'साधारण लड़कों को उच्च शिक्षा में जाने से रोका जाय, तो यह अनर्थकारी सिद्ध होगा': भूपेंद्र नारायण मंडल की 117 वी जयंती पर विशेष (डॉ. शेफालिका शेखर की कलम से)

जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं। " (बाबा साहेब आंबेडकर ) इस सामाजिक स्वतंत्रता का हासिल है समाज में सबकी बराबरी। समाजवादी चिंतक भूपेंद्र नारायण मंडल भी जाति, धर्म, लिंग, रंग, भाषा के स्तर पर इसी बराबरी और स्वतंत्रता के हिमायती थे. 

आप जानते हैं कि महान समाजवादी चिंतक भूपेंद्र नारायण मंडल को एक बार उनके विद्यालय से निष्काषित किया गया था?  

बात 1920 के आसपास की होगी। आज़ादी की लड़ाई ज़ोरों थी. कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आंदोलन पारित  हुआ और गाँधी जी ने विद्यार्थियों से भी इस आंदोलन में भाग लेने का आह्वान किया.  भूपेंद्र बाबू उस वक़्त 17 साल के थे और स्कूल में पढ़ रहे थे. गांधीजी के इस आह्वान को उन्होंने जीवनमरण का प्रश्न बना लिया और अपने सहपाठियों की एक टोली तैयार कर ली जिन्होंने उनके साथ सामूहिक रूप से, एक वाजिब मांग के मद्देनजर विद्यालय का बहिष्कार किया। इस बहिष्कार के पीछे उनकी मंशा केवल ब्रितानी हुकूमत को चेतावनी ही नहीं थी बल्कि उनको भारतीयों को जगाना भी था, युवाओं को आनेवाले विकट समय के लिए तैयार भी करना था । इस स्थानीय बहिष्कार और असहयोग का परिणाम यह हुआ कि इनको विद्यालय से निकाल दिया गया और अंततः इस तरह के पूरे प्रकरण की परिणीति चौरी- चौरा कांड में तब्दील हो गई। 

1 फरवरी को स्व. भूपेंद्र नारायण मंडल की 117 वी जयंती है। भूपेंद्र बाबू  का जन्म 1 फ़रवरी 1904 को मधेपुरा ज़िले के रानीपट्टी  ग्राम में हुआ था। मधेपुरा को समाजवाद की धरती बनाने में उनका अहम योगदान था। किसे पता था कि जिस किशोर भूपेंद्र को विद्यालय से निकाला जा रहा है, कभी उन्हीं के नाम से न केवल एक महाविद्यालय, बल्कि विश्विद्यालय की स्थापना होगी। भूपेंद्र बाबू के देहावसान होने के बाद उनके जीवन के आदर्शों को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से साहुगढ़, मधेपुरा में सन 1976 में भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय की स्थापना की। यह बहुत आसान काम भी नहीं था.  इस महाविद्यालय की शुरुआत करने के लिए  उनके असंख्य चाहने वालों ने चन्दा इकठ्ठा किया। साहुगढ़ ग्राम के निवासियों के अलावा पूरे इलाक़े से लोगों ने सहयोग किया। इस महाविद्यालय की स्थापना में स्व बालमुकुंद यादव, स्व. बी पी मंडल, डॉ सच्चिदानन्द यादव, स्व नंदकिशोर मंडल, स्व शिवनेश्वरी प्रसाद मंडल, स्व लक्ष्मी प्रसाद मंडल, श्यामल किशोर यादव, स्व डॉ अर्जुन प्रसाद सिंह, स्व मृत्युंजय मिश्रा, उनके सुपुत्र शशि शेखर यादव एवं डॉ भूपेंद्र मधेपुरी जैसे बुद्धिजीवियों ने अग्रणी भूमिका निभाई। 



भूपेंद्र बाबू का स्पष्ट मानना था कि शिक्षा सर्व जन को सुलभ होना चाहिए। समाज के पिछड़े तबकों को लेकर उनकी समझदारी बहुत साफ थी, जिसको उनके कई भाषणों में देख सकते हैं। 26 नवंबर 1969 को राज्यसभा में दिए गए उनके भाषण का एक अंश को  देखें - "आज संविधान में है कि जात-पात के नाम पर, धर्म के नाम पर, लिंग के नाम पर कोई किसी तरह का भेदभाव नहीं हो। एक मायने में वह सही बात है। लेकिन दूसरी तरफ हम देखेंगे कि दूसरी बातों में जो होता है वह गलत चीज है, क्योंकि 
देश का संविधान कहता है कि छोटे तबके के आदमी हैं, उनको आगे बढ़ाओ। अब अगर उसको आगे बढ़ने से रोका जाएगा तो वह ठीक नही होगा।"  राज्यसभा में शिक्षा  के अधिकार को लेकर उन्होंने अलग अलग भाषणों में विस्तार से अपनी बातों को रखा है -"आज यूनिवर्सिटी बढ़ रहे है और अर्थ के अभाव में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू नही हो रही है. आज यह कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी में जाने से साधारण स्टूडेंट्स को रोकना चाहिए, तो मेरी यह निश्चित धारना है कि सरकार के या किसी भी आदमी के दिमाग में अगर यह हो कि हिंदुस्तान के साधारण लड़कों को उच्च शिक्षा में जाने से रोका जाय, क्योंकि वह मेधावी नहीं है तो यह अनर्थकारी सिद्ध होगा; क्योंकि यह ऐसा देश है, जिसका हजारों वर्षों से एक बहुत बड़ा तबका गुलामी में रह चुका है। साधारण स्तर का रहने पर विश्वविद्यालय जाने से उनको नही रोकना चाहिए।"  

प्राथमिक शिक्षा के साथ साथ उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सदैव भूपेंद्र बाबू प्रयासरत थे. उनके इन्ही सपनों के सम्मान में 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद ने उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय की घोषणा की और ललित नारायण मिश्र वि.वि. से अलग होकर भूपेंद्र नरायण मंडल वि.वि. की स्थापना हुई. उनके प्रयासों के फल मधेपुरा और आसपास के कई इलाक़ों में देखे जा सकते हैं । इस पूरे क्षेत्र में, महाविद्यालयों में विश्वविद्यालय में शिक्षा के स्तर को और बढ़ाया जाय, नई तकनीकों से  जोड़कर यहां के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाय, यही उनको याद करने का सबसे अच्छा उदाहरण होगा।

-डॉ. शेफालिका शेखर, 

हिंदी विभाग,

भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय, साहुगढ़, मधेपुरा (बीएनएमयू)

(शेफालिका ने 12वीं तक की पढ़ाई मधेपुरा से की है। उन्होंने बी. ए., इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय दिल्ली (दिल्ली वि. वि.) तथा एम. ए., एम.फिल, पी. एच डी जवाहर लाल नेहरू वि. वि.,नई दिल्ली से किया है.)

'साधारण लड़कों को उच्च शिक्षा में जाने से रोका जाय, तो यह अनर्थकारी सिद्ध होगा': भूपेंद्र नारायण मंडल की 117 वी जयंती पर विशेष (डॉ. शेफालिका शेखर की कलम से) 'साधारण लड़कों को उच्च शिक्षा में जाने से रोका जाय, तो यह अनर्थकारी सिद्ध होगा': भूपेंद्र नारायण मंडल की 117 वी जयंती पर विशेष (डॉ. शेफालिका शेखर की कलम से) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 31, 2021 Rating: 5

1 comment:

  1. सुंदर लेख. भूपेन बाबू को प्रणाम. धन्यवाद MT

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