सुपौल। कोसी नदी की लीला में दोनों तटबंध के बीच बसी बड़ी आबादी तबाह और बर्बाद होती रही है। हमेशा से पुनर्वासित करने के नाम पर उनलोगों को सब्जबाग दिखाया गया है।
चुनाव के समय उम्मीदवार जनप्रतिनिधियों द्वारा वादों को झड़ी लगा दी जाती है।फिर चुनाव खत्म होते ही सब कुछ ठंढ़े बस्ते में पर जाता है।
प्रखंड क्षेत्र के हजारों कोसी वासी तटबंध के अंदर हर साल बाढ़ की पीड़ा झेलने को विवश हैं। आलम यह है कि साल के नौ महीनों तक लोग तिनका-तिनका जोड़ कर आशियाना खड़ा करते हैं। बीमारी का इलाज, बच्चों की शिक्षा व बेटी के हाथ पीले करने की चिंता भी होती है।लेकिन वर्षा ऋतु के तीन महीनों के दौरान आयी बाढ़ घर-बार के साथ ही उम्मीदों को भी बहा ले जाती है। बाढ़ की समस्या के स्थायी निदान हेतु आवाजें उठती रही है, लेकिन सियासतदानों के आश्वासन के घूंट से ही उन्हें संतोष करना पड़ता है। आपदा की घड़ी में उन्हें कोसी मइया का ही एक मात्र सहारा होता है।
विस्थापितों को अब तक नहीं मिला पुनर्वास:
वर्ष
2010 में कोसी के कटाव व प्रलयंकारी बाढ़ से विस्थापित हजारों परिवार पूर्वी कोसी तटबंध, स्पर व एनएच 57 के किनारे शरण लिये हुए हैं। वहीं कई परिवार अन्य जगहों पर पलायन कर चुके हैं। कोसी विस्थापितों का परिवार आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। उनके बच्चों को भी शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। विस्थापितों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल सहित अन्य सुविधाएं मयस्सर नहीं हो पा रही है।विस्थापन के छह वर्ष बीत जाने के बावजूद भी विस्थापित परिवार आज भी खानाबदोश की जिंदगी जीने को विवश हैं। लेकिन उनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। सरकार एवं जन प्रतिनिधियों से उपेक्षित कोसी पीड़ित आज भी भगवान भरोसे जीने को विवश हैं।
हजारों परिवार झेल रहे विस्थापन का दंश: विस्थापितों को वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त जेआरके राव ने जायजा लेने के बाद स्थानीय सीओ को जमीन उपलब्ध करा कर पुनर्वासित करने तथा इंदिरा आवास सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया था। लेकिन आयुक्त के आदेश पर अब तक अमल नहीं किया गया। सबसे बड़ी बाधा यह है कि बाजार मूल्य अथवा निबंधन मूल्य पर भूदाता द्वारा जमीन नहीं दी जा रही है। जिससे पुनर्वास की व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।सरकार के आदेश से भू-अर्जन विभाग द्वारा जमीन अधिग्रहण करके विस्थापित परिवारों को बसाने का कार्य किया जाय तो इस समस्या से निजात मिल सकता है।
बुनियादी शिक्षा से महरूम हैं बच्चे:
बाढ़
से पूर्व हजारों परिवारों का अपने गांव में अच्छी खासी गृहस्थी चल रही थी।वे अपने परिवार के साथ सुखमय जिंदगी जी रहे थे। ऐसे परिवारों के समक्ष अब ना सिर्फ आर्थिक संकट बल्कि भोजन के लाले भी पड़े हुए हैं, या यू कहें कि सभी दाने-दाने को मोहताज बने हुए हैं। कुछ विद्यालयों को भी मूल स्थान से विस्थापित कर अन्य स्थानों पर ले जाया गया।ताकि विस्थापितों के बच्चों को समुचित शिक्षा प्राप्त हो सके। लेकिन ऐसे विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति नाम मात्र ही देखी जा रही है। कारण बताया जा रहा है कि विस्थापित परिवारों के पुरूष वर्ग परिवार की रोजी रोटी को लेकर दिल्ली, पंजाब, कश्मीर, कोलकत्ता सहित अन्य प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं।जिसके कारण चुल्हा-चौका से लेकर कृषि व मवेशी के कार्यों का जिम्मा महिलाओं व नौनिहालों पर है। यही वजह है कि इन बच्चों का भविष्य दांव पर है। बच्चों में शिक्षा प्राप्त करने की ललक भी है। लेकिन परिस्थिति वश व आर्थिक तंगी से जूझ रहे बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के बजाय पारिवारिक कार्यों में उलझे हुए हैं। नतीजा है कि हजारों नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है।
बेवजह देनी पड़ती है मालगुजारी: कोसी पीड़ितों ने बताया कि तटबंध के भीतर उनकी जमीन कोसी नदी के कोख में समा चुकी है। जिसके कारण खेतीबाड़ी चौपट हो चुका है। कोसी महासेतु निर्माण, सुरक्षा गाईड बांध व तटबंध के बीच कोसी नदी का बहाव जारी है। इन खेतों का मुआवजा भी नहीं मिला है। बावजूद सरकारी दर पर मालगुजारी प्रत्येक वर्ष देनी पड़ती है। सरकार की इस दोरंगी नीति से कोसी वासियों में आक्रोश का माहौल व्याप्त है।
कहते हैं अधिकारी: शरत कुमार मंडल, अंचलाधिकारी, सरायगढ़-भपटियाही कहते हैं कि वासगीत पर्चा, बंदोबस्ती व क्रय नीति के तहत 1002 परिवारों को सुविधा प्रदान
की
गयी है। फिलहाल अभियान बसेरा के तहत क्रय नीति से 226 परिवारों को पांच-पांच डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने की प्रक्रिया चल रही है।
मुख्यमंत्री जी ध्यान दें! अब भी पुनर्वास की बाट जोह रहे हजारों कोसी विस्थापित परिवार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 12, 2016
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