‘चार्ली एब्दो’ के बहाने: दर्जन लोग गंवाने के बाद फिर पत्रिका मार्केट में: मीडिया पर हमले के खिलाफ कोसी रही मौन, सिर्फ एक प्रदर्शन

गत 7 जनवरी को फ्रांस की राजधानी पेरिस में कार्टून पत्रिका चार्ली एब्दो के दफ्तर पर आतंकवादी हमला कर दस मीडियाकर्मी समेत 12 लोगों को मौत के घाट उतार देने के बाद दुनियां सन्न रह गई थी. माना गया कि पैगम्बर मुहम्मद साहब के कार्टूनों की वजह से पत्रिका को संपादक समेत दस पत्रकारों को गंवाना पड़ा.
      पर महज एक सप्ताह में ही पत्रिका का ताजा संस्करण फिर मुहम्मद पैगम्बर के कार्टूनों के साथ मार्केट में आ जाना किसी आश्चर्य से कम साबित नहीं हुआ. पत्रिका ने अपने हौसलों से आतंक के मुंह पर जो तमाचा जड़ा, उस हौसले को पूरी दुनियां सलाम कर रही है. इस बार पत्रिका पचास गुना ज्यादा और विश्व की 16 भाषाओँ में प्रकशित की गई और कहा जाता है कि पत्रिका की कुछ प्रतियाँ दस लाख रूपये में बिकी.

कोसी में रही संवेदनहीनता की स्थिति : पत्रकारों की मौत पर कोसी में सिर्फ एक प्रदर्शन की सूचना है. अपने विपक्षियों पर बयानों से आग के गोले बरसाने वाले न तो किसी जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे पर किसी तरह की शोकसभा की और एक-दूसरे की शिकायत में अक्सर लीन रहने वाले अधिकाँश पत्रकारों को भी शायद यही लगा होगा कि चलो फ्रांस में हुआ है, हम तो दहशतगर्दों के खिलाफ चुप बैठकर सुरक्षित हैं न !
      सूचना मिली कि पेरिस में पत्रकारों पर हमले के खिलाफ 9 जनवरी को सिर्फ सहरसा में एक प्रदर्शन फ्रेंड्स ऑफ आनंद के द्वारा किया गया. कार्यकर्ता सड़क पर उतरे और फिर कैंडल मार्च कर अपनी संवेदनशीलता दिखाई.

      यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या चार्ली एब्दो की घटना से हमें कुछ सबक लेने की आवश्यकता नहीं है ? इस बात पर बुद्धिजीवियों के बीच शायद ही कोई विवाद होगा कि कोसी में बहुत सी ख़बरें येलो जर्नलिज्म का शिकार होकर मैनेज हो जाती हैं. जनसमस्याओं के मुद्दे पर आवाज बुलंद करने की बजाय अधिकाँश अखबार महज बिजनेस और सर्कुलेशन की चीज बनकर रह गई है. ख़बरों के स्तर से ही अधिकाँश पत्रकारों के सोच की सडांध झलकती है और नेता और जनप्रतिनिधि अखबार में अपना नाम और तस्वीर छपवाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, जिसे मीडिया हाउस विज्ञापनों की शक्ल में भुना कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेता है. जनसमस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं.
      संवेदनहीनता की इस दौर में हम तकनीकी रूप से भले ही विकसित हो रहे हैं, पर नैतिकता का ह्रास हो रहा है जो कहीं से मानव सभ्यता का पूर्ण विकास नहीं है. जाहिर है मीडिया समेत बुद्धिजीवियों के लिए ये सोचने का वक्त है वर्ना इन घाटों की भरपाई यदि अभी नहीं तो हम कभी नहीं कर पायेंगे.
‘चार्ली एब्दो’ के बहाने: दर्जन लोग गंवाने के बाद फिर पत्रिका मार्केट में: मीडिया पर हमले के खिलाफ कोसी रही मौन, सिर्फ एक प्रदर्शन ‘चार्ली एब्दो’ के बहाने: दर्जन लोग गंवाने के बाद फिर पत्रिका मार्केट में: मीडिया पर हमले के खिलाफ कोसी रही मौन, सिर्फ एक प्रदर्शन Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 16, 2015 Rating: 5

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