उन्होंने बताया कि भगवान शिव ने जब राजा दक्ष के यज्ञ में बलि देखी, तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर राजा दक्ष को दंड दिया। यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि किसी भी जीव की हत्या अधर्म है।
राजा दक्ष की कथा से शिक्षा
भागवत कथा में देवी राधा किशोरी ने बताया कि राजा दक्ष अहंकार में डूबे हुए थे। उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया और यज्ञ में एक बकरे की बलि दी। इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजा, जिन्होंने दक्ष का सिर काटकर उन्हें उनके पापों का दंड दिया। अंततः भगवान शिव ने दक्ष को जीवनदान दिया, लेकिन उनका सिर एक बकरे के सिर से बदल दिया गया।
इस कथा का तात्पर्य यह है कि बलि देना एक अमानवीय कृत्य है, जिसे भगवान स्वीकार नहीं करते। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि अहंकार मनुष्य के पतन का कारण बनता है। यदि हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें अहंकार का त्याग करना चाहिए।
कलियुग में सच्ची बलि
आज के समय में बलि प्रथा का कोई स्थान नहीं है। देवी राधा किशोरी ने कहा कि हमें अपने भीतर के अहंकार की बलि देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि कलियुग में सबसे बड़ी बलि यह होगी कि हम अपने बुरे कर्मों, बुरी आदतों और अहंकार को त्याग दें। जब हम अपने अहंकार का त्याग करेंगे और विनम्रता अपनाएंगे, तभी हमारे जीवन में सुख-शांति आएगी।
धार्मिक ग्रंथों में बलि का विरोध
देवी राधा किशोरी ने कहा कि धर्मग्रंथों में किसी भी जीव की हत्या का समर्थन नहीं किया गया है। भगवान कृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि सभी प्राणी समान हैं और हमें सभी के प्रति दया भाव रखना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ लोगों ने धार्मिकता के नाम पर बलि प्रथा को बढ़ावा दिया, लेकिन यह सत्य धर्म नहीं है। धर्म का वास्तविक अर्थ अहिंसा, प्रेम और दया है।
समाज में संदेश
कथा में शामिल श्रद्धालुओं ने इस संदेश को आत्मसात करने का संकल्प लिया कि वे किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करेंगे। लोगों ने कहा कि वे अपने परिवार और समाज में भी इस बात का प्रचार करेंगे कि जीवों की बलि देना पाप है और हमें अपने अहंकार व बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए।
देवी राधा किशोरी की इस भागवत कथा से यह स्पष्ट होता है कि बलि देना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह हमारे धर्म के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। यदि हम सच में भगवान की भक्ति करना चाहते हैं, तो हमें हिंसा छोड़कर प्रेम और करुणा का मार्ग अपनाना चाहिए। बलि देने के बजाय हमें अपने अहंकार, क्रोध और बुरी आदतों की बलि देनी चाहिए, जिससे हमारा जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण बने।
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 02, 2025
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