह गया है और इन दलालों के गुट में ‘आशा’ और ‘ममता’ कार्यकर्त्ता भी शामिल हो गयी हैं.सूत्र बताते हैं कि माता को पंजीकरण से मिलने वाले १४०० रू० में से चिकित्सक,ए एन एम, आशा या ममता तथा एकाध दलालों में बटने के बाद आधी से भी कम राशि ‘जननी’ तक पहुँच पाती है.कुछ समय पहले बच्चे पैदा होने पर ‘खुशनामा’ हिजड़ों की टीम ले जाती थी,अब उनकी जगह इन दलालों ने ले ली है.
था.पर अस्पताल से जुड़े कुछ लोगों ने इस मंशा की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर बाक़ी नही रखी है.सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जो बच्चे गाँव में घर पर भी पैदा हो रहे हैं, उन्हें भी ‘आशा’ तथा ‘ममता’ कार्यकर्ता राशि का लोभ
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गोरखधंधे के पीछे एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है जो ए एन एम, ‘आशा’ तथा ‘ममता’ को गाँव में बच्चे पैदा होने की जानकारी देता है.फिर ये उस जच्चा-बच्चा को पीएचसी तक लाते हैं जहाँ ये खानापूर्ति की जाती है कि ये बच्चा अस्पताल में ही पैदा हुआ है.इससे जुड़े एक मामले का खुलासा अभी पुरैनी में भी हुआ जहाँ फर्जी तरीके से माता पंजीकरण के रूप में भुगतान किया गया.देखें तो जिले में स्वास्थ्य विभाग दलालों का अड्डा बनकर रह गया है और इन दलालों के गुट में ‘आशा’ और ‘ममता’ कार्यकर्त्ता भी शामिल हो गयी हैं.सूत्र बताते हैं कि माता को पंजीकरण से मिलने वाले १४०० रू० में से चिकित्सक,ए एन एम, आशा या ममता तथा एकाध दलालों में बटने के बाद आधी से भी कम राशि ‘जननी’ तक पहुँच पाती है.कुछ समय पहले बच्चे पैदा होने पर ‘खुशनामा’ हिजड़ों की टीम ले जाती थी,अब उनकी जगह इन दलालों ने ले ली है.
पर यहाँ सभी खुश है,जिससे कोई शिकायत भी नही दर्ज हो पाती है.अस्पताल के कर्मचारियों और दलालों की पौ-बारह है जो एक ही बच्चे की दो-चार माओं और पिताओं का नाम दर्ज करा कर अलग-अलग राशि निकाल कर सरकार को चपत लगा रहे हैं.जननी इसलिए खुश है कि उन्हें इन्होने भाड़ा देकर मंगवाया है और अस्पताल में कुछ घंटे रहकर इन्हें कम से कम चार-पांच सौ रूपये मिल रहे हैं.
यहाँ सरकारी राशि के लूट के साथ एक और महत्वपूर्ण बात ये हो रही है कि सरकार द्वारा सम्बंधित आंकड़े इनकी वजह से झूठे साबित हो रहे हैं.स्वास्थ्य विभाग की अन्य कई योजनाओं का भी कमोबेश यही हाल है.इस विभाग में लूट के बारे में यही कहा जा सकता है कि, सिलसिला ये सदियों का, कोई आज की बात नही.सरकार अगर इन योजनाओं में हो रहे अनियमितताओं की जांच करवाए,तो यकीन मानिए और भी कई चौंकानेवाले तथ्य सामने होंगे.
बच्चे नहीं नोट पैदा कर रही ‘जननी’
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 11, 2011
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dangerous situation..
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