दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से 1100 महिलाओं द्वारा निकाली गई कलश यात्रा

दिव्यज्योति जागृति संस्थान की ओर से मधेपुरा जिले के मुरलीगंज में प्रारंभ होने वाली श्रीमद् भागवत कथा आज से प्रारंभ की गई. सुबह के 10:00 बजे से ही को भगवा ध्वज के साथ कलश यात्रा निकाली गई. इसमें आकर्षक झांकियां भी प्रदर्शित की गई.


कलश यात्रा के.पी. महाविद्यालय के नजदीक एनएच 107 के किनारे कथा स्थल से कलश शोभायात्रा से शुरू हुई. विधिवत पूजा अर्चना के बाद कलश यात्रा को रवाना किया गया. कलश यात्रा पूर्व निर्धारित मार्ग कथा स्थल से निकलकर बेंगापुल पार करने के उपरांत, हाट बाजार, दुर्गा स्थान चौक, जयरामपुर चौक, हरिद्वार चौक, होते हुए मवेशी अस्पताल, गोल बाजार, अग्रसेन भवन रोड होते हुए पुनः यज्ञ स्थल पर आकर सम्पन्न हुई. 


कलश यात्रा में कृष्ण एवं अन्य देवों की झांकियों के साथ आशुतोष महाराज का रथ भी शामिल किया गया. इस कलश यात्रा में 1100 महिलाएं शामिल हुई. मार्ग में जगह-जगह लोगों ने पुष्प वर्षा कर यात्रा का स्वागत किया गया.
आजसे नौ दिवसीय कथा प्रारंभ होगी.


नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा बुधवार से प्रारंभ होगी. कथा प्रतिदिन दोपहर 2:00 बजे से संध्या के 6:00 बजे तक चलेगी. विदुषी कालिंदी भारती द्वारा कथा सुनाई जाएगी. कथा 21 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक नियमित रहेगी.


भागवत कथा के अवसर पर आज अहले सुबह से ही जब पीले वस्त्रों में महिलाओं की कलश यात्रा निकली तो शहर के मुख्य मार्ग से लेकर शहर के गोल बाजार तक मनमोहक नजारा देखने को मिला.


गोकर्णका आख्यान


आज प्रथम दिवस में भागवत महामात्य को बतलाते हुए कालिंदी भारती ने भागवत के महत्व को प्रतिपादित करने हेतु सूतजी एक अन्य प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि पूर्वकाल में तुंगभद्रा नदी के तटपर एक सुन्दर नगर बसा हुआ था, उस नगर में आत्मदेव नाम के एक ब्राह्मण थे, उनकी पत्नी धुन्धुली कुलीन एवं सुंदरी होने पर भी जिद्दी स्वभाव की थी. वह स्वभाव से क्रूर, बकवास करनेवाली और झगड़ालू थी. ब्राह्मण दम्पत्ति सब प्रकार से संम्पन्न थे, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी. जब उम्र अधिक हो गयी तो उन्होंने संतान-प्राप्ति हेतु कई प्रकार के दान-यज्ञ किये, लेकिन संतान नहीं हुई. एक दिन दु:खी होकर वह ब्राह्मण वन को चल दिया. चलते-चलते उसे प्यास लगी तो एक तालाब के किनारे गया और जल पीकर वहीं बैठ गया. दो घड़ी बीतने पर वहां एक सन्यासी आये. जब उन्होंने जल पी लिया तो ब्राह्मण उनके पास गया और अपनी व्यथा सुनायी. सन्यासी ने कहा कि ब्राह्मणदेव ! माया-मोह छोड़ दो, कर्मकी गति गहन है- सात जन्मतक तुम्हारे कोई संतान किसी प्रकार नहीं हो सकती. जब ब्राह्मण नहीं माना और प्राण त्यागने को तैयार हुआ तो सन्यासी ने एक फल देकर कहा कि यह फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे उसको पुत्र उत्पन्न होगा.


ब्राह्मण फल लेकर घर आया और सारा वृत्तान्त बताकर पत्नी (धुन्धुली) को फल दे दिया. पत्नी कुतर्की स्वाभाव की तो थी ही, उसने सोचा गर्भधारण की परेशानियों एवं प्रसव के पचड़े में कौन पड़े, इसलिए उसने वह फल नहीं खाया और अपनी गाय को खिला दिया. पति से झूठ बोल दिया की उसने फल खा लिया है और गर्भवती होने का नाटक करने लगी. देवयोग से उसी काल में उसकी बहन को भी बच्चा होने वाला था उसने बहन से मंत्रणा करके वह पुत्र अपने घर बुलवा लिया और स्वयं का पुत्र बता दिया और बहन को यह कहकर रख लिया कि मेरे स्तन में दूध नहीं है और इसका बच्चा मर गया है, यह मेरे बच्चे को पाल देगी. धुन्धुली ने पुत्र का नाम धुन्धुकारी रखा. आत्मदेव बड़ा प्रसन्न हुआ, तीन महीने के अन्तराल से उस गाय ने भी एक सुन्दर कन्ति वाले बालक को जन्म दिया. उसे देखकर ब्राहमण बड़ा प्रसन्न हुआ. बालक के कान गौ के कान-जैसे थे, अतः आत्मदेव ने उसका नाम गौकर्ण रखा.
आरती के उपरांत आज के कथा को विराम दिया गया.


 

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से 1100 महिलाओं द्वारा निकाली गई कलश यात्रा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से 1100 महिलाओं द्वारा निकाली गई कलश यात्रा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 21, 2021 Rating: 5

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