सरकारी स्कूलों के खस्ताहाल में सुधार की गुंजायश कहीं से नहीं दीखती. मधेपुरा जिले के सरकारी स्कूलों के कुछ शिक्षकों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. स्कूल देर-सबेर जाते तो हैं, पर टाइम पास करके वापस आ जाते हैं. मध्यान्ह भोजन ने बच्चो के स्कूल आने के सरकारी आंकड़े भले ही बढ़ा दिए हों, पर शिक्षा की गुणवत्ता के आंकडें काफी पीछे हैं.
पिछले दिनों मधेपुरा के वर्तमान जिलाधिकारी एक स्कूल में बच्चों से काम कराते देख शिक्षकों पर काफी बिगड़े थे, पर जिले के अन्य कई स्कूलों में अभी भी बच्चों से काम कराने के मामले सामने आ रहे हैं. जिला के घैलाढ प्रखंड के इटहरी संकुल के उत्क्रमित मध्य विद्यालय भौंन टेकठी पंचायत में शिक्षक की लापरवाही से बच्चों से आलू छिलवाया जा रहा था. पता चला कि यहाँ तथा कई अन्य स्कूलों में भी मध्यान्ह भोजन से सम्बंधित कार्यों में बच्चों को लगा दिया जाता है. वहां मौजूद एक शिक्षक से जब हमने पूछताछ की तो उन्होंने बच्चों को वहां से डांटते हुए यूं हटाया मानो बच्चे मर्जी से काम कर रहे हों. हालाँकि मास्टर साहब ने आगे से ऐसा नहीं होने का आश्वासन हमें दिया. पर सवाल उठता है कि ये विचार खुद से आना चाहिए न कि कैमरे या अधिकारी को देखकर.
माना जाता है कि संपन्न अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल पढने भेजते हैं और सरकारी स्कूलों में गरीब अपने बच्चों को ये सोचकर सरकारी स्कूल भेजते हैं कई शायद बच्चा पढ़-लिखकर उसके परिवार की स्थिति सुधारेगा. पर उन्हें क्या पता कि मास्टर साहब उनकी स्थिति कभी नहीं सुधरने देंगे.
पिछले दिनों मधेपुरा के वर्तमान जिलाधिकारी एक स्कूल में बच्चों से काम कराते देख शिक्षकों पर काफी बिगड़े थे, पर जिले के अन्य कई स्कूलों में अभी भी बच्चों से काम कराने के मामले सामने आ रहे हैं. जिला के घैलाढ प्रखंड के इटहरी संकुल के उत्क्रमित मध्य विद्यालय भौंन टेकठी पंचायत में शिक्षक की लापरवाही से बच्चों से आलू छिलवाया जा रहा था. पता चला कि यहाँ तथा कई अन्य स्कूलों में भी मध्यान्ह भोजन से सम्बंधित कार्यों में बच्चों को लगा दिया जाता है. वहां मौजूद एक शिक्षक से जब हमने पूछताछ की तो उन्होंने बच्चों को वहां से डांटते हुए यूं हटाया मानो बच्चे मर्जी से काम कर रहे हों. हालाँकि मास्टर साहब ने आगे से ऐसा नहीं होने का आश्वासन हमें दिया. पर सवाल उठता है कि ये विचार खुद से आना चाहिए न कि कैमरे या अधिकारी को देखकर.
माना जाता है कि संपन्न अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल पढने भेजते हैं और सरकारी स्कूलों में गरीब अपने बच्चों को ये सोचकर सरकारी स्कूल भेजते हैं कई शायद बच्चा पढ़-लिखकर उसके परिवार की स्थिति सुधारेगा. पर उन्हें क्या पता कि मास्टर साहब उनकी स्थिति कभी नहीं सुधरने देंगे.
बच्चों से मध्यान्ह भोजन का आलू छिलवाते शिक्षक: कैसे सुधरे सरकारी स्कूल की हालत?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 10, 2015
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