सक्सेस स्टोरी (2): संघर्ष में नहीं देता कोई साथ, पर धैर्य है आपका सच्चा साथी: छोटी चाय दूकान से बड़े होटल और घर का संघर्ष कहता है कुछ ख़ास
(गतांक से आगे..)
धैर्य है सफलता का मूलमंत्र : उन दिनों को याद करते रामानंद बताते हैं कि भूजा की दुकान एक महिला चलाती थी जिसने रामानंद को अपना बेटा जैसा बताकर मजदूरी बंद कर दी. कुछ वर्षों में जब महिला के पास रामानंद के पैसे ज्यादा जमा हो गए तो रामानंद ने कही दस धुर जमीन लेनी चाही और महिला से अपने पैसे मांगे. पर उसने टाल-मटोल किया. पर जिद पर अड़े रामानंद ने छोटे भाई और उस महिला के 3500 रूपये लेकर जीवन सदन के पीछे एक कट्ठा जमीन खरीदी. शादी के बाद रामानन्द ने डाक बंगला रोड में चाय की दुकान और उसी में भूंजे की दुकान खोली. दुकान चलने लगी तो अगल-बगल के लोग दुश्मन होने लगे और कई लोग उन्हें प्रताड़ित करने की नीयत से चाय पीकर बिना पैसे दिए जाने लगे. बीते दिनों के संघर्ष को न भूलते हुए चाय की दुकान में भले ही स्टाफ रखा हो, पर जूठा ग्लास ये खुद धोते थे. बताते हैं कि इसके पीछे एक बड़ा कारण था कि स्टाफ ये न समझे कि स्टाफ के बिना मालिक नहीं चल सकता है.
रामानन्द कहते हैं धैर्य का जीवन में महत्त्व अनमोल है. 1997 में अपनी दूकान हुई और खूब चलने लगी. अभाव झेल चुके रामानंद ने धन का महत्त्व समझा और पैसे जमा करने लगे. लगातार संघर्ष रंग ला रही थी और वर्ष 2003 में इन्होने मेन रोड में झंझटों के बीच 8 धुर जमीन खरीदी और होटल बना दिया. दो मंजिली इमारत में निचले तल्ले पर मौजूद वैष्णव अमृत होटल शहर के सबसे अधिक चलने वाले होटलों में से एक है और गत वर्ष रामानंद ने वार्ड नं. 20 में ही एक आलीशान मकान भी खरीद लिया. संघर्ष और मेहनत से रामानंद आज आर्थिक बुलंदियों को छू रहे हैं.
खुद अनपढ़ पर शिक्षा के महत्त्व से हैं वाकिफ: रामानंद महज तीसरी कक्षा तक ही पढ़ सके थे और पत्नी शोभा देवी भी दूसरी कक्षा तक ही पढ़ी हैं, पर ये दोनों शिक्षा के महत्त्व को जानते हैं. तब ही तो जहाँ बड़ी बेटी प्रियंका ने इस बार टीपी कॉलेज मधेपुरा से ईंग्लिश ऑनर्स में टॉप किया और पूरे विश्वविद्यालय में इसे पांचवां स्थान हासिल हुआ वहीँ छोटी बेटी कृपा कोटा में रहकर डॉक्टर बनने के ख्वाब को पूरा करने के लिए कोचिंग कर रही है. बेटे को रामानंद अपने साथ ही व्यवसाय में निपुण बनाना चाह रहे हैं. जिन्दगी के तमाम कष्टों को झेल चुके रामानंद की सोच कई मुद्दों पर स्पष्ट प्रेरणादायक है. कहते हैं विपरीत परिस्थितियों में भी जिसने धैर्य रखकर खुश रहना सीख लिया उसने जिन्दगी की जंग जीत ली.
चाय बेचने के दिनों को याद करते रामानंद अपने उन मित्रों को याद करते हैं जो उनकी दूकान पर बैठकर उनसे बातें करते थे जिससे उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. कहते हैं मनोज झा, प्रशांत यादव, प्रदीप श्रीवास्तव आदि से उन्हें अच्छी बाते सीखने के अवसर प्राप्त हुए. कहते हैं डिग्री के साथ ज्ञान होना ही सफलता देगा. ईमानदारी में सबसे अधिक ताकत होती है. इसे बनाकर योजनाबद्ध तरीके से मेहनत करें, धन की कोई कमी नहीं रहेगी. मधेपुरा टाइम्स से बात करते शून्य से बड़े होटल व्यवसायी बनने का सफ़र तय करने वाले रामानंद साह कहते हैं युवा उनके पास व्यवसाय में आगे बढ़ने के तरीके जानने के लिए यदि आपके माध्यम से आवें तो मैं उन्हें सफलता के तरीके बता सकता हूँ.
( रिपोर्ट: राकेश सिंह)
[पिछला भाग यहाँ पढ़ सकते हैं:सक्सेस स्टोरी (2): कभी कचरा बीनते थे मधेपुरा की गंदगी में और जूठा प्लेट तक उठाया. आज हैं एक बड़े होटल के मालिक और रहते हैं आलिशान घर में]
(शून्य से शिखर तक पहुँचने वाले लोगों की हमारी तलाश जारी है. अगले अंक में फिर एक नए चेहरे के साथ. आप अपने सुझाव और प्रतिक्रिया हमें ई-मेल से madhepuratimes@gmail.com पर भेज सकते हैं.)
धैर्य है सफलता का मूलमंत्र : उन दिनों को याद करते रामानंद बताते हैं कि भूजा की दुकान एक महिला चलाती थी जिसने रामानंद को अपना बेटा जैसा बताकर मजदूरी बंद कर दी. कुछ वर्षों में जब महिला के पास रामानंद के पैसे ज्यादा जमा हो गए तो रामानंद ने कही दस धुर जमीन लेनी चाही और महिला से अपने पैसे मांगे. पर उसने टाल-मटोल किया. पर जिद पर अड़े रामानंद ने छोटे भाई और उस महिला के 3500 रूपये लेकर जीवन सदन के पीछे एक कट्ठा जमीन खरीदी. शादी के बाद रामानन्द ने डाक बंगला रोड में चाय की दुकान और उसी में भूंजे की दुकान खोली. दुकान चलने लगी तो अगल-बगल के लोग दुश्मन होने लगे और कई लोग उन्हें प्रताड़ित करने की नीयत से चाय पीकर बिना पैसे दिए जाने लगे. बीते दिनों के संघर्ष को न भूलते हुए चाय की दुकान में भले ही स्टाफ रखा हो, पर जूठा ग्लास ये खुद धोते थे. बताते हैं कि इसके पीछे एक बड़ा कारण था कि स्टाफ ये न समझे कि स्टाफ के बिना मालिक नहीं चल सकता है.
रामानन्द कहते हैं धैर्य का जीवन में महत्त्व अनमोल है. 1997 में अपनी दूकान हुई और खूब चलने लगी. अभाव झेल चुके रामानंद ने धन का महत्त्व समझा और पैसे जमा करने लगे. लगातार संघर्ष रंग ला रही थी और वर्ष 2003 में इन्होने मेन रोड में झंझटों के बीच 8 धुर जमीन खरीदी और होटल बना दिया. दो मंजिली इमारत में निचले तल्ले पर मौजूद वैष्णव अमृत होटल शहर के सबसे अधिक चलने वाले होटलों में से एक है और गत वर्ष रामानंद ने वार्ड नं. 20 में ही एक आलीशान मकान भी खरीद लिया. संघर्ष और मेहनत से रामानंद आज आर्थिक बुलंदियों को छू रहे हैं.
खुद अनपढ़ पर शिक्षा के महत्त्व से हैं वाकिफ: रामानंद महज तीसरी कक्षा तक ही पढ़ सके थे और पत्नी शोभा देवी भी दूसरी कक्षा तक ही पढ़ी हैं, पर ये दोनों शिक्षा के महत्त्व को जानते हैं. तब ही तो जहाँ बड़ी बेटी प्रियंका ने इस बार टीपी कॉलेज मधेपुरा से ईंग्लिश ऑनर्स में टॉप किया और पूरे विश्वविद्यालय में इसे पांचवां स्थान हासिल हुआ वहीँ छोटी बेटी कृपा कोटा में रहकर डॉक्टर बनने के ख्वाब को पूरा करने के लिए कोचिंग कर रही है. बेटे को रामानंद अपने साथ ही व्यवसाय में निपुण बनाना चाह रहे हैं. जिन्दगी के तमाम कष्टों को झेल चुके रामानंद की सोच कई मुद्दों पर स्पष्ट प्रेरणादायक है. कहते हैं विपरीत परिस्थितियों में भी जिसने धैर्य रखकर खुश रहना सीख लिया उसने जिन्दगी की जंग जीत ली.
चाय बेचने के दिनों को याद करते रामानंद अपने उन मित्रों को याद करते हैं जो उनकी दूकान पर बैठकर उनसे बातें करते थे जिससे उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. कहते हैं मनोज झा, प्रशांत यादव, प्रदीप श्रीवास्तव आदि से उन्हें अच्छी बाते सीखने के अवसर प्राप्त हुए. कहते हैं डिग्री के साथ ज्ञान होना ही सफलता देगा. ईमानदारी में सबसे अधिक ताकत होती है. इसे बनाकर योजनाबद्ध तरीके से मेहनत करें, धन की कोई कमी नहीं रहेगी. मधेपुरा टाइम्स से बात करते शून्य से बड़े होटल व्यवसायी बनने का सफ़र तय करने वाले रामानंद साह कहते हैं युवा उनके पास व्यवसाय में आगे बढ़ने के तरीके जानने के लिए यदि आपके माध्यम से आवें तो मैं उन्हें सफलता के तरीके बता सकता हूँ.
( रिपोर्ट: राकेश सिंह)
[पिछला भाग यहाँ पढ़ सकते हैं:सक्सेस स्टोरी (2): कभी कचरा बीनते थे मधेपुरा की गंदगी में और जूठा प्लेट तक उठाया. आज हैं एक बड़े होटल के मालिक और रहते हैं आलिशान घर में]
(शून्य से शिखर तक पहुँचने वाले लोगों की हमारी तलाश जारी है. अगले अंक में फिर एक नए चेहरे के साथ. आप अपने सुझाव और प्रतिक्रिया हमें ई-मेल से madhepuratimes@gmail.com पर भेज सकते हैं.)
सक्सेस स्टोरी (2): संघर्ष में नहीं देता कोई साथ, पर धैर्य है आपका सच्चा साथी: छोटी चाय दूकान से बड़े होटल और घर का संघर्ष कहता है कुछ ख़ास
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 07, 2015
Rating:
No comments: