बेटियां भले ही आसमान छू रही हैं और ‘बेटी है तो कल है’ का स्लोगन भले ही अब कई
बुद्धिजीवी देश को देकर बेटियों को बचाने की मुहिम में लग गए हैं, पर मधेपुरा समेत
देश के कई ग्रामीण इलाकों के अशिक्षित परिवार अभी भी बेटियों को अभिशाप ही मानते
हैं. यदि ऐसा न होता तो पुरैनी-प्रखंड के औराय पंचायत में रविवार की शाम को मानवता
को शर्मशार करने वाली ऐसी घटना न घटती. पर इस घटना का दूसरा पहलू मानवता पर गर्व
करने वाला रहा. एक तरफ एक माँ ने जहाँ चार महीने के अपने कलेजे के टुकड़े को झाड़ी
में फेंक कर गायब हो गई तो दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय की एक विधवा ने मौत के मुंह
में जाने के लिए फेंक दी गई उस बच्ची को अपने कलेजे से लगा लिया.
रविवार को शाम के चार बजे गणेशपुर
पंचायत अन्तर्गत औराय से पुरैनी जाने वाली मुख्य सड़क के किनारे एक ईंट भट्टा के समीप
जब मकई खेत से किसी बच्चे के रोने की आवाज आई तो एक बूढी औरत और सभी बच्चे खेत में
पड़ी 4 माह की
बच्ची को सड़क के किनारे ले आये. कुछ ही देर में लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ जमा हो गई
पर बच्ची किसकी है, पता न चल पाया. पुरैनी से हाट कर लौट रहे दर्जनों लोग बड़ी-बड़ी बातें
करते और बच्चे के माँ-बाप को कोसते, पर बच्चे का क्या होगा इस पर किसी ने नहीं
सोचा और अपनी राह चलते रहे. मासूम का क्रंदन उसे तबतक सहारा न दे सका था.
पर कहते
हैं न कि जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों. औराय लौट रही एक विधवा अख्तरी खातून
ने जब बच्ची को बिलखते देखा तो उसे सहन नहीं हुआ. अख्तरी ने बच्ची को गोद में लिया
और चल पड़ी घर की ओर. रास्ते में उसने एक-एक घर वाले से बच्ची के बारे में पूछा और
जब किसी ने बच्ची को नहीं पहचाना तो अख्तरी ने बच्चे को स्नान कराकर उसे नया कपड़ा पहनाया
और बेटी की तरह प्यार से रख ली.
हालांकि घटना की जानकारी जब
पुरैनी पुलिस को मिली तो थानाध्यक्ष सूनील कुमार ने अख्तरी की सराहना करते इसकी सूचना
बाल संरक्षण आयोग को दे दी है.
4 माह की बेटी को निर्दय माँ ने फेंका: मुस्लिम विधवा ने अपनाकर किया मिसाल कायम
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 02, 2015
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