उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ नीतीश कुमार की नहीं है. इसमें राजद, वामपंथी दल और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी शामिल हैं. राजद और वामपंथी दलों ने तो अपने चुनावी घोषणा पत्र में शिक्षकों के मुद्दों को शामिल किया था और कहा था कि जब उनकी सरकार आएगी तो वह समान काम का समान वेतन देंगे और शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा भी मिलेगा. आज भी उनके आंदोलन और मांगों को वामपंथी दलों का खुला समर्थन है, जबकि राजद के भी कई लोग उनकी मांगों को जायज मानते हैं लेकिन नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े हैं और भ्रष्ट, अव्यवहारिक नौकरशाहों की चंगुल में फंसे हैं, उनके निर्णय से सरकार में शामिल अन्य दलों की विश्वसनीयता भी प्रभावित हो रही है. इतना ही नहीं नीतीश कुमार के.के. पाठक जैसे अधिकारी को शिक्षा विभाग में लाकर शिक्षा विभाग को बर्बाद और चौपट करने में लगी है.
उन्होंने कहा कि के.के. पाठक की छवि भले ही एक कड़क अधिकारी के रूप में हो, लेकिन वे जिस विभाग में भी गए उस विभाग को बर्बाद करके ही छोड़े हैं. जब वह खनन विभाग गए तो आज हालत सबके सामने है. गिट्टी, बालू लोगों को आसानी से मिलना मुश्किल हो गया है. जब वे मद्य निषेध विभाग में गए तो शराबबंदी भी ठीक तरह से लागू नहीं करा पाए. अब वे शिक्षा विभाग में आए हैं तो उनके निर्देशों और क्रियाकलापों से शिक्षक समुदाय में काफी आक्रोश पनप रहा है. उनके तुगलकी फरमान गैरकानूनी व असंवैधानिक है, ये शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाले अधिकारी हैं. शिक्षक समाज उनके फरमानों को कभी नहीं मानेगा, यदि शिक्षकों के साथ अन्याय हुआ तो वह अपने आंदोलन को और अधिक तेज भी करेंगे, जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा.
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 14, 2023
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