मधेपुरा के घैलाढ़ प्रखंड मुख्यालय समेत पूरे क्षेत्र में धनतेरस को लेकर बाजारों में रौनक देखने को मिल रही है.
धनतेरस को लेकर बाजार में लोगों की काफी चहल-पहल देखी जा रही है. सबसे अधिक भीड़ कपड़ा, आभूषण की दुकान एवं बर्तन की दुकानों पर दिख रही है. वहीं बच्चों के लिए पटाखों की कई अस्थाई दुकानें सज गई है. मिट्टी के दीए भी बरकरार हैं.
बताते चलें कि आधुनिकता की चौकाचौंध एवं चाइनीज निर्मित लाइट के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बहुलता के बावजूद भी मिट्टी के दीए का आस्तित्व बरकरार है. इसे आस्था कह लें या फिर परंपरा. आज भी शहर हो या गांव मिट्टी निर्मित दिए की प्रधानता कायम है. बाजार में मिट्टी के दिए की बिक्री हो रही है, भले ही औसत में कमी जरूर दिख रही है.
धनतेरस को लेकर पूजा सामग्री के साथ-साथ गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां, पटाखे, मिठाई, बर्तन और पशु के लिए रस्सी की खरीददारी से बाजार में रौनक बढ़ गई है. धनतेरस के दिन नए बर्तन खरीदने की परंपरा है. धनतेरस में बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं.
धनतेरस को लेकर बाजार में लोगों की काफी चहल-पहल देखी जा रही है. सबसे अधिक भीड़ कपड़ा, आभूषण की दुकान एवं बर्तन की दुकानों पर दिख रही है. वहीं बच्चों के लिए पटाखों की कई अस्थाई दुकानें सज गई है. मिट्टी के दीए भी बरकरार हैं.
बताते चलें कि आधुनिकता की चौकाचौंध एवं चाइनीज निर्मित लाइट के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बहुलता के बावजूद भी मिट्टी के दीए का आस्तित्व बरकरार है. इसे आस्था कह लें या फिर परंपरा. आज भी शहर हो या गांव मिट्टी निर्मित दिए की प्रधानता कायम है. बाजार में मिट्टी के दिए की बिक्री हो रही है, भले ही औसत में कमी जरूर दिख रही है.
धनतेरस को लेकर पूजा सामग्री के साथ-साथ गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां, पटाखे, मिठाई, बर्तन और पशु के लिए रस्सी की खरीददारी से बाजार में रौनक बढ़ गई है. धनतेरस के दिन नए बर्तन खरीदने की परंपरा है. धनतेरस में बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं.
धनतेरस को लेकर बाजार में रौनक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 25, 2019
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