बड़ा सवाल यह है कि भाजपा और महागठबन्धन की कोसी-सीमांचल में इतनी राजनीतिक दिलचस्पी क्यों है. दरअसल यहां के 07 जिले में लोकसभा को 06 और विधानसभा की 37 सीट है. बहरहाल, लोकसभा की 05 सीटों पर और विधानसभा की 27 सीटों पर महागठबन्धन काबिज है. जबकि लोकसभा की 01 और विधानसभा की 10 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. गौरतलब है कि लोकसभा की एक भी सीट पर राजद का कब्जा नहीं है तो कांग्रेस के खाते में एकमात्र किशनगंज की सीट है. वहीं, बात विधानसभा सीट की करें तो जेडीयू को 12 सीट, भाजपा को 10 सीट, राजद को 09 सीट और भाकपा माले को 01 सीट प्राप्त है. राजद के 09 सीटों में 05 वह सीट भी है जिसे एआईएमआईएम ने जीता था और बाद में पाला बदल कर राजद के साथ हो लिया. ज़ाहिर है कि राजनीतिक रूप से भाजपा और महागठबन्धन दोनों के लिए यह इलाका समान रूप से संभावनाओं का क्षेत्र है क्योंकि यहां की सामाजिक संरचना ऐसी है कि ध्रुवीकरण के बाद बड़े राजनीतिक उलटफेर की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
वोटों के समीकरण के लिहाज़ से देखें तो यह इलाका महागठबन्धन के लिए राजनीतिक रूप से मुफ़ीद माना जाता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भाजपा नीत गठबन्धन के लिए यहां संभावनाएं नहीं है. दरअसल, यह इलाका मुस्लिम, यादव, अतिपिछड़ा और महादलित बहुल है और इसी कारण महागठबन्धन ने अपनी पहली संयुक्त रैली के लिए पूर्णिया का चुनाव किया. राजद को 'माय' समीकरण पर भरोसा है तो नीतीश कुमार के पास आज भी अतिपिछड़ा और महादलित वोट बैंक का पिटारा है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी की भी महादलितों के बीच अच्छी पैठ मानी जाती है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार जहां भी रहेंगे,16-20 फीसदी वोट उनके साथ होगा. लोकसभा चुनाव 2014 में जब नीतीश कुमार अकेले लोकसभा चुनाव लड़े थे तो उन्हें 16 फीसदी वोट हासिल हुआ था. वहीं, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब वे एनडीए के साथ थे तो उनकी पार्टी को 18 फीसदी मत प्राप्त हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव की तुलना में नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में बेहतर 'परफ़ॉर्मर' साबित होते रहे हैं. ऐसे में अगर भाकपा माले की पटना में आयोजित रैली में 18 फरवरी को खुले मंच से नीतीश कुमार जब कहते हैं कि 'मेरी मानिएगा तो भाजपा देश मे 2024 में 100 सीटों पर सिमट जाएगा' तो इसे केवल राजनीतिक बयानबाजी करार देना जल्दीबाजी होगी.
सीमांचल-कोसी में भाजपा की चुनावी रणनीति की बात करें तो बीते सितंबर माह में गृहमंत्री अमित शाह की पूर्णिया रैली से ही यह स्पष्ट हो गया था कि लोकसभा चुनाव 2024 में उसकी रणनीति क्या होगी. तब रैली के समय भाजपा नेताओं ने इस इलाके में बदलते डेमोग्राफी को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण एजेंडे का संकेत दिया था. सीमांचल में विधानसभा चुनाव 2020 में एआईएमआईएम की अप्रत्याशित सफलता ने भाजपा को एक अच्छा अवसर भी दिया है जो नीतीश कुमार और तेजश्वी यादव दोनों के लिए चिंता का विषय है. सीमांचल के 04 लोकसभा सीटों पर केवल अल्पसंख्यकों की आबादी लगभग 40 फीसदी है. किशनगंज सीट में अल्पसंख्यकों की आबादी 70 फीसदी, अररिया में 35 फ़ीसदी, कटिहार में 40 फ़ीसदी और पूर्णिया में 33 फीसदी बताई जाती है. महागठबन्धन के सोशल इंजीनियरिंग के जवाब में भाजपा निश्चित तौर पर हिंदुत्व कार्ड खेलना पसंद करेगी और ख़ासकर पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को 'हिन्दू' होने का एहसास दिलाना चाहेगी जो भाजपा के लिए 'मास्टर स्ट्रोक' और महागठबन्धन के लिए 'सर्जिकल स्ट्राइक' साबित हो सकता है.
स्पष्ट है कि पूर्णिया में महागठबंधन द्वारा रैली के आयोजन का उद्देश्य अमित शाह की रैली का जवाब और अपने आधार वोट को बचाना है. जेडीयू से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा भविष्य में अगर भाजपा के साथ जाते हैं तो 02-03 फीसदी वोट का नुक़सान नीतीश कुमार को भी उठाना पड़ सकता है. इसी प्रकार अगर देर-सवेर भाजपा सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी को भी अपने साथ लाने में सफल रहती है तो उसका भी लाभ भाजपा को मिल सकता है. राजद के लिए सबसे बड़ी चुनौती अल्पसंख्यक वोट-बैंक को सुरक्षित रखना है. निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव 2024 में भी असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम कोसी-सीमांचल के इलाके में विधान सभा चुनाव 2020 की तरह अपनी राजनीतिक ताक़त का एहसास कराना चाहेगी जो तेजश्वी के साथ-साथ नीतीश कुमार के लिए भी उनके मिशन में बाधक साबित हो सकता है. इस इलाके में 'पप्पू यादव',भी एक फैक्टर साबित हो सकते हैं. वे भले ही अपनी पार्टी जनअधिकार पार्टी के बूते चुनाव नही जीत पाएं लेकिन महागठबन्धन के लिए नुकसान का सबब जरूर बन सकते हैं. लब्बोलुआब, यह कि प्रथम दृष्टया कोसी-सीमांचल में महागठबंधन समीकरण के लिहाज से बढ़त लेती नजर आ रही है लेकिन भाजपा नीत गठबन्धन को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है.
- पंकज भारतीय (लेखक NDTV से जुड़े हैं).

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