दिल्ली में लगातार 48 वें दिन जारी किसान आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार की संवेदनहीनता, आंदोलन में लगभग 60 किसानों की मौत से आक्रोशित मधेपुरा के किसानों ने स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर मधेपुरा की सड़कों पर हल और कुदाली लेकर उतरे एवं मोदी सरकार के खिलाफ अपने आक्रोश का इजहार किया. आक्रोश मार्च मधेपुरा न्यू बस स्टैंड से निकलकर शहर के मुख्य चौराहे से गुजरते हुए समाहरणालय पहुंची. प्रदर्शन के कारण पूरा शहर अस्तव्यस्त रहा. प्रदर्शनकारियों की बड़ी संख्या रहने के कारण समाहरणालय द्वार के सामने घंटों एनएच 107 पर आवागमन ठप रहा. समाहरणालय द्वार पर ही महागठबंधन के संयोजक भाकपा नेता प्रमोद प्रभाकर की अध्यक्षता में उपस्थित जनसमूह एवं आंदोलनकारी किसानों को संबोधित करते हुए सदर राजद विधायक एवं बिहार सरकार के पूर्व मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने कहा कि केंद्रीय कि मोदी सरकार काला कृषि कानून वापस ले नहीं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार न सिर्फ किसान विरोधी है बल्कि किसानों की हत्यारनी है, उन्होंने कहा कि दिल्ली के बॉर्डर पर काला कानून के खिलाफ आंदोलन पर डटे किसानों के मौत का आखिर कौन है जिम्मेदार? विधायक प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर ने कहा कि किसानों की उपेक्षा नहीं सहेंगे. किसान संगठनों के नेता से वार्ता करे सरकार अन्यथा चैन से रहने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि संसद के अंदर संवैधानिक मापदंडों का धज्जियां उड़ाते हुए यह कानून पारित किया गया जो किसान विरोधी ही नहीं जनविरोधी भी है. इस कानून से देश की खाद्य सुरक्षा ध्वस्त हो जाएगी. इस कानून के लागू होने से आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 स्वत: ध्वस्त हो जाएगी. इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी जिससे देश को भीषण महंगाई का सामना करना पड़ेगा. यह कानून पूरी तरह कारपोरेट परस्त कानून है.
विधायक प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर ने कहा कि आज देश संकट में है. केंद्र की सरकार खेती और किसानी को कारपोरेट के हाथ गिरवी रख किसानों को गुलाम बनाना चाहती है. देश के किसान इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. उन्होंने खेत बचाने और देश बचाने के लिए देश और प्रदेश के किसानों को संगठित होकर आंदोलन तेज करने का आह्वान किया और कहा कि जब तक यह काला कानून वापस नहीं होता किसानों का संघर्ष जारी रहेगा.
राजद के प्रदेश महासचिव बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि कानून बनने से पहले ही देशभर में अडानी के लाखों टन भंडारण करने की क्षमता वाले बड़े-बड़े गुलाम बन गए, एग्रो कंपनी बन गई. यह प्रमाणित करता है कि सरकार कारपोरेट के हित के लिए यह कानून लाई है. राजद के प्रदेश महासचिव देव किशोर यादव ने कहा कि यह तीनों काला कानून का ड्राफ्ट किसी कारपोरेट घराने के दफ्तर में तैयार हुआ था. यह कानून पूरी तरह से अडानी और अंबानी के फायदे के लिए बनाया गया है. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार सिंह यादव ने कहा कि यह खेती का कॉरपोरेटाइजेशन है बाजार आधारित खरीद-फरोख्त व्यवस्था और सुमित स्टॉप और कंट्री फार्मिंग कर किसानों को तबाह और बर्बाद करने की साजिश है.
महागठबंधन के संयोजक एवं भाकपा के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य ने कहा कि इस कानून से जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी और इसका सीधा असर खाद्य पदार्थों की महंगाई पर पड़ेगी. जब टैक्स फ्री खेल चलेगा तो मंडी तबाह हो जाएगी और जब मंडी नहीं रहेगी तो सरकार हजारों लाखों एकड़ जमीन कौड़ियों के दामों पर चहेते कारपोरेट के हाथ बेच देगी. श्री प्रभाकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई है. बावजूद इसके अगर मोदी सरकार काला कृषि कानून वापस नहीं लेती तो संघर्ष तेज होंगे. माकपा के जिला मंत्री मनोरंजन सिंह एवं राज्य कमेटी सदस्य गणेश मानव ने कहा कि आंदोलनरत किसानों को टुकड़े-टुकड़े गैंग बताने वाले अपने दामन में झांक कर देखें यह देशद्रोही ताकत आज देश को नीलाम करने पर आतुर है. इसका मुंहतोड़ जवाब देश का किसान देगी.
भाकपा के जिला मंत्री विद्याधर मुखिया एवं वरीय नेता रमन कुमार ने कहा कि सरकार की नीयत और नीति में खोट है. गोडसे के अनुयाई कभी किसान हितैषी नहीं हो सकते, भाकपा माले के जिला संयोजक रामचंद्र दास एवं वरीय नेता के.के. सिंह राठौर ने कहा कि केंद्र और राज्य की सरकार किसान विरोधी है. उन्होंने कहा की 2015 के तर्ज पर किसान आंदोलन को व्यापक और जुझारू बनाना होगा ताकि सरकार काला कानून को वापस लेने को मजबूर हो. महागठबंधन के सहसंयोजक रामकृष्ण यादव एवं राजद के जिला महासचिव नजीरूद्दीन नूरी ने कहा कि किसान का बेटा और भाई देश की सीमा पर सरहद की सुरक्षा करता है. किसान हमारा पेट भरता है, हम को जिंदा रखता है. हम इसके साथ नाइंसाफी नहीं सहेंगे.
आलमनगर से महागठबंधन के पूर्व प्रत्याशी इंजीनियर नवीन कुमार निषाद ने कहा कि अन्नदाता किसानों की उपेक्षा नहीं सहेंगे केंद्र सरकार होश में आए और आंदोलनरत किसानों की मांगें पूरी करे नहीं तो आर पार की लड़ाई होगी.
आक्रोश मार्च में मुखिया अरविंद यादव, महागठबंधन के नेता अभिनंदन यादव, सुरेश कुमार यादव, अरुण कुमार यादव, अजय कुमार यादव, विकास कुमार मंडल, धीरेंद्र यादव, विश्वनाथ यादव, वामपंथी नेता शैलेंद्र कुमार, अनिल भारती, सीताराम रजक, शंभू शरण भारतीय, ललन कुमार, शंभू क्रांति, वसीम उद्दीन उर्फ नन्हे, दिलीप पटेल, मोहम्मद सिराज, मोहम्मद जहांगीर, नवीन कुमार, मोहम्मद चांद, उमाकांत सिंह, जगत नारायण शर्मा, मोहम्मद परवेज, राजद नेता रमेश सिंह, रवि शंकर यादव, किसान नेता प्रकाश पिंटू, अनिल यादव, मजदूर नेता योगेंद्र राम, दिनेश ऋषिदेव, राजद नेता सिंघेश्वर यादव, पंकज यादव, अर्जुन यादव, संजीव कुमार, विकास चंद्र यादव, रमन कुमार, राजीव कुमार, राणा कुमार, गोसाई ठाकुर, विश्वजीत कुमार, डॉ राजेश रतन मुन्ना, पप्पू यादव, भूषण यादव, इंदु यादव, आलोक कुमार मुन्ना, गोपाल यादव, विनय कुमार सिंह, विलास यादव, वीरेंद्र यादव, अनिल यादव, अभय श्रीवास्तव, राजू कुमार यादव, सुनील यादव, अनिल यादव, उमेश यादव, नित्यानंद यादव, गौरी शंकर, दिलीप यादव, गजेंद्र राम, सुभाष गुप्ता, सागर चौधरी, युवा नेता जितेंद्र कुमार मुन्ना, मनोज राम, विमल विद्रोही, नेपोलियन, मोहम्मद सद्दाम, मोहम्मद आलम, छात्र नेता निशांत यादव, जापानी यादव, रितेश यादव, माधव मंडल, संत यादव, अमरेन्द्र यादव, आनंदी मंडल, रिंकू साह आदि बड़ी संख्या में किसान शामिल थे. अंत में 9 सूत्री मांगों का स्मार पत्र जिला पदाधिकारी को सौंपा.
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