सरकार और प्रशासन द्वारा निजी स्कूलों से नियमों का
पालन करवाने में सख्ती तो बरती जा रही है पर बीपीएल छात्रों के लिए राशि मुहैया
कराने में सरकार अपना दायित्व का निर्वहन ठीक ढंग से नहीं कर पा रही है.
मधेपुरा
के प्राइवेट स्कूल एशोसिएशन के जिलाध्यक्ष किशोर कुमार ने इस सम्बन्ध में जो आंकड़े
उपलब्ध कराये वो बेहद चौंकाने वाले हैं. जानकारी दी गई कि जिले में सत्र 2012-13
से स्कूलों को प्रस्वीकृति मिलनी शुरू हुई, जिसमे उस सत्र के लिए 15, 2013-14 में
45 तथा 2014-16 के लिए जिले के 64 निजी स्कूलों को प्रस्वीकृति प्रदान की गई.
शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत प्रत्येक सत्र में नामांकित बच्चों का 25% (सिर्फ
एक कक्षा के लिए) गरीब एवं असहाय बच्चों का नामांकन स्कूलों द्वारा लिया जा रहा
है. सरकार की तरफ से इसके एवज में 4200/- रू० प्रति छात्र की दर से स्कूलों को
मिलने की व्यवस्था है.
निजी
स्कूल एशोसिएशन ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि मधेपुरा जैसे विभिन्न आपदाओं से
ग्रसित इलाके में जहाँ शिक्षित बेरोजगार शिक्षण संस्थान खोलकर बच्चों को शिक्षा
देने एवं कई बेरोजगारों को रोजगार देने का काम कर रही है, वहाँ सत्र 2012-13 में
मात्र 8 विद्यालयों को, 2013-14 में मात्र 14 विद्यालयों को ही बीपीएल छात्रों के
नामांकन के एवज में राशि उपलब्ध कराई गई. जबकि सत्र 2014-15 के लिए इस राशि के
सम्बन्ध में अभी तक कोई सूचना प्राप्त नहीं है.
ऐसी
परिस्थिति में सवाल उठाना लाजिमी है कि जब सत्र 2012-13 में 15 विद्यालयों ने
बीपीएल सूची जमा की तो सिर्फ आठ को ही और सत्र 2013-14 में 45 स्कूलों ने सूची जमा
की तो सिर्फ 14 विद्यालयों को ही क्यों बीपीएल छात्रों के राशि मिली? और सबसे बुरी
स्थिति तो सत्र 2014-15 का रहा जब अबतक सूचना नहीं मिलने से जिले के निजी
विद्यालयों के करीब एक करोड़ 25 लाख रूपये डूब गये लगते हैं.
निजी
स्कूलों ने सरकार की इस व्यवस्था पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि शिक्षा विभाग के
पदाधिकारियों का कहना है कि इन बच्चों का नाम किसी हालत में नहीं कटना चाहिए. अब
सवाल यह भी उठता है कि ऐसी स्थिति में निजी स्कूल करें भी तो क्या करें? (नि० सं०)
सरकार से बीपीएल छात्रों का फंड नहीं मिलने से प्राइवेट स्कूल परेशान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 22, 2015
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