
जिस तरह
से ये मुकदमा किया गया है, लगता है सच्चाई से कोसों दूर है. स्थानीय कुछ पत्रकार बंधू
के द्वारा अपने अखबार की प्रसार क्षमता बढाने के लिए मीडिया घराने की साजिस को
तवज्जो देना न ही सामाजिकता का तकाजा है और न ही नैतिकता का. इसकी बजाय यदि
हम अपराधी और अपराधवृत्ति का विरोध करें तो हम समाज को कुछ अच्छा सन्देश दे
पायेंगे.
अखबारों
के अभिकर्ताओं के बीच के विवाद में प्रासंगिक कांड के कथित अभियुक्त शशिमन्यू
सिंह को यदि कोई अखबार एक बड़ा अपराधी दिखा कर लगातार पेश करता है तो ये ठीक नहीं
है.
मजीठिया
आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय भले ही दे दिया हो,
लेकिन निर्णय के कई महीने बाद भी ये ‘शब्दवीर’ पत्रकार लोग निर्णय के आलोक में न तो कोई मांग अपने अखबारी
घराने से कर पाए हैं और न ही बिहार सरकार से. बल्कि प्रासंगिक मुद्दे में एक
पत्रकार के भाई और समाचार पत्र अभिकर्ता के खिलाफ अखबार में लगातार अनावश्यक लिखकर
उस स्थान को छेंक रहे हैं जिस स्थान का उपयोग वे पाठकों को सूचनापरक जानकारी देने
के लिए कर सकते हैं. यही नहीं ऐसा मामला प्रशासन का भी सिरदर्द बढ़ाने का काम कर रहा है.
इस स्तर
से अखबारी प्रतिस्पर्धा की लड़ाई के पूरे मुद्दे पर जब हमने मधेपुरा के वरिष्ठ
पत्रकार तथा जर्नलिस्ट यूनियन के महासचिव डा० देवाशीष बोस से उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि वे इस
मुद्दे की पूरी जानकारी ले चुके हैं और सम्बंधित अखबार के लोगों से निवेदन
करते हैं कि पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर इस तरह अखबार के स्तर को नीचे न गिराएं.
(नि० सं०)
मधेपुरा में अखबारी प्रतिस्पर्धा में हो रहे पूर्वाग्रह से ग्रसित: क्या सही है ऐसी पत्रकारिता?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 14, 2015
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