संघर्ष की अद्भुत कहानी: खुद के जले चेहरे के बावजूद इलाके की महिलाओं को खूबसूरत बनाने के पूरे हुए 20 साल
ये अपने आप में एक कहानी हैं. बेमिसाल संघर्ष की कहानी. ऐसी कहानी जो आसानी से नहीं लिखी जा सकती. अक्सर ऐसे हादसे के बाद लोग टूट जाया करते हैं.
खासकर इस पिछड़ी सोच वाले समाज में जहाँ उस समय लड़कियों को अधिक आगे बढ़ने से रोक दिया जाता था. वर्ष 1973 में जन्मी मधेपुरा की महज पांच साल एक बच्ची ने साल 1978 में ठीक से होश भी नहीं संभाला था कि किस्मत ने अथाह दर्द दे दिया. घर में ही हुए एक दुर्घटना ने उर्मिला का पूरा चेहरा और बदन के कुछ हिस्से को पूरी तरह जला दिया. आँखों की भी रौशनी चली गई थी जो बाद में आने लगी. बड़ी होने लगी तो पता चला कि दुनियाँ तो सुन्दरता की पुजारी है और उसके जले हुए भयावह चेहरे से क्लास में पढ़ने वाले भी दूर ही रहने लगे तो अपनी बर्बादी का एहसास हुआ.
सड़कों पर निकलती तो लोगों का रिएक्शन इसे देखकर अजीब होता. ठीक वैसे ही जैसे किसी एसिड अटैक की पीड़िता को देखकर समाज के अधिकांश लोगों को होता है. पर शायद एक बेटी यदि कुछ ठान ले तो असंभव जैसा कुछ भी नहीं. ग्रैजुएशन करते-करते वह समझ गई कि यदि उसने कुछ अलग नहीं किया और आत्मनिर्भर नहीं हुई तो घर और समाज पर बड़ा बोझ बनकर रह जायेगी.
जी हाँ, आप सही समझ रहे हैं. हम मधेपुरा शहर में मौजूद हनी ब्यूटी पार्लर की संचालिका की उर्मिला अग्रवाल की ही बात कर रहे हैं. आज उर्मिला अग्रवाल हजारों की चहेती है. जीवन के बेहद खूबसूरत सफ़र यानी हमसफ़र के पास जाने से पहले जिले की अधिकांश लड़कियों का आज सपना होता है कि उर्मिला उसे छू दे तो वह सोना बन जायेगी. इसके अलावे बड़े-बड़े घर की महिलाओं के सजने के लिए उर्मिला कहिये या घरेलू नाम मुन्नी, पहली पसंद है. मधेपुरा में दुल्हन सजाने में उर्मिला अग्रवाल के टक्कर का शायद कोई नहीं.
यही नहीं, श्वेता, अर्चना, लवली, रश्मि, रिशू, प्रीतू, आशा, कल्पना, प्रीति, बन्दना बबीता, झुनकी जैसी कई दर्जन लड़कियां इनसे ट्रेनिंग लेकर आज अपने पैरों पर खड़े होने का जज्बा रखती हैं. आज उर्मिला अग्रवाल के ब्यूटी पार्लर को बीस साल पूरे हो चुके हैं. छोटे से बड़े और आधुनिक होने की कहानी जिस पार्लर में लिखी गई, वहां इस मौके पर केक कटना तो स्वाभाविक ही था और साथ ही आपकी शुभकामनाओं से इस अद्भुत शख्सियत का मनोबल तो बढ़ेगा ही.
(वि. सं.)
खासकर इस पिछड़ी सोच वाले समाज में जहाँ उस समय लड़कियों को अधिक आगे बढ़ने से रोक दिया जाता था. वर्ष 1973 में जन्मी मधेपुरा की महज पांच साल एक बच्ची ने साल 1978 में ठीक से होश भी नहीं संभाला था कि किस्मत ने अथाह दर्द दे दिया. घर में ही हुए एक दुर्घटना ने उर्मिला का पूरा चेहरा और बदन के कुछ हिस्से को पूरी तरह जला दिया. आँखों की भी रौशनी चली गई थी जो बाद में आने लगी. बड़ी होने लगी तो पता चला कि दुनियाँ तो सुन्दरता की पुजारी है और उसके जले हुए भयावह चेहरे से क्लास में पढ़ने वाले भी दूर ही रहने लगे तो अपनी बर्बादी का एहसास हुआ.
सड़कों पर निकलती तो लोगों का रिएक्शन इसे देखकर अजीब होता. ठीक वैसे ही जैसे किसी एसिड अटैक की पीड़िता को देखकर समाज के अधिकांश लोगों को होता है. पर शायद एक बेटी यदि कुछ ठान ले तो असंभव जैसा कुछ भी नहीं. ग्रैजुएशन करते-करते वह समझ गई कि यदि उसने कुछ अलग नहीं किया और आत्मनिर्भर नहीं हुई तो घर और समाज पर बड़ा बोझ बनकर रह जायेगी.
जी हाँ, आप सही समझ रहे हैं. हम मधेपुरा शहर में मौजूद हनी ब्यूटी पार्लर की संचालिका की उर्मिला अग्रवाल की ही बात कर रहे हैं. आज उर्मिला अग्रवाल हजारों की चहेती है. जीवन के बेहद खूबसूरत सफ़र यानी हमसफ़र के पास जाने से पहले जिले की अधिकांश लड़कियों का आज सपना होता है कि उर्मिला उसे छू दे तो वह सोना बन जायेगी. इसके अलावे बड़े-बड़े घर की महिलाओं के सजने के लिए उर्मिला कहिये या घरेलू नाम मुन्नी, पहली पसंद है. मधेपुरा में दुल्हन सजाने में उर्मिला अग्रवाल के टक्कर का शायद कोई नहीं.
यही नहीं, श्वेता, अर्चना, लवली, रश्मि, रिशू, प्रीतू, आशा, कल्पना, प्रीति, बन्दना बबीता, झुनकी जैसी कई दर्जन लड़कियां इनसे ट्रेनिंग लेकर आज अपने पैरों पर खड़े होने का जज्बा रखती हैं. आज उर्मिला अग्रवाल के ब्यूटी पार्लर को बीस साल पूरे हो चुके हैं. छोटे से बड़े और आधुनिक होने की कहानी जिस पार्लर में लिखी गई, वहां इस मौके पर केक कटना तो स्वाभाविक ही था और साथ ही आपकी शुभकामनाओं से इस अद्भुत शख्सियत का मनोबल तो बढ़ेगा ही.
(वि. सं.)
संघर्ष की अद्भुत कहानी: खुद के जले चेहरे के बावजूद इलाके की महिलाओं को खूबसूरत बनाने के पूरे हुए 20 साल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 03, 2020
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