कुछ ही दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा: लॉक डाउन में नहीं थम रहे हैं कई गरीब परिवारों के आंसू

लॉक डाउन में पापी पेट के लिए गाँव से बाहर रोजी-रोटी के तलाश में भटक रहे मजदूरों की आँखों से बहते नीर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. वहीं घर में बैठे उनके याद में बूढी माँ और बच्चे समेत पत्नी की दरक रही है ममता.



समूचे देश में जहाँ प्रलयंकारी महामारी कोरोना को लेकर पूरी तरह दहशत का माहौल है तो वहीं अपने व अपने परिवार के पापी पेट के लिए गाँव से रोजी-रोटी के तलाश में प्रदेश कमाने गए फंसे उन मजदूरों के आँखों से बहते आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे. उन्हें सता सता एक तरफ जहाँ उन्हें अपने घर परिवार की चिंता सता रही है तो दूसरी तरफ घर में बैठी बूढ़े माँ-पिता और बीबी-बच्चों को भी उनके सलामती की चुनता खाए जा रही है. 

भले हीं केन्द्र और राज्य सरकार लगातार सभी तरह की तैयारी के साथ-साथ निचले तबके के गरीब परिवारों को 03 माह के राशन मुहैया करने हेतु घोषणा पर घोषणा कर रही है लेकिन फिलहाल धरातल पर ये सब के सब खोखला ही साबित हो रहा है. खास कर रोज मजदूरी कर अपने व अपने परिवार के लोगों का भरण-पोषण करने वाले इन मजदूर परिवार की स्थित काफी नाजुक होती नजर आ रही है. मजबूरन परिवार के लोग लॉक डाउन की पालन कर अपने घर में प्रदेश कमाने गए कहीं बेटे तो कहीं पति की चिंता में मायूस होकर दहशत के साये में प्रलंयकारी महामारी कोरोना का दिन गिन रहे हैं.

आलम ये है कि सरकारी महकमे के लोग लगातार समाचार के माध्यम से इन्हें आश्वासन दे रहे हैं कि जो जहाँ हैं वहीं बने रहे और सरकार के लॉक डाउन का पालन सुनिश्चित कराने में जिला प्रशासन और राज्य व केन्द्र सरकार का मदद करें, तभी कोरोना जैसे महामारी से लड़ सकते हैं. अधिकारियों का आश्वासन भी लाजमी ही है . लेकिन खासकर गाँव में अहम् गरीब परिवारों को तत्काल राहत मुहैया करना भी अहम होगा. हालाँकि अब सवाल उठता है क्या लॉक डाउन के दौरान सरकार व जिला प्रशासन बहरहाल राहत कैसे मुहैया करा पाएगा जब सब कुछ बंद है?  ऐसे में गाँव के ही कुछ मध्यम और उच्चे परिवार के लोग तत्काल ऐसे लाचार और निरीह प्राणी के मददगार तो साबित हो ही सकते हैं. कहा जाता है विपत्ति और आपदा की घड़ी में अपनी सावधानी और एक-एक की रक्षा तथा मदद सेवा भाव की जननी है. 

हालाँकि आज हम कहने और लिखने को जो लिख दें पर इस आपदा की घड़ी में जिला प्रशासन हो, पुलिस प्रशासन या हो स्वास्थ्य महकमे के इतर मिडिया हॉउस के पत्रकार भी, सबके सब परेशान हैं तथा और मजबूर हैं.  जिले एक पुलिस अधिकारी अपनी मज़बूरी कुछ इस तरह बयां कर रहे हैं:

कट रही है ज़िन्दगी, 
जैसे जी रहे वनवास में 
हम तो पुलिस कर्मी हैं, 
ड्यूटी करना हर हाल में। 
हम तडपते हैं ड्यूटी पर, 
परिवार चितिंत है गांव में,
जिंदगी मानो ठहर सी गई है, 
बेड़ियाँ जकड़ी हैं पाँव में। 

सभी विभागों में छुट्टी हो गई, 
पुलिस ने पकड़ी रफ्तार, 
ताना मारकर लोग कहे, 
बैठा कर पैसा देती है सरकार। 
कमरों  में राशन नही,
फिर भी ड्यूटी जाते हैं, 
सारी दुकाने बन्द हो जाती, 
जब हम वापस आते हैं। 

माँ बाप सिसककर पूछ रहे,
बेटा तुम कैसे खाते हो, 
जब पूरा देश बन्द है तो, 
तुम ड्यूटी क्यो जाते हो। 

यहाँ सब कुछ मिल रहा, 
झूठ बोलकर माँ को समझाते है, 
देश के लिये समर्पित जीवन, 
इसलिए ड्यूटी जाते हैं। 
हम तो पुलिस कर्मी हैं साहब, 
केवल अपनी ड्यूटी निभाते हैं...

 "जय हिंद, जय भारत" जनाब! मधेपुरा टाइम्स भी मानती है आपकी भी है अहम् मज़बूरी. लेकिन इस दुःख की घड़ी में हम सब धर्य से मिलकर करें लॉक डाउन प्रक्रिया का पालन और लोगों के मदद में बढायें ईमानदारी पूर्वक अपने हाथ. वैसे किसी ने सही ही कहा है कि आपदा की इस घड़ी में पुलिस और पत्रकारों का मैत्री सम्बन्ध ही समाज के उन बिखरे लोगों को निष्पक्ष और सहनशीलता का आइना दिखाकर दुःख बाँट सकते हैं . बस कुछ ही दिनों की तो बात है सब ठीक हो जाएगा.

कुछ ही दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा: लॉक डाउन में नहीं थम रहे हैं कई गरीब परिवारों के आंसू कुछ ही दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा: लॉक डाउन में नहीं थम रहे हैं कई गरीब परिवारों के आंसू Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 29, 2020 Rating: 5

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