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मिली जानकारी के अनुसार बीती रात के
हंगामे के बाद भले ही डीएम, एसपी समेत वरीय पदाधिकारी और पुलिस बल बिहारीगंज बाजार
में कैंप कर रहे थे, पर अन्दर से सुलग रहा तनाव एक बार फिर बाहर आ गया. बताते हैं
कि दिन में जैसे ही ताजिया का एक गुट बाजार घुसा पत्थरबाजी शुरू हो गई. प्रशासनिक
पदाधिकारियों ने मामला शांत करा दिया और जुलूस को छोड़ने कुछ दूर तक गए कि इसी बीच
एक अन्य गुट बाजार में घुस गया और फिर आपसी भिडंत हो गई. प्रशासन के अधिकारी और
पुलिस बल के लौटने से पहले यह गुट भाग गया. इसके बाद स्थानीय लोगों का आक्रोश एक
बार फिर बढ़ा और वे हंगामा करने लगे. इस दौरान प्रशासन और लोगों के बीच भी
पत्थरबाजी हुई. दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर पहले पत्थरबाजी का आरोप लगाया है.
पुलिस के द्वारा दोनों ही पक्ष के
उपद्रवियों को शांत करने में खासी मशक्कत करनी पड़ी और न सिर्फ पुलिस ने लाठी चार्ज
किया बल्कि करीब आधा दर्जन अश्रुगैस के गोले भी छोड़ने पड़े. दिन के पूरे घटनाक्रम
में करीब दर्जन भर लोगों के घायल होने के समाचार हैं. घटनास्थल पर पुलिस कैम्प कर
रही है.
घटना के बाद मधेपुरा सांसद पप्पू यादव
और मुरलीगंज वार्ड पार्षद श्वेत कमल उर्फ़ बौआ यादव ने अलग-अलग घूम कर लोगों से
शान्ति की अपील की.
(नि.सं.)
बिहारीगंज में फिर उपद्रव, लाठीचार्ज और अश्रुगैस के बाद स्थिति नियंत्रण में
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 12, 2016
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बिहारीगंज घटना पर शर्मिंदा हैं:
ReplyDeleteदो दिन पहले एक मित्र को खून की जरुरत पड़ी, तुरंत ब्लडबैंक से बिना डोनर खून का इंतजाम भी हो गया... तभी मजाकिया लहजे में मैंने अपने मित्र से पूछा "क्या तुमने ये पता किया कि ये खून हिन्दू ने दिया हैं या मुसलमान ने?? ब्राह्मण ने दिया हैं या यादव ने?? इतने ही बात पर ब्लडबैंक का मेनेजर ठहाके लगा कर हसने लगा.. बोला संदीप जी आपके दोस्त क्या आज तक मेरे जीवन मे कोई ऐसा बंदा नहीं मिला जो जात का पता करके मेरे यहाँ से खून माँगा हो... जब जान की पड़ती हैं तब आदमी अपने मूल स्वाभाव मे आता हैं...
ये बात आपको भी पता होगा कि एकदम सच बात हैं ये... फिर कैसे कोई हिन्दू मुस्लमान के नाम पड़ लड़ने के लिए तैयार हो जाता हैं?? आप गौर कीजियेगा जो ज्यादा धर्म धर्म करते हैं उन्हें खुद अपने धर्म का पूरा ज्ञान नहीं होगा... खुद जाहिल होते हैं मगर पढ़े लिखे लोगो को भी चरा लेते हैं... फिर फायदा क्या हुआ हमारे पढने लिखने का....
सुबह का अख़बार कौन जात वाला देता हैं?
बस का ड्राईवर किस समुदाय का हैं?
किस जात के रिक्शा वाले के साथ बैठ कर आप कहा गए?
जो साबुन आप लगाते हैं वो कौन समुदाय वाला बनाया हैं?
ट्रेन का ड्राईवर किस जात का हैं?
क्या इस सभी बातों से हमें फर्क पड़ता हैं??? शायद ही कोई इतना बड़ा चुतिया होगा जिसको फर्क पड़ता होगा.... फिर किस बात का जातीयता???? साला कौन हैं वो हरामजादा जो ऐसा माहोल बनाता हैं??? आये सामने और बस वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपने जात को साबित कर दें तो मैं भी उनका समर्थन कर दूंगा... और अगर साबित नहीं कर सकते तो बस शांति रहने दे.... हमें और अपने पुरे वंश को आगे बढ़ने दें..
Aaj pure desh me ye viras fail rha hai
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