विश्वविद्यालय में कार्यरत यूएमआईएस कंपनी आईटीआई में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अराजकता का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. गुरुवार को सिंडिकेट सदस्य डा. जवाहर पासवान ने भी यूएमआईएस के पूरे मामले की जांच हेतु कुलपति डा. ज्ञानंजय द्विवेदी को आवेदन दिया है.
डा. जवाहर ने कहा कि बीएनएमयू कोसी प्रमंडल में अवस्थित है, जो गरीब, दलित- महादलित, शोषित-पीड़ित, पिछड़ों का क्षेत्र है. यूएमआईएस कंपनी आईटीआई हमारे विद्यार्थियों एवं अभिभावकों का आर्थिक एवं मानसिक दोहन कर रही है. विश्वविद्यालय का यूएमआईएस लूट का अड्डा बन गया है. इससे विश्वविद्यालय की छवि खराब हो रही है.
उन्होंने कहा है कि वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई की पूरी कार्य-प्रणाली, उसके संबंध में वित्तीय परामर्शी की आपत्ति, इसको कथित तौर पर एक्सटेंशन देने में तत्कालीन कुलपति एवं तत्कालीन प्रति कुलपति की भूमिका और छात्र संगठनों की आपत्तियों सहित मामले के सभी पहलुओं की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस को लेकर विद्यार्थियों में शुरू से ही असंतोष रहा है. इधर विश्वविद्यालय के कुछ पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी यूएमआईएस को लेकर व्यक्तिगत बातचीत के साथ-साथ सोशल मीडिया में भी सवाल उठाए हैं. यूएमआईएस (UMIS) में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार एवं अराजकता व्याप्त है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि यूएमआईएस का कांट्रेक्ट आईटीआई कंपनी से किया गया है, जिसने किसी दूसरे को पेटी कॉन्ट्रैक्ट दे दिया है. यूएमआईएस की वर्तमान कंपनी से किए गए कांटेक्ट को कांट्रेक्ट पर साइन करने वाले पदाधिकारियों को भी नहीं दिया गया. सब कुछ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. अवध किशोर राय एवं तत्कालीन प्रति कुलपति डा. फारूक अली ने गुपचुप तरीके से अपने आवास पर एक साजिश की तरह कांट्रेक्ट को अंजाम दिया.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस की वर्तमान कंपनी ने जिन कामों को नहीं किया है, उससे संबंधित राशि भी भुगतान कर दी गई है. एक करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान कर दिया गया है. इसकी रिकवरी होनी चाहिए.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस में कार्यरत कर्मियों का पूरा डिटेल्स विश्वविद्यालय प्रशासन को नहीं दिया गया है. यूएमआईएस के नोडल पदाधिकारी विश्वविद्यालय की बजाय यूएमआईएस के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं. यूएमआईएस का डेटा सुरक्षित है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. यह डेटा दूसरे कंपनी के पास है, जो इसका दुरुपयोग कर सकती है.
उन्होंने कहा है कि विद्यार्थियों के लिए पंजीयन शुल्क 300 रुपए लिया जा रहा है, जो काफी अधिक है. विद्यार्थियों को एक बार में सभी कॉलेज एवं विषय का ऑप्शन नहीं दिया जाता है. कॉलेज एवं विषय बदलने पर बार-बार पैसा लिया जाता है. विद्यार्थियों के द्वारा जमा कराया गया पैसा सीधे विश्वविद्यालय के अकाउंट में जमा नहीं हो रहा है. अब तक कितना पैसा जमा हुआ, इसकी जानकारी विश्वविद्यालय के वित्त विभाग को नहीं है.
उन्होंने कहा है कि वित्तीय परामर्शी ने भी वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई के विरूद्ध नोट ऑफ डिसेंट दिया है. इसके बावजूद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. अवध किशोर राय एवं तत्कालीन प्रति कुलपति डा. फारूक अली ने यूएमआईएस के कांट्रेक्ट को एक वर्ष बढ़ाने का आदेश दे दिया है. यह विश्वविद्यालय के नियम-परिनियम के खिलाफ है. अतः पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई किया जाए.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtGGdm3XKW0tzgFM4zTRE5_iJylvBtgfiU2NJ5W_PH0G4tJexPGMzWSfVFfyygo4ekfQ4osDdF76Z3i_B0RJkLP2dg4jgEke9_9AnGGd6sUX-YnwjFTz-BvQolnxRgdwiz8U20aBuK7oY/s640/Murari.png)
डा. जवाहर ने कहा कि बीएनएमयू कोसी प्रमंडल में अवस्थित है, जो गरीब, दलित- महादलित, शोषित-पीड़ित, पिछड़ों का क्षेत्र है. यूएमआईएस कंपनी आईटीआई हमारे विद्यार्थियों एवं अभिभावकों का आर्थिक एवं मानसिक दोहन कर रही है. विश्वविद्यालय का यूएमआईएस लूट का अड्डा बन गया है. इससे विश्वविद्यालय की छवि खराब हो रही है.
उन्होंने कहा है कि वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई की पूरी कार्य-प्रणाली, उसके संबंध में वित्तीय परामर्शी की आपत्ति, इसको कथित तौर पर एक्सटेंशन देने में तत्कालीन कुलपति एवं तत्कालीन प्रति कुलपति की भूमिका और छात्र संगठनों की आपत्तियों सहित मामले के सभी पहलुओं की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस को लेकर विद्यार्थियों में शुरू से ही असंतोष रहा है. इधर विश्वविद्यालय के कुछ पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी यूएमआईएस को लेकर व्यक्तिगत बातचीत के साथ-साथ सोशल मीडिया में भी सवाल उठाए हैं. यूएमआईएस (UMIS) में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार एवं अराजकता व्याप्त है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि यूएमआईएस का कांट्रेक्ट आईटीआई कंपनी से किया गया है, जिसने किसी दूसरे को पेटी कॉन्ट्रैक्ट दे दिया है. यूएमआईएस की वर्तमान कंपनी से किए गए कांटेक्ट को कांट्रेक्ट पर साइन करने वाले पदाधिकारियों को भी नहीं दिया गया. सब कुछ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. अवध किशोर राय एवं तत्कालीन प्रति कुलपति डा. फारूक अली ने गुपचुप तरीके से अपने आवास पर एक साजिश की तरह कांट्रेक्ट को अंजाम दिया.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस की वर्तमान कंपनी ने जिन कामों को नहीं किया है, उससे संबंधित राशि भी भुगतान कर दी गई है. एक करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान कर दिया गया है. इसकी रिकवरी होनी चाहिए.
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस में कार्यरत कर्मियों का पूरा डिटेल्स विश्वविद्यालय प्रशासन को नहीं दिया गया है. यूएमआईएस के नोडल पदाधिकारी विश्वविद्यालय की बजाय यूएमआईएस के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं. यूएमआईएस का डेटा सुरक्षित है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. यह डेटा दूसरे कंपनी के पास है, जो इसका दुरुपयोग कर सकती है.
उन्होंने कहा है कि विद्यार्थियों के लिए पंजीयन शुल्क 300 रुपए लिया जा रहा है, जो काफी अधिक है. विद्यार्थियों को एक बार में सभी कॉलेज एवं विषय का ऑप्शन नहीं दिया जाता है. कॉलेज एवं विषय बदलने पर बार-बार पैसा लिया जाता है. विद्यार्थियों के द्वारा जमा कराया गया पैसा सीधे विश्वविद्यालय के अकाउंट में जमा नहीं हो रहा है. अब तक कितना पैसा जमा हुआ, इसकी जानकारी विश्वविद्यालय के वित्त विभाग को नहीं है.
उन्होंने कहा है कि वित्तीय परामर्शी ने भी वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई के विरूद्ध नोट ऑफ डिसेंट दिया है. इसके बावजूद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. अवध किशोर राय एवं तत्कालीन प्रति कुलपति डा. फारूक अली ने यूएमआईएस के कांट्रेक्ट को एक वर्ष बढ़ाने का आदेश दे दिया है. यह विश्वविद्यालय के नियम-परिनियम के खिलाफ है. अतः पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई किया जाए.
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यूएमआईएस मामले की हो उच्चस्तरीय जांच : डा. जवाहर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 19, 2020
Rating:
![यूएमआईएस मामले की हो उच्चस्तरीय जांच : डा. जवाहर](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrR0239265zskOMMfRQd76v9DDEMKxT1WquP5er3wsPRlTV6zKT0cI4J2UK4Ap0oazwVwUo6_sNkR6j8fCbyBDYPsPBeoKCNWIQwPDE4IAJioDcdR_m-XVMWUvvrIg7QXX1OJYXUqCrJY/s72-c/WhatsApp+Image+2020-06-19+at+9.40.49+PM.jpeg)
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