आप मानें या ना मानें गम्हरिया पुलिस को गोदाम या
दूकान सील करने नहीं आता है. ये बस ताला मार देने के सील समझते हैं. या ये जानबूझ
कर अनजान बने रहते हैं. हालांकि पुलिस विभाग के अंदर की बात जानने वालों पर भरोसा
करें तो ऐसा करने के पीछे की मंशा कुछ और ही होती है.
जिले के
बहुचर्चित नकली सीमेंट धंधे के उजागर होने के बाद भी पुलिस या प्रशासन कहीं से
कोई
गंभीर नहीं दिखती है. घटना के दिन यानी 5 जून को कहा गया कि मनबोध चौधरी के गोदाम
को सील कर चौकीदार की ड्यूटी लगाईं जा रही है. पर आज छ: दिन बीत जाने के बाद भी न
तो गोदाम को सील किया गया और न ही चौकीदार को वहां प्रतिनियुक्त किया गया है.
मधेपुरा टाइम्स ने आज जब गोदाम जाकर देखा तो वहां कोई चौकीदार नहीं था और दुकान
में महज साधारण ताला लटका हुआ था. मनबोध चौधरी और पुलिस की मिलीभगत का इतिहास
देखें तो पहले नकली खाद मामले में मनबोध चौधरी आराम से गिरफ्त से बाहर हुआ था. ऐसे
में ताजा मामले में आशंका यह भी जताई जा रही है कि गोदाम पर लगे ताले की चाभी रात
में लेकर मनबोध नकली सीमेंट को बदल कर असली रख देता होगा.
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अक्सर
ऐसे मामले में पुलिस बाजी अपने हाथ में रखती है और यहाँ भी पुलिस को खरीदने में
माहिर मनबोध कुछ ऐसा ही कर जाय तो उसमे आश्चर्य की बात नहीं होगी.
क्या अंतर है सील करने और ताला
लगाने में?: ये बात शायद आज बच्चा-बच्च जानता है कि यदि किसी घर में ताला लगा कर चाभी
अपने पास रख लिया जाय तो दूसरी चाभी से भी उस ताले को आसानी से खोला जा सकता है.
जबकि सील करने की प्रक्रिया में पहले तो दुकान, गोदाम या घर में ताला लगाया जाता
है और फिर उस ताले को एक निश्चित पदार्थ से इस तरह से कवर कर वरीय अधिकारी की मुहर
उसपर लगाई जाती है ताकि उस ताले को खोलने में ऊपर का कवर क्षतिग्रस्त हो जाय और
फिर जब वरीय पदाधिकारी की उपस्थिति में जब
सील खोलने का समय आय तो ये पता चल सके कि सील टूटा है अथवा पूर्व की स्थिति में
हैं.
जो भी हो, पुलिस और पदाधिकारियों की कमजोरी
का फायदा जिले में दो नंबर के लोग धडल्ले से उठा रहे हैं और जो समाज या जिले में
बदलाव की उम्मीद रखे हुए हैं उन्हें शायद अगले जनम का इन्तजार करना चाहिए.
हाय री गम्हरिया पुलिस, सील करने भी नहीं आता..या फिर है गडबडझाला ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 11, 2014
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