कहा जाता है कि हिंदू धर्म में गणगौर व्रत को विशेष महत्व दिया जाता है। यह व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसे भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित किया गया है। इसे तृतिया तीज के नाम से भी जाना जाता है। "गणगौर" नाम "गण" (भगवान शिव) और "गौर" (माता पार्वती) के संयोजन से बना है।
मुरलीगंज मारवाड़ी समाज की महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के स्टॉल, विविध मनोरंजक प्रतियोगिता, नृत्य-संगीत आदि का कार्यक्रम हुआ। मौके पर मारवाड़ी समाज की महिला, युवती, बच्चों आदि ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और खूब मनोरंजन किया। देर शाम तक कार्यक्रम चला।
वहीं दूसरे दिन मारवाड़ी समाज की महिलाओं में बड़े ही हर्षोल्लाह के साथ कुँवारी लड़कियाँ एवं विवाहित महिलाएँ शिव जी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए "गोर गोर गोमती" गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है।
मुरलीगंज गोल बाजार स्थित श्री गौतम शारदा पुस्तकालय में महिलाओ ने किया और (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है - गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं, चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गोरी (माँ पार्वती ) और ईसर (शिव) की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। वहीं महिलाओं ने बताया कि राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है।
मुरलीगंज में गणगौर का पवित्र त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया गया। माता की विदाई मुरलीगंज के बलुआहा नदी की किया गया। गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।
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