शैव तीर्थों में मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर का अपना ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है. यह प्राचीन तीर्थ ही नहीं बल्कि विभिन्न आर्येतर संस्कृतियों का संगम स्थल है.
सिंहेश्वर भगवान शिव का प्राचीन धाम और पावन तपःस्थली है. कहा जाता है कि इसी वन में भगवान शिव तपस्या में लीन थे. काफी दिनों तक इनकी सुधी नहीं मिली तो जगत पिता ब्रह्मा, पालनहार भगवान बिष्णु और देवताओं के राजा इंद्र इनको खोजने निकले तो इसी वन में अलोकिक मृग के रुप में विचरण करते देखा तो तीनों ने उनका सिंह पकड़ लाया. जो टूट कर तीनों के हाथ में ही रह गया. भगवान विष्णु के हाथ में आए भाग को भगवान विष्णु ने मैय गीरी पर्वत पर स्थापित कर दिया. जो बाबा सिंहेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है. इससे करोड़ों श्रृद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है.
इसी आस्था के कारण भगवान भोलेनाथ का पवित्र माह सावन का ये उत्तम स्थान है. जिस माह में श्रृद्धालु दूर-दूर से बाबा सिंहेश्वर नाथ का दर्शन और पूजन करने आते हैं. इस मास के सोमवार के व्रत का अपना अलग ही महत्व है. इस बावत पुजारी प्रेम जी पंडा ने बताया कि इस व्रत को करने से व्रतियों के दोनों लोक सुधर जाते हैं. सोमवार का व्रत करोड़ों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला है.
इसकी पूजन विधि भी देवाधिदेव महादेव के तरह सरल है. इस दिन भगवान शिव का व्रत रख कर संध्या में शिव की पूजा कर, उसके बाद फल का सेवन करना. इस दिन बाबा का श्रृंगार एवं विषेश पूजा होता है. श्रृंगार और विषेश पूजा में गंगा जल, मधु, चन्दन, शक्कर, दही, पंचामृत, तेल, के बाद सवा लाख बेल पत्र से ढक दिया जाता है. उसे फूल और मालाओं से लादकर कर जब उस पर भगवान शिव की अलोकिक मूर्ती विराजमान होते ही मंदिर में अलोकिक दृश्य दिखाई देता है. हर श्रृद्धालू उस अलौकिक क्षण का दर्शन कर धन्य हो जाते हैं.


इसी आस्था के कारण भगवान भोलेनाथ का पवित्र माह सावन का ये उत्तम स्थान है. जिस माह में श्रृद्धालु दूर-दूर से बाबा सिंहेश्वर नाथ का दर्शन और पूजन करने आते हैं. इस मास के सोमवार के व्रत का अपना अलग ही महत्व है. इस बावत पुजारी प्रेम जी पंडा ने बताया कि इस व्रत को करने से व्रतियों के दोनों लोक सुधर जाते हैं. सोमवार का व्रत करोड़ों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला है.
इसकी पूजन विधि भी देवाधिदेव महादेव के तरह सरल है. इस दिन भगवान शिव का व्रत रख कर संध्या में शिव की पूजा कर, उसके बाद फल का सेवन करना. इस दिन बाबा का श्रृंगार एवं विषेश पूजा होता है. श्रृंगार और विषेश पूजा में गंगा जल, मधु, चन्दन, शक्कर, दही, पंचामृत, तेल, के बाद सवा लाख बेल पत्र से ढक दिया जाता है. उसे फूल और मालाओं से लादकर कर जब उस पर भगवान शिव की अलोकिक मूर्ती विराजमान होते ही मंदिर में अलोकिक दृश्य दिखाई देता है. हर श्रृद्धालू उस अलौकिक क्षण का दर्शन कर धन्य हो जाते हैं.

मनोकामनापूर्ण है सिंहेश्वर: भगवान शिव की रही है तपोस्थली
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 29, 2018
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