कार्यक्रम का उद्घाटन जिला जज रमेश चंद मालवीय ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उद्धाटन मौके पर मौजूद विधिक विशेषज्ञ को संबोधित करते हुए जिला जज रमेश चंद्र मालवीय ने कहा कि बच्चे मासूम और सरल होते हैं, इनकी इसी मासूमियत का फायदा उनके आस पास के लोग उठा लेते हैं और बच्चे शोषण का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में इस तरह की घटना काफी पूरे देश में बढ़ी है। बढ़ती घटना से सरकार चिंतित है। इसे रोकने के लिए अब पूरे देश में विधि विशेषज्ञों के बीच बहस शुरू हो गई है। डीजे ने कहा कि सरकार को बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल लैंगिक शोषण और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 यानि पॉक्सो एक्ट लाना पड़ा। इस कानून के तहत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है।
उन्होंने कहा कि हम सभी को यह समझना होगा कि कोई भी बच्चा इस तरह के शोषण का शिकार हो सकता है। चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति, धर्म या समुदाय का हो। बच्चे का कोई भी शोषण कर सकता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसा करने वाला बच्चे का परिचित या परिजन ही होता है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चे की बातों को ध्यान से सुने और उसपर भरोसा करें। हम बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच अंतर करना सिखाएं। उसे उचित जानकारी देकर सशक्त बनाएं जिससे वो ऐसे खतरों को पहचानें एवं इसकी तुरंत शिकायत कर सके। बच्चे के व्यवहार में आये किसी भी प्रकार के परिवर्तन का कारण जानें। जैसे यदि बच्चा किसी व्यक्ति के पास जाने से डरता हो या घबरा रहा हो तो इन बातों को नजर अंदाज न करें।
पॉक्सों में पीड़ित को नहीं बल्कि आरोपी को अपराध करना होता है सिद्ध
पॉक्सो एक्ट पर विचार रखते बृजेश सिंह, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) ने कहा कि यह कानून बालक और बालिकाओं दोनों पर लागू होता है। इसके अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है। इसके तहत आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया, पीड़ित को कुछ भी सिद्ध नहीं करना होता है। अधिनियम अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर होने वाले किसी प्रकार के लैंगिक अपराधों में कठोर कार्यवाही किये जाने का प्रावधान रखा गया है, जिसमें जुर्माने से लेकर आजीवन कारावास और मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है।कहा कि किसी बालक का किसी विधि विरूद्ध लैंगिक क्रियाकलाप से उत्पीड़न या उत्प्रेरण, अश्लील साहित्य के प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग, बालक का लैंगिक शोषण करने के लिए उकसाना या बहकाना या प्रयास करना या प्रलोभन देना या धमकी देना, लैंगिक आशय के साथ बालक-बालिका के निज अंगो को छूना, बालक का या तो सीधे या इलेक्ट्रानिक या अन्य साधनों के माध्यम से पीछा करना, देखना या सम्पर्क कर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। कहा कि कोई व्यक्ति या बालक जिसे यह आशंका है कि किसी बालक के विरूद्ध अपराध किए जाने की संभावना है या अपराध हुआ है तो वह चाइल्ड लाईन 1098, विशेष किशोर पुलिस इकाई, स्थानीय पुलिस में अपराध की रिपोर्ट कर सकता है। विशेष पुलिस इकाई द्वारा अपराध घटित होने पर 24 घण्टे के अंदर तुरंत चिकित्सा देखरेख और संरक्षण के लिए निकटतम अस्पताल में चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है।
बच्चों के प्रति लैंगिक अपराध रोकने जनजागरूकता जरूरी
बाल अपराध पर विचार व्यक्त करते हुए न्यायिक दंडाधिकारी प्रमोद कुमार ने कहा कि बच्चों के प्रति लैंगिक अपराध जैसी घटनाओं को रोकने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग में लैंगिक अपराधों के प्रति जनजागरूकता जरूरी है। उन्होंने स्लाइड शो के माध्यम से संबंधित नियमों को विस्तार से समझाया।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन परिवार न्यायाधीश अजय कुमार श्रीवास्तव ने किया।
कहां करें शिकायत
पॉक्सो एक्ट बच्चों को यौन उत्पीड़न यौन हमला और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। इस तरह के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए शिकायत हेतु चाइल्ड लाइन नंबर 1098, टोल फ्री नंबर 1800115455 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा पॉक्सो ई- बाक्स तैयार किया गया है। इन दोनों पर बच्चे स्वयं या उनके अभिभावक आसानी से शिकायत कर सकते हैं। मौके पर परिवार न्यायाधीश अजय कुमार श्रीवास्तव,न्यायिक पदाधिकारी विनय प्रकाश तिवारी, निशिकांत ठाकुर,विद्या प्रसाद, देवानंद मिश्रा, सीजेएम संजीव कुमार, एसीजेएम तेज ओरताप सिंह, अनूप सिंह, सुरभी श्रीवास्तव, डीएलएसए के सचिव दीपांशु श्रीवास्तव, मंजूर आलम, पोक्सो तथा जेजे बोर्ड के स्पेशल पीपी, जिला बाल संरक्षण इकाई के पदाधिकारी गण आदि मौजूद थे।
कार्यक्रम में अंत में इंटरेक्शन सेसन का आयोजन हुआ जिसमें पॉक्सो के विशेष अभियोजक विजय मेहता, एपीओ मनीष कुमार सिंह, जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों समेत अन्य के द्वारा प्रश्न पूछे गए जिनका उत्तर अधिकारियों ने दिया।
(नि. सं.)
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