‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की आठवीं वर्षगांठ

आओ इन तारीखों में सुर्खियाँ पैदा करें,
इस जमीं की बस्तियों से, आसमां पैदा करें.

एक लम्बे समय, आठ वर्ष पूर्व कुछ ऐसे ही जज्बे के साथ विचारों की प्रसव-वेदना के बाद समाजवाद की कर्मभूमि मधेपुरा में 21 मार्च 2010 को मधेपुरा टाइम्स का जन्म हुआ.

अपार सुखद अनुभूति के बीच पीड़ा क्षणभंगुर साबित हुआ. हाँ, बाल्यावस्था के शुरू के वर्षों में जरूर महसूस हुआ कि जन्म देना आसान होता है लेकिन पालना कठिन. बावजूद यह सफर जारी रहा.

आज मधेपुरा टाइम्स की आठवीं वर्षगाँठ पर आप सुधि पाठकों को टाइम्स परिवार की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं. यह आपके हौसलाअफजाई का ही परिणाम था कि जब भी हम लड़खड़ाए, आपने दो कदम आगे बढ़कर अपने दामन का सहारा दिया. हम यह कतई नहीं भुला सकते कि आप सबों ने हमें अंगुली पकड़ कर न केवल चलना सिखाया बल्कि सच की राह भी दिखाई और सफेदपोशों की पहचान भी कराई. उन तमाम सहयोगी मित्रों को कोटिशः धन्यवाद जिन्होंने अपनी अमूल्य लेखनी से मधेपुरा टाइम्स का सम्मान बढ़ाया.

आने वाला वर्ष, चुनौतियों से भरा होगा, ऐसा हम मानते हैं. खुद अपने पैरों पर खड़ा होना आसान नहीं होता है. समाज की अपेक्षाएं भी बढ़ेगी तो नकाबपोशों से चुनौतियाँ भी मिलेंगी. जयचंद और मीर जाफर की पहचान भी जरूरी होगी. इन तमाम बाधाओं के बीच शुचिता के साथ धर्म का पालन करना भी हमारी प्राथमिकता होगी. ऐसे में हम आपके निरंतर सहयोग की अपेक्षा रखते हैं.

स्नेहीजन ! वक्त निश्चित ही करवट बदल रहा है और हालात तेजी से बदल रहे हैं. बदलते वक्त के आईने में अगर पत्रकारिता क्षेत्र को देखें तो निराशा ही मिलती है. पत्रकारिता के तेवर ढीले हो रहे हैं और कलम की लेखनी कुन्द हो रही है. निश्चय ही यह वक्त की सबसे बड़ी बिडम्बना है. इस बात से हम पूरी तरह सहमत हैं कि बिहार में पत्रकारिता स्वतंत्र नहीं है. यहाँ चमचागिरी और विज्ञापन के बोझ तले बेबाकी, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और सच दब कर रह गयी है और पत्रकारिता एक बाजारूपेशा बन कर रह गया है.

हमें यह कहते तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है कि समय के साथ पत्रकारिता जगत से जुड़े बहुत सारे लोगों की छवि महज दलाल की बनकर रह गयी है. पेडन्यूज की वजह से अखबारों की छवि क्या है किसी से छुपी हुई नहीं है. सनसनी परोसने के आदी हो चुके देश के कई न्यूज पोर्टल और इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया की छवि दांव पर है. जिला और प्रखंड स्तर पर काम कर रहे पत्रकार बंधु समाचार और विज्ञापन के दो पाट के बीच किस तरह पिस रहे हैं यह सर्वविदित है. प्रबंधन का बढ़ता शिकंजा और जारी शोषण कस्बाई पत्रकारों की क्या हालत बना दी है, यह शायद ही किसी से छुपी हुई नहीं है. जाहिर है पत्रकारिता के इस संक्रमण दौड़ से गुजरते हुए आपकी शुभकामना ही ऐसा संबल है जो हमें पत्रकारिता धर्म से विमुख नहीं होने दे रही है.

मैं अकेला चला था जानिब-ए-मंज़िल, लोग आते गए और कारवाँ बनता गया. स्पष्ट है आठ वर्ष के सफर में चौदह करोड़ से अधिक विजिट्स एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन हम मानते हैं कि सितारों से आगे भी जहाँ है. आपका विश्वास मिलता रहा तो शीघ्र ही हम साप्ताहिक अखबार और इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल के साथ सच के कुरुक्षेत्र में दाखिल होंगे. आपसे आग्रह है कि आप हमें सच का आईना दिखाते रहें ताकि हम इस बाजार में खुद को बिकने से बचा सकें. आप सुधि पाठकों को हम विश्वास दिलाना चाहेंगे कि बेबाकी और हकीकत हमारा हथियार है और यही हमारा मूलमंत्र भी है. बिहार के 106वें स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ हम बेहतर बिहार के निर्माण में कुछ इस तरह की अपनी भागीदारी निभाना चाहते हैं-
      मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ,
       मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं,’
                 पुन: आठवीं वर्षगाँठ की शुभकामनाएं सहित,
                 मधेपुरा टाइम्स टीम.
(मधेपुरा टाइम्स की आठवीं वर्षगाँठ पर हमें मधेपुरा के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक समेत अन्य अधिकारियों की प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जो हमारा मनोबल बढाने वाली हैं. आप भी सुनें और गर्व करें, यहाँ क्लिक करें.)
‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की आठवीं वर्षगांठ ‘बेबाकी’ और ‘हकीकत’ की आठवीं वर्षगांठ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 21, 2018 Rating: 5
Powered by Blogger.