'शिक्षा को महत्त्व देने वाले रास बिहारी बाबू सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे': डॉ. मधेपुरी

सांप्रदायिक ईर्ष्या-द्वेष, जाति-व्यवस्था, अस्पृश्यता, सती प्रथा, बाल विवाह, अपव्यय और ऋण, निरक्षरता और मद्यपान जैसे कई सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरुक करने वाले रास बिहारी लाल मंडल का जन्म मुरहो, मधेपुरा के जमींदार रधुवर दयाल मंडल के एकलौते पुत्र के रुप में 1866 ई. में हुआ था. 

वे 26  अगस्त 1918 को महात्मा कबीर की नगरी काशी में दुनिया को अलविदा कह गए. वहीं एक दिन कबल यानी 25 अगस्त को सामाजिक न्याय के प्रतीक के रुप में बालक बीपी मंडल ने माता सीतावती मंडल की गोद में जन्म लिया था. 

उक्त बातें जिला मुख्यालय के रास बिहारी उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में रास बिहारी बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद समाजसेवी-साहित्यकार डॉ. भूपेंद्र नारायण यादव ने लोगों को संबोधित करते हुए कही. डॉ. मधेपुरी ने कहा कि बचपन में ही रासबिहारी बाबू के माता-पिता की मृत्यु हो गयी जिसके कारण रानीपट्टी में उनकी नानी ने उनका लालन-पालन किया.रास बिहारी बाबू 11वीं तक पढ़े. उन्हें हिंदी, उर्दू, मैथिली, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा का ज्ञान था. यही कारण था कि उनके यहां हर रोज तीन चार भाषाओं के अखबार आते थे. जिन्हें वे रुचि लेकर पढ़ते थे. जमींदार होते हुए भी उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका निभायी. बिहार में कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्य बने उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया. यही कारण है कि कलकत्ता से छपने वाली तत्कालीन समाचार पत्रों ने रास बिहारी बाबू की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भीकता की प्रशंसा की. यहां तक कि तत्कालीन दरभंगा महाराज ने उन्हें मिथिला का शेर कहकर संबोधित किया.

डॉ. मधेपुरी ने कहा कि श्री मंडल अपने जीवन में शिक्षा को काफी महत्व दिये. उन्होंने स्कूल-कॉलेजों की स्थापना के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए होस्टल की भी व्यवस्था की. उस समय वे चाहते थे कि समाज के गरीब बच्चे को इतना मदद करें कि वे आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर तथा आईएएस बने. इसी मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने विद्यालय के स्थापना के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन दान दी जिसका जीता जागता प्रमाण रास बिहारी उच्च माध्यमिक विद्यालय है. 

उन्होंने जनेऊ प्रथा, लंबा श्राद्ध कर्म समेत अनेक सामाजिक कुप्रथा पर पाबंदी लगा दी तथा लोगों को उसके खिलाफ जागरुक करने के लिए मिथिला के कई स्थानों पर जन सभा भी की. इसको लेकर समाज में विभेद भी हुआ किंतु वे सदा आगे बढ़ते रहे. मधेपुरी ने स्वलिखित पुस्तक- रासबिहारी लाल मंडल: पराधीन भारत में स्वाधीन सोच को संदर्भित करते हुए कहा कि वे बंग-भंग के समय भारत माता का संदेश पुस्तक लिखकर आंदोलनकारियों की हौसला अफजाई करने में लगे रहे. तब के संपूर्ण भारत की धरती को उर्वर बनाने वाले रासबिहारी लाल मंडल के कार्यकाल को भले ही 102 वर्ष गुजर गए किंतु आज भी उनके विचार समसामयिक हैं. 51 वर्ष की आयु में बीमार रहने के कारण बनारस में उन्होंने 26 अगस्त 1918  को अंतिम सांस ली.  

इस मौके पर मौजूद डॉ. अरुण कुमार मंडल, प्रधानाध्यापक अनिल कुमार सिंह चौहान, पूर्व प्रधानाध्यापक रंजना कुमारी, बीरबल प्रसाद यादव, शिवनारायण, रामनरेश प्रसाद यादव, मुर्तुजा अली, गांधी कुमार मिस्त्री, सुभद्रा रानी, अमित कुमार, इंद्रजीत भगत, रणविजय कुमार, ललन कुमार, सरोज कुमार, अजय कुमार सिंह तथा नवीन कुमार ने माल्यार्पण कर नमन किया.
(रिपोर्ट: कुमारी मंजू)
'शिक्षा को महत्त्व देने वाले रास बिहारी बाबू सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे': डॉ. मधेपुरी 'शिक्षा को महत्त्व देने वाले रास बिहारी बाबू सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे': डॉ. मधेपुरी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 26, 2020 Rating: 5

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