ज्ञान का खजाना हुआ दीमक के हवाले

रूद्र नारायण यादव/२३ मार्च २०११
जिला प्रशासन की नाक के ठीक सामने यानि समाहरणालय के सामने ये है जिले का सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालय- 'जिला केन्द्रीय पुस्तकालय एवं वाचनालय'.भवन को बाहर से ही देखते आप समझ जायेंगे कि ज्ञान का ये महत्वपूर्ण स्थान सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है.पूरे जिले में जहाँ बिहार दिवस समारोह मनाया जा रहा है वहीं इस अवसर पर भी  इस पुस्तकालय की दुर्दशा को देखने वाला शायद आज कोई नहीं है.इसमें पड़ी लाकों की किताबों को दीमक चट कर गए हैं जो यह दर्शाता है कि
जिला प्रशासन को शिक्षा के मामले से कोई खास सरोकार नही है.किसी भी जगह के लिए पुस्तकालय को एक महत्वपूर्ण धरोहर माना जाता है.इसमें कोई शक नहीं कि शिक्षा की उन्नति में सरकारी पुस्तकालय एक अहम भूमिका अदा कर सकती है.पुस्तकों के रखरखाव की जिम्मेदारी जिला प्रशासन के द्वारा तय होनी चाहिए.जिला मुख्यालय के इस पुस्तकालय के बारे में यहाँ तक कहा जाता है कि इसमें कुछ कर्मचारी भी नियुक्त हैं पर वे कभी नजर नही आते.अगर नजर आते और किताबों पर तनिक भी ध्यान दिया जाता तो शायद ज्ञान के इस महत्वपूर्ण भंडार को दीमक के हवाले नही कर दिया जाता.
      जहाँ जिले में अनगिनत योग्यताएं किताबें तथा पढाई की अन्य सुविधा के अभाव में मंजिल पाने से पहले ही दम तोड़ देती है वहीं जिला पुस्तकालय की ये उपेक्षा नीतीश सरकार की शिक्षा के प्रति गंभीरता का मजाक उड़ा रही है.शायद अब भी प्रशासन की नजर इसपर पड़े और ये बहुमूल्य धरोहर जिले के लोगों के लिए उपयोगी साबित हो सके.
ज्ञान का खजाना हुआ दीमक के हवाले ज्ञान का खजाना हुआ दीमक के हवाले Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 23, 2011 Rating: 5

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