मधेपुरा में आज चल रहे राष्ट्रीय
लोक अदालत में बैंक अधिकारियों ने अधिक ऋण के भार से दबे पीडितों के प्रति जमकर
सहानुभूति भी दिखाई.
मधेपुरा प्रखंड के धुरगाँव के मुकेश कुमार दास
दोनों पैर से विकलांग हैं और घिसट-घिसट कर चलते हैं. इनकी कहानी भी बड़ी दर्दनाक
है. वर्ष 2005 में मधेपुरा के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एडीबी शाखा से इन्होने किराना की दुकान खोलने
के लिए 25 हजार रूपये का लोन लिया था. दुकान शुरू की और पत्नी तथा बच्चों का
भरण-पोषण भी करने लगे. पर बदकिस्मती फिर से सामने आकर खड़ी हो गई. 2008 की भयानक
बाढ़ मुकेश के आशियाने और दुकान को बहा ले गई. किसी तरह जान बची, पर फिर पैरों से
लाचार मुकेश शारीरिक रूप से तो जमीन पर था ही आर्थिक रूप से भी खड़ा न हो सका.
उधर बैंक लोन नहीं चुका पाने के कारण बैंक
ने मुकेश को ऋण चुकाने के लिए नोटिश जारी कर दी. आज राष्ट्रीय लोक अदालत में
पहुंचे मुकेश को अधिकारियों ने कम से कम ग्यारह हजार रूपये जमा करने पर ही ऋण के
भार से मुक्त करने की बात कही. मुकेश ने अपनी लाचारी दिखाई और एक सप्ताह में आठ
हजार रूपये की व्यवस्था करने का वादा किया पर अधिकारी मान नहीं रहे थे. दूसरी ओर
आज कुछ भी राशि जमा करने को कहा गया तो मुकेश के पास घर लौटने के भाड़े के अलावे
कुछ था ही नहीं.
मुकेश की हालत देखकर वहां मौजूद अधिवक्ता सुचिन्द्र कुमार सिंह, पत्रकार बंटी सिंह समेत कुछ संवेदनशील लोगों ने एडीबी के अधिकारियों से अनुरोध किया तो बैंक अधिकारी ने भी संवेदनशीलता दिखाई और मान गए. मौके पर मौजूद न्यायालयकर्मी
राकेश कुमार सिंह ने अपनी ओर से केश को समाप्त करवाने के लिए तत्काल पीड़ित विकलांग
को आर्थिक मदद की तो मामला सुलझ गया. अधिकारियों ने दया दिखाई और मुकेश को बड़ी
राहत मिलती दिखी.
बैंक अधिकारियों ने दिखाई संवेदनशीलता, सुनी विकलांग की गुहार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 14, 2015
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