मधेपुरा जिला के चौसा प्रखंड अंतर्गत कई पंचायत के लिए बाढ़ 2008 में प्रलयंकारी बाढ़ आने के बाद बिहार सरकार ने बाढ़ प्रभावित लोगों को ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए करोड़ों रूपये की लगत से मुख्यमंत्री बाढ़आश्रय का निर्माण कराया गया।
लेकिन यह बाढ़ आश्रय सिर्फ शोभा की वस्तु बन कर रह गई है। इसका मुख्य कारण है बाढ़ आश्रय के लिए ऊँची जगह का चयन नहीं करना। सिर्फ खानापूर्ति करना किया गया है. बाढ़ से बचने के लिए ऊंचा स्थान चाहिए जहाँ लोग किसी तरह अपना जीवन बचा सकते. लेकिन चौसा प्रखंड में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जो भी बाढ़ आश्रय बना है वह उस क्षेत्र के सबसे निचले इलाके में बना जहां गांव में पानी प्रवेश करने से पहले बाढ़ आश्रय स्थल में पानी पहुंच जाता है। और बाकी सूखे दिनों में उसका कोई भी उपयोग नहीं किया जा सकता, सिर्फ किसी न किसी का उसके ऊपर अतिक्रमण बना रहता है. चाहे वह फुलौत के हाहा धार का बाढ़ आश्रय चाहे चिरौरी पंचायत के तीन मुहि में हो. चाहे वह बाढ़ आश्रय मोरसंडा के बहियार या फिर चौसा प्रखंड मुख्यालय के पास का बाढ़ आश्रय हो यह सिर्फ शोभा की वस्तु बनी हुई है । मुख्यालय छोड़ बाढ़ आश्रम में बाढ़ के समय लोगों का आवाजाही के लिए कोई भी उचित रास्ता नहीं है. लोगों को नाव पर ही सवार होकर जाना होता है.
जब आज मधेपुरा टाइम्स टीम ने लोगों से बात की कि अब बाढ़ आने वाला है, इस बार आश्रय का उपयोग होगा या नहीं, देखना बाकी है. लोगों ने कहा कि यह अधिकारियों का कमाऊ भवन है। अभी कुछ ही वर्ष हुआ है इस भवन का और अब यह जर्जर होने के कगार पर है। सरकार ने सिर्फ पैसा बर्बाद करने के लिए यह बाढ़ आश्रय का निर्माण करवाया है। यह सिर्फ हाथी का दांत है दिखावे के लिए, उपयोग के लिए नहीं. इस में किसी न किसी का अतिक्रमण बना रहता है। पिछले वर्ष चौसा मुख्यालय को खाली करने के लिए ग्रामीणों ने जिला पदाधिकारी तक को आवेदन दिया लेकिन अभी तक वह अतिक्रमण कर रखा है।
किसी भी बाढ आश्रय स्थल पर शुद्ध पेयजल की बात तो दूर एक अदद चापाकल भी नहीं लगा हुआ है। शौचालय की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। किचन शेड सहित बाढ आश्रय स्थल जर्जर अवस्था में है। गांव से काफी दूर सुनसान जगहों पर बने बाढ आश्रय स्थल पूरे दिन पशुओं का आश्रय स्थल बना रहता है। और शाम ढलते ही असमाजिक तत्वों का यहां जमावड़ा लगने लगता है। बाढ आश्रय स्थल पर हर जगह किसी न किसी के द्वारा कब्जा जमा रखा है।
आश्रय स्थल के किसी भी दरवाजे पर न तो ताला लगा है और न ही इसकी देख रेख के लिए कोई पुख्ता इंतजाम किया गया है। आमजनों का कहना है कि आश्रय स्थल किसी गांव या टोला में घनी आबादी के बीच निर्माण किया जाता तो इसकी उपयोगिता समझ में आती। लेकिन सुनसान स्थान पर बाढ आश्रय स्थल का निर्माण लोगों की समझ से परे है। जिसका उपयोग बाढ़ की विभिषिका के समय में भी नहीं हो सकता है। अधिकांश आश्रय स्थल तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क तक का निर्माण कराया नहीं गया है। वहां तक पहुंचने के लिए कमर से उपर तक पानी में पार कर जाना पड़ता है। बारिश के समय में आश्रय स्थल चारों तरफ से पानी से घिरा रहता है। विस्थापित लोग क्या करेंगे, इसका जवाब किसी प्रतिनिधि या प्रशासन के पास नहीं है.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq6ggiawT9HJD8Px9b8Jwn2lUEL1DzKde2oeRO0Pe5qnAFh5cC4pGgyR6wniZgK65y4LQIpdzIiVTopcGl6QfnrDk48ymKG79xB2uGV2IkZuthoLnLkhWzZaJFLbpblBz7mux5JYSBkNQ/s320/Arif+Chausa.jpg)
लेकिन यह बाढ़ आश्रय सिर्फ शोभा की वस्तु बन कर रह गई है। इसका मुख्य कारण है बाढ़ आश्रय के लिए ऊँची जगह का चयन नहीं करना। सिर्फ खानापूर्ति करना किया गया है. बाढ़ से बचने के लिए ऊंचा स्थान चाहिए जहाँ लोग किसी तरह अपना जीवन बचा सकते. लेकिन चौसा प्रखंड में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जो भी बाढ़ आश्रय बना है वह उस क्षेत्र के सबसे निचले इलाके में बना जहां गांव में पानी प्रवेश करने से पहले बाढ़ आश्रय स्थल में पानी पहुंच जाता है। और बाकी सूखे दिनों में उसका कोई भी उपयोग नहीं किया जा सकता, सिर्फ किसी न किसी का उसके ऊपर अतिक्रमण बना रहता है. चाहे वह फुलौत के हाहा धार का बाढ़ आश्रय चाहे चिरौरी पंचायत के तीन मुहि में हो. चाहे वह बाढ़ आश्रय मोरसंडा के बहियार या फिर चौसा प्रखंड मुख्यालय के पास का बाढ़ आश्रय हो यह सिर्फ शोभा की वस्तु बनी हुई है । मुख्यालय छोड़ बाढ़ आश्रम में बाढ़ के समय लोगों का आवाजाही के लिए कोई भी उचित रास्ता नहीं है. लोगों को नाव पर ही सवार होकर जाना होता है.
जब आज मधेपुरा टाइम्स टीम ने लोगों से बात की कि अब बाढ़ आने वाला है, इस बार आश्रय का उपयोग होगा या नहीं, देखना बाकी है. लोगों ने कहा कि यह अधिकारियों का कमाऊ भवन है। अभी कुछ ही वर्ष हुआ है इस भवन का और अब यह जर्जर होने के कगार पर है। सरकार ने सिर्फ पैसा बर्बाद करने के लिए यह बाढ़ आश्रय का निर्माण करवाया है। यह सिर्फ हाथी का दांत है दिखावे के लिए, उपयोग के लिए नहीं. इस में किसी न किसी का अतिक्रमण बना रहता है। पिछले वर्ष चौसा मुख्यालय को खाली करने के लिए ग्रामीणों ने जिला पदाधिकारी तक को आवेदन दिया लेकिन अभी तक वह अतिक्रमण कर रखा है।
किसी भी बाढ आश्रय स्थल पर शुद्ध पेयजल की बात तो दूर एक अदद चापाकल भी नहीं लगा हुआ है। शौचालय की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। किचन शेड सहित बाढ आश्रय स्थल जर्जर अवस्था में है। गांव से काफी दूर सुनसान जगहों पर बने बाढ आश्रय स्थल पूरे दिन पशुओं का आश्रय स्थल बना रहता है। और शाम ढलते ही असमाजिक तत्वों का यहां जमावड़ा लगने लगता है। बाढ आश्रय स्थल पर हर जगह किसी न किसी के द्वारा कब्जा जमा रखा है।
आश्रय स्थल के किसी भी दरवाजे पर न तो ताला लगा है और न ही इसकी देख रेख के लिए कोई पुख्ता इंतजाम किया गया है। आमजनों का कहना है कि आश्रय स्थल किसी गांव या टोला में घनी आबादी के बीच निर्माण किया जाता तो इसकी उपयोगिता समझ में आती। लेकिन सुनसान स्थान पर बाढ आश्रय स्थल का निर्माण लोगों की समझ से परे है। जिसका उपयोग बाढ़ की विभिषिका के समय में भी नहीं हो सकता है। अधिकांश आश्रय स्थल तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क तक का निर्माण कराया नहीं गया है। वहां तक पहुंचने के लिए कमर से उपर तक पानी में पार कर जाना पड़ता है। बारिश के समय में आश्रय स्थल चारों तरफ से पानी से घिरा रहता है। विस्थापित लोग क्या करेंगे, इसका जवाब किसी प्रतिनिधि या प्रशासन के पास नहीं है.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq6ggiawT9HJD8Px9b8Jwn2lUEL1DzKde2oeRO0Pe5qnAFh5cC4pGgyR6wniZgK65y4LQIpdzIiVTopcGl6QfnrDk48ymKG79xB2uGV2IkZuthoLnLkhWzZaJFLbpblBz7mux5JYSBkNQ/s320/Arif+Chausa.jpg)
बाढ़ आश्रय स्थल: शोभा की वस्तु बन रो रहा बदहाली के आँसू
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 22, 2018
Rating:
![बाढ़ आश्रय स्थल: शोभा की वस्तु बन रो रहा बदहाली के आँसू](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPNxY20KrTtcJWJ95lZvV6CF2ygCsgKVZEbqTbsyRiWo9Oi4uZboXMG8ZrKNRBQvHihyphenhyphen86t5ge5TDLouBNco3BE_Mjb9NGfLhd4yTm6CXCpwBsavVV1m46pPII4rSlKu9LTsB3ZKhbSuU/s72-c/MT+.jpg)
No comments: