मालूम हो कि 2008 के प्रलयंकारी बाढ़ के बाद सरकार के द्वारा बाढ़ क्षेत्र में बाढ़ से प्रभावित आश्रितों के लिए लाखों की लागत से चौसा प्रखंड में करीब आधा दर्जन से अधिक "बाढ़ आश्रय" का निर्माण करवाया गया, लेकिन देखा जाए तो अधिकतर "बाढ़ आश्रय स्थल" निचले स्थानों में बनाया गया है. जिस में सब से पहले बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाता है या वहां तक पहुँचने का कोई साधन नहीं है. सरकार ने ये बाढ़ आश्रय बनवाकर सरकारी खजानों के रुपये को पानी मे बहा दिया है.
अभी बाढ़ का पानी निचले इलाके में पहुँच गया है. लोग ऊँचे स्थान की तरफ अपना रुख कर चुके हैं. अपने बच्चे और पशु के साथ पुल पर रहने को मजबूर हैं लोग, लेकिन बाढ़ आश्रय स्थल में नहीं.
ग्रामीण कहते हैं कि "बाढ़ आश्रय स्थल" खुद को बाढ़ के पानी से नहीं बचा पा रहे हैं तो हम लोगों को क्या बचाएगा. ये बाढ़ आश्रय नही बना है ये तो लूट आश्रय है, जहां सरकारी खजाने को अधिकारी और ठेकेदारों ने लूटा है. सरकार को चाहिए कि इस की जांच कर इस में दोषी पाए जाने वाले लोगों के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई करें. ऐसे भी आम दिनों में ये अतिक्रमणकारियों के कब्जे में रहता है.
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 04, 2021
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