
जी हाँ, स्व० बी० पी० मंडल एक ऐसा नाम है जिन्हें लेते हम नतमस्तक हो जाते हैं. आज ही के दिन 25 अगस्त 1918 को जन्मे स्व० बी० पी० मंडल ने मधेपुरा का नाम विश्व के मानचित्र पर छाने में महती भूमिका निभाई. क्या-क्या उपलब्धियां रही उनकी? कैसी सी थी उनकी जीवनशैली? बहुत सारी बातें थी उनमे जिनका अनुकरण कर हम समाज को बदल सकते हैं. आइए 25 अगस्त को युग पुरुष बी० पी० मंडल की शताब्दी जयन्ती पर जहाँ बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी आगमन हो रहा है वहीँ उनके पूरे जीवन को एक बार फिर याद करते हुए आपके सामने मधेपुरा टाइम्स की एक ख़ास प्रस्तुति.
अन्याय का विरोध करना जन्म से ही उनके स्वभाव में था
स्व० बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 में बनारस में उसी दिन हुआ जब 51 वर्ष के आयु में बीमार होने के कारण उनके पिता स्व० रास बिहारी लाल मंडल अंतिम सांसे ले रहे थे.

मंडल जी 1945 से 1951 तक अवैतनिक दंडाधिकारी के पद पर भी रहे थे. इस पद से इन्होंने तत्कालीन भागलपुर के जिलाधिकारी के के अफसरशाही रवैये के विरोध में त्यागपत्र दे दिया था.

‘ग्वाला’ शब्द के प्रयोग पर उन्होंने कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी


स्वाभिमान पर ठेस कतई बर्दाश्त नहीं

बने सूबे के मुख्यमंत्री
कालांतर में 1 फरवरी 1968 को कांग्रेस के सहयोग से बी० पी० मंडल के मुख्य मंत्रित्व में शोषित दल सरकार का गठन हुआ. मात्र 45 दिन में इनका पतन हो गया. ऐसा मंडल जी के निष्पक्ष, सही, ईमानदार एवं दृढ निर्णय लेने के कारण हुआ. सरकार के पतन का मुख्य कारण यह था कि संविदा सरकार द्वारा कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी पूर्व मंत्रियों के विरुद्ध भष्टाचार की जाँच करने हेतु अय्यर कमीशन का गठन हुआ था. चूंकि शोषित दल सरकार कांग्रेस के समर्थन पर टिकी थी, अतः प्रभावित कांग्रेस सदस्य अय्यर कमीशन को खत्म करने दबाव मंडल सरकार पर देने लगे, लेकिन मंडल जी इस अनैतिक काम को करने के लिए तैयार नहीं हुए. फलतः कुछ कॉंग्रेसियों के द्वारा सरकार को गिरा दिया गया. यहाँ उल्लेखनीय है कि सरकार के विरुद्ध प्रस्ताव लाने का फैसला जब कांग्रेसियों ने किया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस की छवि खराब नहीं होने देने के लिए तथा कांग्रेस में फूट रोकने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के पूर्व ही मंडल जी से पद त्याग देने का आग्रह किया. लेकिन मंडल जी मतदान का सामना करने का मन बना लिए थे और कांग्रेस को बेनकाब करना चाहते थे. स्व० श्रीमती गाँधी जी ने मंडल जी को ऊँचे पदों का लोभ भी दीं थीं, लेकिन वे इस लोभ से अपने निर्णय से विचलित नहीं हुए .

यद्दपि बी० पी० मंडल की सरकार अल्पकालीन रही. लेकिन भारत की राजनीति विशेष रूप से पिछडों की राजनीति में इसका दूरगामी क्रन्तिकारी अच्छा प्रभाव पड़ा. यदि दो दिन के सतीश सिंह सरकार को छोड़ दिया जाये तो बी० पी० मंडल उत्तरी भारत में पिछड़े वर्ग के सर्वप्रथम मुख्यमंत्री बने. बी० पी० मंडल का मुख्यमंत्री बनने हेतु उनका विधान मंडल का सदस्य होना अनिवार्य था. इस हेतु मंडल जी ने पहले सतीश सिंह को मुख्यमंत्री बनवाया. तत्पश्चात श्री सिंह मंडल जी को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किये और इस प्रकार मंडल का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हुआ. अतः वास्तव में मंडल जी ही पिछड़े वर्ग के प्रथम मुख्यमंत्री माने जा सकते हैं.
आज भी मंडल सरकार को उसके निर्णय की निष्पक्षता, स्पष्टता, दृढता, एवं ईमानदारी के लिए याद किया जाता है. इसके कार्यकलाप से जनता एवं नौकरशाहों में समान रूप से आशा जगी थी कि मंडल जी बिहार की दशा में क्रांतिकारी सुधार ला सकते हैं. मंडल सरकार के पतन के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था, लेकिन राज्यपाल के सलाहकारों ने मंडल सरकार के किसी भी निर्णय को गलत एवं असंगत नहीं कहा. बल्कि फाइलों के अवलोकन के बाद मंडल सरकार के निर्णय को काफी सराहा था .
वे 1968 में ही पुनः उपचुनाव जीतकर संसद सदस्य बने. 1972 में मंडल विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा 1975 में जे० पी० आंदोलन के समर्थन में विधानसभा से त्यागपत्र दे दिए. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर संसद सदस्य बने मंडल जी सही बात कहने में दल की सीमा में नहीं बंधे थे. 1978 में इंदिरा गाँधी जब चिकमंगलूर से संसदीय उपचुनाव जीतकर संसद में गयीं थीं तो मात्र 2 घंटे के जनता पार्टी की सरकार द्वारा प्रस्ताव पारित कर श्रीमती गाँधी की सदन सदस्यता समाप्त करने की कार्यवाही का कांग्रेस सदस्यों को छोड अन्य दलों के सदस्यों में एक मात्र बी० पी० मंडल जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य होते हुए भी इस निर्णय का कड़ा विरोध किया था. यूं तो उपरोक्त सभी घटनाएँ मंडल जी के राष्ट्रीय पहचान को रेखांकित करता है लेकिन द्वितीय अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में वे भारत के दलितों, शोषितों, पिछडों, कमजोर लोगों, अपंगों आदि को जो अनमोल भेंट दिया, उससे वे राष्ट्रव्यापी व्यक्तित्व ही नहीं विश्व प्रसिद्ध एवं युग पुरुष की श्रेणी में आ गए. आज वे दलितों, पिछड़ों, शोषितों एवं कमजोर लोगों के ह्रदय में निवास करतें हैं.
मंडल कमीशन व्यापक दृष्टिकोण पर आधारित
बी. पी. मंडल की ईमानदारी, निष्पक्षता एवं तेजस्विता से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इन्हें 01.01.1979 को अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था. मंडल रिपोर्ट बनाने में मंडल जी को कठिन परिश्रम करना पड़ा. इसमें मंडल जी की विद्वता ज्ञान की तीक्ष्णता एवं अध्यक्ष रहते हुए कहे थे कि- “लोग मुझे पिछडों का दुश्मन समझते हैं, लेकिन मेरा रिपोर्ट बताएगा कि मैं पिछडों का दोस्त हूँ या दुश्मन.” रिपोर्ट में ना सिर्फ आरक्षण सम्बंधी सुझाव और ना ही किसी जाति विशेष के हित का रिपोर्ट है, वरन इसमें सम्पूर्ण विकास पर विस्तार से सुझाव दिया गया है तथा यह रिपोर्ट किसी जाति विशेष को सम्पूर्ण भारत के लिए पिछड़ा या अगड़ा नहीं मान लिया है, वरन जो जाति जिस राज्य में पिछड़ा है उसे वहाँ कि राज्य-सूची में पिछड़ा तथा यदि जाति दूसरे राज्य में अगड़ा है तो उसे उस राज्य कि सूची में अगड़ा माना गया है, जैसे असम में कायस्थ कर्नाटक में राजपूत तथा 12 राज्यों में ब्राह्मण भी पिछड़ा वर्ग में शामिल किये गए हैं.
अतः स्पष्ट है कि श्री मंडल का दृष्टिकोण व्यापक था. मंडल जी जीवनपर्यन्त बिहार राज्य नागरिक परिषद के उपाध्यक्ष रहे. इनका असामयिक निधन 13 अप्रैल 1982 को ह्रदय गति रुक जाने के कारण हुआ.
डॉ. के. के. मंडल के शब्दों में, "मंडल जी की मृत्यु के बाद से मधेपुरा में रिक्तता आ गयी है. यह प्राकृतिक नियम है कि रिक्तता रहती नहीं है स्वतः भर जाती है, किन्तु कुछ व्यक्तित्व होतें हैं जो अमिट छाप छोड़ जातें हैं. मंडल जी की निर्भीकता, अदम्य उत्साह और अटूट विश्वास तथा आत्मबल सदा अनुकरणीय रहेगा. वे सत्ता और प्रशासन के पिछलग्गू नहीं थे. वे ऐसे जन प्रतिनिधि थे जिनके पीछे सत्ता का प्रशासन चलता था. उनके व्यक्तित्व में स्वाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ था. जिस दिन श्री मोरारजी देसाई का मंत्रीमंडल गिरा था मैं दिल्ली में ही था. उनके साथी सांसद श्री विनायक प्रसाद यादव मंत्री मंडल गिराने वाले सांसद में थे. उससे पूर्व संध्या में मैं और विनायक जी साथ-साथ उनके निवास पर 21 ,जनपथ गया था. विनायक ने मंडल जी से अनुरोध किया कि मोरारजी देसाई में मंत्रिमंडल को गिराने में साथ दें उन्होंने स्पष्टतः अस्वीकार कर दिया. उनका तर्क था कि मोरारजी भाई की सरकार अच्छी सरकार है और उन्होंने मुझे सम्मान दिया है. मै इस सरकार को गिराने का कलंक अपने माथे नहीं लूँगा. वे अच्छी तरह जानते थे कि इसकी कीमत उन्हें चुनाव में चुकानी पड़ेगी और उसकी कीमत चुकानी भी पड़ी पर वे संकल्प से विचलित नहीं हुए.
वे एक दृढ प्रतिज्ञ व्यक्ति थे और इसका निर्वाह जीवनपर्यंत किया. मधेपुरा कि जनता उनकी निर्भीकता, स्पष्टवादिता और दृढ प्रतिज्ञा की प्रशंसक आज भी है.चुनाव हारना और जीतना कई बातों पर निर्भर करता है. राजनीतिक चरित्र का निर्वाह करना बहुत ही कठिन है."
(वि. सं.)
स्व० बी० पी० मंडल: एक युग-पुरुष की जीवन गाथा (शताब्दी समारोह 25 अगस्त पर विशेष)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 22, 2018
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