फिसड्डी बीएसएनएल के अधिकारी ‘नकारेपन’ की जिम्मेवारी क्यों नहीं लेते?

भारत सरकार की दूरसंचार सेवा बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) मानो इन दिनों पुरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. न मोबाइल सेवा ही ढंग से काम रही है और न ही बेसिक या ब्रॉडबैंड सेवा ही संतोष दिलाने लायक है.
      कोसी में कई उपभोक्ता बीएसएनएल की सेवाओं से इस कदर आजिज हो चुके हैं कि उनका अब मानना है कि इस इलाके में बीएसएनएल को अपनी तमाम सेवाएं बंद करने की घोषणा कर देनी चाहिए. इससे एक लाभ आम लोगों कि यह मिलेगा कि लोग दूसरी उपयुक्त दूरसंचार कंपनी की सेवा की तरफ अपना ध्यान देंगे. कई उपभोक्ताओं का कहना है कि एयरटेल, यूनिनौर आदि कंपनियों के पास आखिर कौन सी तकनीक है जो उनका टॉवर अपवाद को छोड़कर हमेशा रहता है, और सरकार की कंपनी होकर बीएसएनएल क्यों फिसड्डी साबित हो रही है?
      मधेपुरा में जब एक दिन उपभोक्ताओं ने आंदोलन किया था तो कई घंटे बेहतर सेवा लोगों को मिली, जो इस ओर इशारा करती है कि अधिकारी चाहें तो बहुत कुछ ठीक भी हो सकता है, पर यहाँ अधिकारियों को काम पर नहीं बल्कि फिक्स्ड सेलरी मिलती ही है तो क्यों अधिक मिहनत करें? नेता की तरह मीठी-मीठी बातें कर देनी है. अपना काम बनता, भांड में जाए जनता. ऐसा नहीं है कि स्थानीय अधिकारी सेवा को बेहतर बनाने के प्रयास में नहीं हैं, पर उच्चाधिकारियों की अनदेखी की वजह से ये भी बहुत कुछ कहने के स्थिति में नहीं रहते हैं.
      कई लोगों ने ये शिकायत की कि सरकार के अधिकाँश प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने लोगों के लिए बीएसएनएल के नंबर जारी किये हुए हैं और सेवा रद्दी होने के कारण उन्हें इन अधिकारियों से सूचना हासिल करने में काफी परेशानी होती है और इस तरह भ्रम की स्थिति बनी रहती है. मधेपुरा टाइम्स के एक विद्वान पाठक ने हमसे कहा कि बीएसएनएल ने तो अपने फुल फॉर्म में अंत में लिमिटेड लिख दिया है जिसका मतलब है इसकी सेवा ही लिमिटेड है, हमेशा नहीं रहने वाली.
फिसड्डी बीएसएनएल के अधिकारी ‘नकारेपन’ की जिम्मेवारी क्यों नहीं लेते? फिसड्डी बीएसएनएल के अधिकारी ‘नकारेपन’ की जिम्मेवारी क्यों नहीं लेते? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 08, 2015 Rating: 5

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