7 Golden Rules: प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के सात नियम (छात्र और अभिभावक दोनों के लिए महत्वपूर्ण)

भूमिका: आज किसी भी माँ बाप का सबसे बड़ा सपना है कि उनके बच्चों को दुनियां की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त हो. हर कोई अपने बच्चे को IIT या AIIMS में पढ़ना चाहते हैं. इंजीनियरिंग के सन्दर्भ में IIT एक ऐसा संस्थान है जो न सिर्फ शिक्षा का एक मंदिर है बल्कि बच्चों के उज्ज्वल  भविष्य की भी एक बहुत बड़ी कुंजी है. हर माता पिता चाहते हैं के उनके बच्चे IIT या AIEEE जैसे परीक्षाओं में अच्छे रैंक लायें पर बहुत कम माता पिता इन परीक्षाओं के मनोविज्ञान को और उन परीक्षाओं में अछे रैंक लाने  के लिए जिन चीज़ों की ज़रुरत है उसको समझ पाते हैं.
             मैं यहाँ पर ऐसे ही सात तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहूँगा जो किसी भी माता पिता को जानना ज़रूरी है.

1 मूल तथ्य (basic knowledge) को समझना ही कुंजी है: जब मैं अपने IIT की तैयारी करने पटना गया तो मैंने नालंदा क्लासेज नाम के एक कोचिंग में एडमिशन लिया. एक दिन गणित की क्लास में एक शिक्षक ने एक प्रश्न पूछा. उसका हल बताने से पहले उसने हम सब से पूछा, "बताओ ये प्रश्न हमारे प्रश्नों की किस श्रेणी में आता है?" असल में वहां पर उनके पास प्रश्नों की एक श्रेणी थी जिसमे हर श्रेणी के प्रश्न अलग थे और उनके हल भी उस श्रेणी के हिसाब से थे. ये बात सुन कर मैंने सोचा कि अगर IIT की परीक्षा में कोई ऐसा प्रश्न आ गया जो इनके बताये हुए किसी भी श्रेणी में नहीं है तो मैं क्या करूंगा?
     अतः ये समझने की कोशिश करें कि जो भी चीज़ें हम आज पढ़ते हैं उनकी खोज आज से कितने सौ साल पहले हुई थी और गणित के मामले में तो हजारों साल पहले हुई थी. ये मूल तथ्य जो हजारों साल पहले बनाये गए थे उन्ही से बनी हुई सारी किताबें हम आज पढ़ते हैं. तो अगर हम किसी भी विषय को समझना चाहते हैं तो पहले हमें उनकी basics में जाना होगा. विद्यार्थी को ये समझना होगा कि किसी भी पूछे गए प्रश्न के पीछे कोई कारण है और कोई प्रयोजन भी. एक बार हम उस प्रयोजन को समझ लेंगे तो हमें अपने चरों तरफ ज्ञान का भंडार दिखेगा और उस ज्ञान को किसी श्रेणी की ज़रुरत नहीं पड़ेगी
       अतः अपने बच्चों को basic knowledge जानने की प्रेरणा दीजिये.

2.   अपने बच्चे को सीखने का मौका और अवसर दीजिये: मुझे अभी भी याद है, जब भी मैं किसी परीक्षा में बैठने जाता था तो ये देखता था कि बहुत से लड़के अपने पूरे परिवार और सामान के साथ वहां पहुँचते थे. विद्यार्थी तो अन्दर परीक्षा कक्ष में चला जाता था पर उसका परिवार बाहर घंटों धूप  में उसकी राह देखता रहता था. उनकी ये हालत देख कर मुझे बहुत दुःख होता था. ऐसा कर के माँ बाप ये सोचते हैं कि हम अपने बच्चों की मदद कर रहे हैं, पर असल में वे उन बच्चों को निर्बल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
       मैंने कितनी बार देखा है पिता को बच्चे का फॉर्म भरते हुए, उसके डिमांड ड्राफ्ट के लिए बैंक की लाइन में लगते हुए, पर ये सब करते हुए वो ये नहीं सोचते कि अगर आपका बच्चा  खुद से अपना फॉर्म नहीं भर सकता या बैंक की लाइन में खड़ा नहीं हो सकता, तो वो इंजीनियरिंग जैसे कठिन कोर्स को कैसे पूरा कर पायेगा?
     अतः अपने बच्चे को स्वावलंबी बनाने के पूरे मौके दीजिये, यकीन कीजिये इससे आपके बच्चे के प्रति आपका प्यार कम नहीं होगा.

3.   अपने बच्चे को अपने से दूर भेजना हमेशा सही नहीं होता:  माता-पिता को समझना चाहिए कि सिर्फ अपने बच्चे को दूर भेजने से बच्चे की भलाई नहीं होती. हो सकता है कि जिस जगह पर वे रह रहे हैं वो शैक्षणिक रूप से छात्र के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन अपने बच्चे को अपने पास रखना उन्हें शारीरिक रूप से फिट भी रखेगा और  उसे मनोवैज्ञानिक समर्थन भी मिलेगा जो अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत  आवश्यक है. जहाँ तक शैक्षिक संसाधन की समस्या का संबंध है, उस समस्या का समाधान मेरे  अगले अनुभाग में दिया गया  है. तो अगली बार जब आप दिल्ली या कोटा के लिए अपने बच्चे को भेजने का फैसला करें तो सिर्फ एक बार ये सोच लें कि ये आपका  बच्चा उस नए  पर्यावरण में सेट हो पायेगा या ये उसकी  स्थिति बदतर कर देगा.

4.  स्व अध्ययन सबसे अच्छा अध्ययन है: पिछली बार कब आपने खुद से एक किताब निकल कर उसे पढ़ा है? मैं समझता हूँ कि खुद से किताब निकल के उसे पढना दुनियां के काफी मुश्किल कामों में से एक है. पर अगर ये आदत आपके बच्चे को लग गयी तो समझिये आपका काम हो गया. हमें इस बात को समझना होगा कि COACHING CENTRE सिर्फ एक ऐसा वातावरण बनाते हैं जिसमे बहुत सारे बच्चे एक साथ पढाई करते हैं और जिसके लिए वो एक बहुत बड़ी रकम वसूलते हैं. अगर ऐसा वातावरण हम अपने घर में बनायेंगे तो हमारे बच्चों को किसी कोचिंग की ज़रुरत नहीं होगी. 

5.  पुस्तकें छात्र की सबसे अच्छी दोस्त हैं: कितनी बार मैंने देखा है छात्रों को लम्बी कतारों में खड़ा हो कर किसी शिक्षक के नोट्स का xerox करवाते हुए. पर ये विद्यार्थी ये नहीं समझते हैं के ये नोट्स भी किसी किताब की ही उपज हैं. किताबें  ऐसी चीज़ हैं जो किसी भी जगह, समय और परिस्थिति से परे हैं. आप दिल्ली में रहते हैं या मधेपुरा में, इस तकनीकी युग में किताब आपके पास कहीं भी पहुँच सकती है. ज़रुरत है उस किताब से दोस्ती करने की. और जिस दिन आपने ऐसा कर लिए तो समझिये आपको किसी की ज़रुरत नहीं है.

6.  जीवन में पैसे का महत्व के बारे में अपने बच्चे को बताने का प्रयास करें: मैं समझता हूँ कि आपके जीवन में आपके पिता द्वारा दिए गए मोबाइल की कोई कीमत नहीं हैं, पर आप इस बात को हमेशा याद रखें कि आपके माता पिता आप पर इतना खर्च सिर्फ इस विश्वास पर कर रहे हैं कि एक दिन आप एक सफल आदमी बन पाएं. हमें इस बात की इज्ज़त रखनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए के अपने विद्यार्थी जीवन में कम से कम खर्च करें. हमारे सामने एक बहुत बड़ी ज़िन्दगी है जिसमें जीवन के सुख भोगने के करोड़ों अवसर हमें मिलेंगे बस हमें अभी मेहनत  करके उसी जीवन की नीव रखनी है.

7.   अपने जीवन में असफलता स्वीकार करने की कोशिश करो: अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं यहाँ पर बताना चाहता हूँ वो है जीवन में असफलता का महत्व. अभिभावकों को ये समझना होगा कि हर बच्चा एक जैसा नहीं होता. हर बच्चे के समझने का तरीका और क्षमता अलग अलग होती है. और अगर हम उन्हें समुचित समय और वातावरण देंगे तो निश्चय ही वे जीवन में एक सफल नागरिक बन कर उभरेंगे. अतः अगर आपका बच्चा आपको ये कहता है कि इस बार तो मैं सफल नहीं हो पाया पर मुझे एक साल और दीजिये तो उसे वो एक साल आप ज़रूर दें, हो सकता है वो एक साल आप सब के जीवन को पूरी तरह से परिवर्तित कर दे. (पुनर्प्रकाशित)


ई० रविराज, मधेपुरा 
(लेखक इन्डियन ऑइल कॉर्पोरेशन में अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं)
7 Golden Rules: प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के सात नियम (छात्र और अभिभावक दोनों के लिए महत्वपूर्ण) 7 Golden Rules: प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के सात नियम (छात्र और अभिभावक दोनों के लिए महत्वपूर्ण) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 12, 2016 Rating: 5

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