बाढ़ का दर्द: तबाही मचती है और सपने टूटकर बिखर जाते हैं, स्थायी समाधान की दरकार

अपने इलाके में बात जब बाढ़ की करें तो इसके साथ जुड़ी कोसी नदी और उससे जुड़ी कोसी बराज बांध बनाया गया जो भारत-नेपाल सीमा के पास नेपाल में स्थित है. जिसका जलस्तर बढ़ जाने से बाढ़ की समस्या  होती है. ‌


कोसी नदी का नाम सुनते ही मन में भय उत्पन्न होता है. हर वर्ष बाढ़ से लोगों को आर्थिक रूप से क्षति देखने को मिलती है. वैसे इलाके जो बाढ़ ग्रसित हो उनके आसपास रहने वाले लोगों के घर माल जाल आदि की चिंता सताती रहती है जो दिन-रात पीड़ा देती है. इतना ही नहीं अपने प्रियजन के साथ-साथ अपने प्रिय पशु को भी लोग खो देते हैं. यह समस्या हर बार हमें असहाय बनाकर सामने आ खड़ी हो जाती है. खेतों में पानी लगने से फसल बर्बाद होती है. कृषि को भारी क्षति से गुजरना पड़ता है. वहीं महीनों पानी लगने से पेड़ पौधों की गलने, मलवा आदि से पर्यावरण पर भी संकट बढ़ जाता है. जिससे पर्यावरण दूषित हो जाता है. समस्त मानव जाति ही नहीं प्रकृति पर भी गहरा संकट और भी भयानक रूप लेने लगता है.  वहीं आप देखेंगे कि छोटे-मोटे गड्ढों में बारिश का पानी जम जाने से कई प्रकार के मच्छर पनपने लगते हैं और कचरा आदि पर बैठकर गंदगी फैलाते हैं. 


उत्तर बिहार में आई बाढ़ अपना रूप विकराल कर रही है और तबाही मचा रही है. हाल में सीवान, गोपालगंज, औरंगाबाद, बक्सर के अलावे कई जिलों को बाढ़- बारिश से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं मधुबनी, बेतिया समेत कई जिला मुख्यालय में बारिश का पानी जमा है. मिली जानकारी के अनुसार बारह प्रखंड ऐसे हैं जो पूर्वी चंपारण के बाढ़ के कारण अत्यधिक प्रभावित हैं. पांच प्रखंड मुजफ्फरपुर के हैं. बाढ़ की शुरुआत नेपाल से होती है. कोसी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से भारत में प्रवेश करती है. इसके भौगोलिक स्वरूप को देखें तो पता चलेगा कि पिछले 250 वर्षों में 120 किलोमीटर का विस्तार कर चुकी है. कोसी नदी निरंतर अपना क्षेत्र फैलाती जा रही है. काठमांडू से एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए जाने वाले रास्ते में कोसी की 4 सहायक नदियां मिलती है:- तिब्बत की सीमा से लगा नामचे बाजार कोसी के पहाड़ी रास्ते का पर्यटन के हिसाब से सबसे आकर्षक स्थान है अरुण, तमोर लिखूं, दूधकोसी, तामकोशी, सुन कोसी, इंद्रावती की प्रमुख नदियां है जो नेपाल में या कंचनजंगा के पश्चिम में पड़ती है. 


बिहार में बाढ़


2016 में बिहार के लगभग 12 जिले बाढ़ की चपेट में आए. 23 लाख से ज्यादा प्रभावित होने वाले का आंकड़ा रहा. 2013 में बाढ़ का असर, 50 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. 2011 में बाढ़ ने मचाई तबाही 25 जिलों प्रभावित 71.43 लाख  लोगों के जनजीवन पर बुरा असर पड़ा. 2008 में बिहार के 50 लाख लोग प्रभावित हुए. 2007 में 22 जिला में बाढ़ का कहर 2.4 करोड़ से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए. 2004 में 20 जिले पर वार्ड का कहर दो करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित. 2002 में बाढ़ का असर 25 जिलों पर पड़ा. 2000 में बाढ़ ने 33 जिलों को प्रभावित किया. वहीं 1987 में बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई.


हालांकि सरकार द्वारा बाढ़ पीड़ितों को खाना एवं मुआवजा तो दिया जाता है परंतु इस तरह बार-बार बाढ़  का सामना करने से होने वाली पीड़ा से लोगों का दर्द बार-बार उन्हें इस वेदना से निकलने नहीं देता. कितने लोगों की जानें चली जाती है और करोड़ों की क्षति होती है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों का दर्द जो हर बार बाहर से पैसा कमा कर लाते हैं और बाढ़ की तबाही उनके सपनों को तोड़ देती है फिर भी वह इस उम्मीद में अपने घर परिवार के लिए ढाल बन खड़े तो हो जाते हैं लेकिन जिन परिवार की कमाने वाले की जान चली जाती है वह हताश हो जाते हैं.


बिहार के लगभग 7 जिले पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, नेपाल से सटे हैं. जिसमें सीतामढ़ी बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित जिला है. ऐसे लाखों लोगों की पीड़ा और दर्द सरकार से अपील करती है कि कोई  ठोस कदम उठाएं जिससे बाढ़ पीड़ितों की असहनीय पीड़ा कम हो सके.


वहीं बाढ़ के कई कारण है जैसे :- तटबंधों  का कम होना , जलग्रहण क्षेत्रों में अंधाधुंध कटाई, ग्लोबल वार्मिंग आदि. इन सब कारणों पर ध्यान दिया जाए एवं समुचित रूप से उपाय किए जाए तो हद तक बाढ़ जैसी समस्या से राहत की उम्मीद की सकती है.


 

 

-कौस्तुभा,                                                                                                                                              मधेपुरा (बिहार)

बाढ़ का दर्द: तबाही मचती है और सपने टूटकर बिखर जाते हैं, स्थायी समाधान की दरकार बाढ़ का दर्द: तबाही मचती है और सपने टूटकर बिखर जाते हैं, स्थायी समाधान की दरकार  Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 13, 2021 Rating: 5

1 comment:

  1. ज्यादातर बाढ़ का कारण अनोर्गनाइज्ड गवर्नमेंट होता है। कभी डैम टूटता है तो कभी डैम से पानी छोड़ा जाता है जिससे बाढ़ आती है। और यह सब गवर्नमेंट मिस प्लानिंग का नतीजा होता है।

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