सक्सेस स्टोरी (4): ‘एक बिहारी, सब पर भारी’: गणित में फेल होकर छोड़ी थी पढ़ाई, पर आज इनकी सफलता को सभी करते हैं नमन, 5 हजार की पूँजी से हुआ विशाल व्यवसाय
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मधेपुरा शहर में ऐसी ही एक और हस्ती है जिन्होंने पढ़ाई में खुद को पीछे माना तो व्यवसाय को आगे बढ़ने के लिए अपनाया और आज उनकी हैसियत और लोकप्रियता इतनी कि लोग उन्हें आदर के साथ ‘नगरसेठ’ कहकर पुकारते हैं.
वर्ष 1953 में जन्मे मधेपुरा के हरिश्चंद्र साह आज 62 वर्ष की उम्र में भी अत्यंत उर्जावान हैं और वर्ष 1976 में महज 5 हजार रूपये की मामूली पूँजी से शुरू किया गया किराना व्यवसाय आज इस कदर खड़ा हो गया है कि आज किराना व्यवसाय में सफल होने की चाहत रखने वाले हर व्यवसायी इनकी तरह ही बनना चाहते हैं.
हरिश्चंद्र साह उन छात्रों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकते हैं जिन्हें पढाई के क्षेत्र में मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है. अपने संघर्ष की पूरी कहानी बताते हुए हरिश्चंद्र साह कहते हैं कि मधेपुरा के टीपी कॉलेज में इंटरमीडिएट प्रीवियस में जब मैथ में वे फेल हो गए थे तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ देने का फैसला लिया. पढ़ाई भारी लगी पर परिवार वालों की जिद थी कि आगे पढ़ाई करनी ही है. लेकिन इनकी जिद परिवार की इच्छा पर भारी पड़ा और पढ़ाई छोड़कर ये बिजनेस में कूद पड़े और मेहनत रंग लाई तो आज जिले के सबसे बड़े व्यवसायियों ने से एक बन गए.
लोटा और लाठी लेकर गाँव छोड़ा था परिवार: दरअसल सामान्य परिवार के हरिश्चंद्र साह की पारिवारिक पृष्ठभूमि ही संघर्ष से भरा रहा है. पुर्णियां जिले के दिवरा बाजार के मूल निवासी हरिश्चंद्र साह के दादा मधेपुरा जिले के
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पढ़ाई में मन नहीं लगा: पहले की पढ़ाई दिवरा में हुई थी पर सातवीं कक्षा में हरिश्चंद्र साह ने मधेपुरा के रास बिहारी हाई स्कूल में एडमिशन लिया और मधेपुरा के रोबिन लॉज में रहते इंटर की पढ़ाई टीपी कॉलेज से करनी चाही, पर गणित में फेल होने से पढ़ाई करने का मनोबल टूट गया. परिवार अभी भी दिवरा में ही रहता था. ये अकेले दिवरा चले गए और न पढने की जिद पर अड़ गए. मधेपुरा आकर अपनी जमीन पर भाड़े की दुकान को खाली करवाया और किराना की एक छोटी दुकान खोल ली. तराजू उठाकर सामान तौलना और अपनी दुकान में झाडू लगाना दिनचर्या थी. 1976 में महज 5 हजार से शुरू की गई किराना दुकान 1980 से आसपास से खूब चलने लगी तो वर्ष 1995 में हरिश्चंद्र साह ने दुकान के लिए लायसेंस भी ले ली.
बिहारी होने के कारण देखा जाता था अविश्वास की नजर से: कहते हैं वैसे तो वे सभी बिहारी हैं जो बिहार में रह रहे हैं. पर कोसी के इलाके में व्यवसाय के मामले में बिहारी का अर्थ कुछ और है. व्यवसाय में आई समस्याओं में
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ईमानदारी और व्यवहार कुशलता बहुत बड़ी चीज है: अपने पूरे संघर्ष जीवन को याद करते हुए सादगी पसंद हरिश्चंद्र साह मधेपुरा टाइम्स से कहते हैं कि ईमानदारी, व्यवहारकुशलता और कड़ी मेहनत ही सफलता के लिए आवश्यक तत्व हैं. माँ-पिता का आशीर्वाद न मिला तो व्यक्ति सफल नहीं कहा जा सकता है. आज के युवाओं को व्यवसाय में सफल होने के लिए कठोर मेहनत करनी चाहिए. कठोर मेहनत के साथ ईमानदारी रखें तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता.
( प्रस्तुति: राकेश सिंह)
सक्सेस स्टोरी (4): ‘एक बिहारी, सब पर भारी’: गणित में फेल होकर छोड़ी थी पढ़ाई, पर आज इनकी सफलता को सभी करते हैं नमन, 5 हजार की पूँजी से हुआ विशाल व्यवसाय
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 24, 2015
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